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    सिर्फ दिमाग की नहीं आपका लिवर भी खराब करता है Depression, यहां समझें दोनों का कनेक्शन

    Updated: Tue, 24 Sep 2024 08:20 AM (IST)

    इन दिनों तेजी से बदलती लाइफस्टाइल और गलत खानपान की वजह से लोग अक्सर कई तरह की शारीरिक और मानसिक समस्या का शिकार हो जाते हैं। Depression इन्हीं समस्याओं में से एक है जो इन दिनों दुनियाभर में एक चिंता का विषय बना हुआ है। इसकी वजह से सिर्फ मानसिक स्वास्थ्य ही नहीं लिवर भी काफी प्रभावित होता है। आइए जानते हैं कैसे।

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    जानें लिवर और डिप्रेशन का कनेक्शन (Picture Credit- Freepik)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। लिवर मुख्य रूप से डिटॉक्सिफिकेशन की प्रोसेस के लिए जिम्मेदार होता है। हम जो भी खाना, पीना या दवाइयां अपने शरीर में लेते हैं, उन सभी चीजों से शरीर में डेली टॉक्सिन जाते हैं। इसलिए इन्हें शरीर से बाहर निकालना बहुत जरूरी है। टॉक्सिन फैट में स्टोर होते हैं। ये लिपिड सॉल्युबल टॉक्सिन शरीर से यूं ही फ्लश नहीं हो जाते हैं। इन्हें लिवर पहले डिटॉक्सिफाई कर के तोड़ता है और फिर शरीर से बाहर निकालता है, लेकिन फैटी लिवर जैसी स्थिति में लिवर अपना काम सही ढंग से करने में असमर्थ होता है, जिससे डिटॉक्स की प्रक्रिया नहीं हो पाती है और शारीरिक ही नहीं मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है।

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    एनर्जी की कमी, अस्वस्थ पाचन क्रिया, मूड स्विंग जैसे कई लक्षण लिवर से सीधे रूप से जुड़े हो सकते हैं। लिवर स्ट्रेस हार्मोन कोर्टिसोल के प्रोडक्शन प्रोसेस में शामिल होता है। लिवर मेटाबोलिज्म, इम्यून रिस्पॉन्स और इन्फ्लेमेशन की प्रक्रिया को भी नियंत्रित करता है। स्ट्रेस लंबे समय तक रहने पर कोर्टिसोल का उत्पादन भी ज्यादा होता है। इससे शरीर के कई सिस्टम प्रभावित होते हैं, जिसमें लिवर भी मुख्य रूप से शामिल होता है। इस तरह लिवर और डिप्रेशन का एक कनेक्शन बनता है, जिसे यहां विस्तार में समझते हैं –

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    मेटाबोलिज्म

    कोर्टिसोल की ज्यादा मात्रा फैट, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट के मेटाबोलिज्म को प्रभावित करता है। इससे इंसुलिन रेजिस्टेंस, फैट और शुगर लेवल बढ़ जाते हैं। इससे लिवर पर फैट जमा होने लगता है, जिससे फैटी लिवर की समस्या शुरू हो जाती है।

    एडिक्शन

    स्ट्रेस में अक्सर लोग अच्छा महसूस करने के लिए शराब, सिगरेट या ड्रग्स की लत लगा लेते हैं। इसका सीधा असर लिवर पर पड़ता है और ये जहर की तरह लिवर पर टॉक्सिन जमा करते हैं। ये एडिक्शन लिवर को सीधे तौर पर नुकसान पहुंचाते हैं और ये जानलेवा भी साबित हो सकते हैं।

    थकान

    लिवर एनर्जी बनाने में मदद करता है और फैटी लिवर होने पर एनर्जी उत्पादन में बाधा उत्पन्न होती है। इससे लो एनर्जी महसूस होती है, काम करने की इच्छा नहीं होती है, डेली रूटीन के काम पूरे नहीं होते हैं और इससे स्ट्रेस पैदा होता है।

    हार्मोनल असंतुलन

    लिवर कई हार्मोन के उत्पादन में मदद करता है, लेकिन फैटी लिवर होने पर हार्मोनल असंतुलन होता है, जिससे स्ट्रेस रिस्पॉन्स बढ़ता है और भावनात्मक संतुलन बिगड़ता है। ये मूड स्विंग, एंग्जायटी और डिप्रेशन का कारण बनता है।

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    Disclaimer: लेख में उल्लिखित सलाह और सुझाव सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए हैं और इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।