प्लास्टिक से भी ज्यादा माइक्रोप्लास्टिक छोड़ती हैं कांच की बोतलें! नई स्टडी में हुआ चौंकाने वाला खुलासा
जब बात पानी या किसी और ड्रिंक को रखने की आती है, तो कांच की बोतलें प्लास्टिक से कहीं ज्यादा सुरक्षित मानी जाती हैं, लेकिन फ्रांस की फूड सेफ्टी एजेंसी ANSES द्वारा किए गए एक नए शोध ने हमारे इस भरोसे को हिला दिया है। जी हां, स्टडी बताती है कि कांच की बोतलें जितनी हम सोचते हैं, उससे कहीं ज्यादा माइक्रोप्लास्टिक कणों से दूषित हो सकती हैं।

क्या कांच की बोतलें प्लास्टिक से भी बदतर हैं? आपको चौंका देगी नई स्टडी (Image Source: Freepik)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। हम सबने अब तक यही सोचा था कि कांच की बोतलें ही सबसे बढ़िया ऑप्शन हैं, है ना? हमने उन्हें ईको फ्रेंडली माना, सेहत के लिए बेहतर समझा और अपने किचन में भी जगह दी, लेकिन हाल ही में, फ्रांस की फूड सेफ्टी एजेंसी ANSES द्वारा किए गए एक नए शोध ने हमारे इस भरोसे की नींव हिला दी है।
जी हां, यह स्टडी एक ऐसी चौंकाने वाली सच्चाई सामने लाती है, जिसे पढ़कर आप शायद अपनी कांच की बोतल को फेंकने पर मजबूर हो जाएं। अध्ययन बताता है कि आपकी पसंदीदा कांच की बोतलें प्लास्टिक से कहीं ज्यादा माइक्रोप्लास्टिक कणों से दूषित हो सकती हैं। आइए विस्तार से जानते हैं।
स्टडी में सामने आए चौंकाने वाले नतीजे
वैज्ञानिकों को भी इस बात पर यकीन नहीं हुआ जब उन्होंने अपने शुरुआती नतीजे देखे। उन्हें उम्मीद थी कि कांच की बोतलें प्लास्टिक की तुलना में साफ होंगी, लेकिन हुआ ठीक उलटा! इस अध्ययन में पाया गया कि कोल्ड ड्रिंक, नींबू पानी, आइस टी और बीयर जैसी चीजों की कांच की बोतलों में प्रति लीटर औसतन 100 माइक्रोप्लास्टिक कण पाए गए। यह संख्या प्लास्टिक या धातु के डिब्बों में पाए जाने वाले कणों से 50 गुना ज्यादा थी।
कहीं ढक्कन ही तो नहीं गुनहगार?
शोधकर्ताओं को लगा कि इस गंदगी का मुख्य कारण बोतल के ढक्कन हो सकते हैं। उन्होंने देखा कि बोतलों में पाए गए ज्यादातर प्लास्टिक कणों का रंग और बनावट ढक्कन के बाहरी पेंट से मिलती-जुलती थी। इसका मतलब है कि कांच की बोतलों को बंद करने वाले धातु के ढक्कनों के बाहरी पेंट से ही ये छोटे-छोटे प्लास्टिक कण ड्रिंक्स में मिल रहे थे।
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कौन-सी ड्रिंक सबसे ज्यादा दूषित?
इस शोध में पाया गया कि बीयर की बोतलों में सबसे ज्यादा माइक्रोप्लास्टिक थे, औसतन प्रति लीटर 60 कण। इसके बाद नींबू पानी में लगभग 40% माइक्रोप्लास्टिक मिले। हैरान करने वाली बात यह थी कि सादे और सोडा पानी में सभी तरह की पैकेजिंग में माइक्रोप्लास्टिक का स्तर काफी कम था। कांच की बोतलों में लगभग 4.5 कण प्रति लीटर थे, जबकि प्लास्टिक की बोतलों में केवल 1.6 कण थे।
एक और दिलचस्प बात यह सामने आई कि वाइन की बोतलें बाकी कांच की बोतलों से कम दूषित थीं, क्योंकि उनमें धातु के ढक्कनों की बजाय कॉर्क स्टॉपर लगे होते हैं।
क्या है समस्या का समाधान?
ANSES के शोध निदेशक गुइलौम डुफ्लोस का कहना है कि अभी यह साफ नहीं है कि ऐसा क्यों होता है, लेकिन उन्होंने एक संभावित समाधान भी बताया है। शोध से पता चला है कि ढक्कनों को अच्छी तरह से धोकर और इथेनॉल-पानी के घोल से साफ करने से उनमें माइक्रोप्लास्टिक कणों की संख्या में काफी कमी लाई जा सकती है।
माइक्रोप्लास्टिक का बढ़ता खतरा
यह शोध हमें माइक्रोप्लास्टिक के बढ़ते खतरे की याद दिलाता है। 1950 के दशक में प्लास्टिक का उत्पादन 1.5 मिलियन टन था, जो 2022 में बढ़कर 400.3 मिलियन टन हो गया है। प्लास्टिक का यह बढ़ता उपयोग और खराब कचरा प्रबंधन हमारे पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है।
माइक्रोप्लास्टिक, जो 5 मिलीमीटर से भी छोटे प्लास्टिक के टुकड़े होते हैं, अब दुनिया के सबसे गहरे महासागर से लेकर माउंट एवरेस्ट तक हर जगह पाए जा रहे हैं। वे इंसानों के दिमाग, प्लेसेंटा और समुद्री जीवों के पेट तक में देखे गए हैं।
यह नया अध्ययन हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम अपनी रोजमर्रा की चीजों के बारे में क्या जानते हैं और हमें हेल्दी रहने के लिए और क्या कदम उठाने चाहिए। हो सकता है कि अब कांच की बोतलों को भी इस्तेमाल करने से पहले थोड़ा सोचना पड़े।
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Source:
ScienceDirect: https://www.sciencedirect.com/science/article/pii/S0889157525005344?via%3Dihub
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