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    भारत में हर चौथा व्यक्ति मानसिक स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहा, पहचानें लक्षण

    By Jagran NewsEdited By: Anurag Mishra
    Updated: Sat, 17 Jun 2023 02:08 PM (IST)

    मानसिक बीमारी मष्तिष्क से जुड़ी एक बीमारी है। मष्तिष्क से ही हमारे सोचने-समझने व निर्णय लेने की क्षमता का नियंत्रण होता है। यहां कोई गड़बड़ी हुई तो इससे स्वयं पर नियंत्रण रखने की क्षमता का निरंतर ह्रास होने लगता है

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    मानसिक सेहत से याददाश्त पर पड़ रहा असर

    नई दिल्ली, जागरण डेस्क। इंटरनेशनल जर्नल आफ सोशल साइकियाट्री में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर चौथा व्यक्ति मानसिक स्वास्थ्य समस्या, जैसे चिंता, तनाव, अवसाद, आदि से ग्रस्त है। वहीं यूनिसेफ की 2021 की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में करीब 14 फीसद बच्चे अवसाद की गिरफ्त में हैं। लगातार बढ़ रही इस समस्या के समाधान के लिए हम सभी को मानसिक स्वास्थ्य को लेकर सजग होने की जरूरत है। मानसिक बीमारियों से जूझ रहे व्यक्ति की समस्याओं को अक्सर लोग भूत- प्रेत, पागलपन, दिमागी दौरा, मिर्गी का दौरा समझकर कई लोग शर्मिंदा महसूस करने लगते हैं। दूसरों को पता न चल जाए, इस सोच से ग्रसित होकर लोग चुपके से झाड़ फूंक, जादू- टोना, तंत्र मंत्र का सहारा लेने लगते हैं। कई लोग इसे इतने हल्के में लेते हैं कि वे झोलाछाप की शरण में चले जाते हैं। तांत्रिक व झोलाछाप इस स्थिति का फायदा उठाते हैं, जिस कारण मरीज व उसके परिजन इनके दलदल में फंसते ही चले जाते हैं। नतीजा यह होता है कि मरीज की दशा दिन प्रतिदिन बद से बदतर होती जाती है कई मामलों में तो अवसाद की चपेट में आकर मरीज की जान तक चली जाती है।

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    महाराजा अग्रसेन हॉस्पिटल के सीनियर न्यूरोसर्जन डॉ. मनीष कुमार बताते हैं कि सबसे पहले हमें मानसिक दिक्कतों से जूझ रहे व्यक्ति की समस्याओं को एक आम बीमारी की तरह समझने की जरूरत है। जब हम किसी समस्या को बीमारी के तौर पर लेेंगे तब तांत्रिक या झोला छाप की चपेट में नहीं फसेंगे। हमें यह समझना होगा कि दवाओं, मनोवैज्ञानिक तरीकों या जरूरत पड़ने पर शल्य चिकित्सा के इस्तेमाल से इस बीमारी का सटीक इलाज संभव है।

    डॉ. मनीष बताते हैं कि मानसिक बीमारी मष्तिष्क से जुड़ी एक बीमारी है। मष्तिष्क से ही हमारे सोचने-समझने व निर्णय लेने की क्षमता का नियंत्रण होता है। यहां कोई गड़बड़ी हुई तो इससे स्वयं पर नियंत्रण रखने की क्षमता का निरंतर ह्रास होने लगता है। हम क्या कर रहे हैं, किस बात पर हमारी क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए, यह समझने की क्षमता हमारी चली जाती है। समस्या यह है कि हमारे देश में इस स्थिति को लोग पागलपन या भूत प्रेत से जुड़ी समस्या का नाम देकर पल्ला झाड़ने में जुट जाते हैं। लेकिन पश्चिमी देशों में ऐसा नहीं है। वहां मानसिक बीमारियों को के प्रति एक आधुनिक वैज्ञानिक समझ विकसित हुई है। वहां इन बीमारियों पर गहन वैज्ञानिक शोध हुआ जिसके आधार पर मानसिक बीमारियों के उपचार के लिए एक वैज्ञानिक पद्धति का विकास हुआ है। योग्य डॉक्टर ही मानसिक बीमारियों से जूझ रहे मरीजों का कुशलता पूर्वक उपचार करते हैं। कई मामलों में इन बीमारियों को समझने के लिए डॉक्टर रोगियों के साथ काफी ज्यादा समय बिताते हैं। दुर्भाग्यवश हमारे देश में प्रशिक्षित डॉक्टरों की कमी है। प्रशिक्षित डॉक्टरों के अभाव व जागरूकता की कमी के कारण ही लोग झाड़ फूंक, जादू टोना या झोला छाप के पास जाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। लोग उनकी चपेट में लगातार फंसते ही चले जाते हैं और शोषण के शिकार होने लगते हैं।

    डॉ. मनीष कुमार बताते हैं कि समस्या यह है कि हमारे देश में झाड़ फूंक, जादू टोना करने वालों के खिलाफ कोई स्पष्ट पारदर्शी नीति नहीं बनाई गई। स्पष्ट नीति के अभाव में कुछ जगहों पर खासकर छोटे शहरों में इन्हें इनके क्रियाकलाप को सामाजिक स्वीकृति मिल जाती है। छोटे शहरों में तो झोलााप के साथ भी यह स्थिति है। इस स्थिति से बचने के लिए समाज में जागरुकता लाना जरूरी है। हमें मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं पर बड़े पैमाने पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना चाहिए। इन समस्याओं पर खुलकर बात करनी चाहिए। मानसिक समस्याओं को दबाने की प्रवृत्ति का त्याग करना चाहिए। मानसिक बीमारियों को एक आम बीमारी की तरह लेना चाहिए। मानसिक बीमारियों से जूझ रहे मरीजों के प्रति घृणा, दया या उदासीनता का भाव नहीं रखना चाहिए। उन्हें योग्य डॉक्टर से दिखाना चाहिए।

    डॉ. मनीष बताते हैं कि कुछ मामलों में मानसिक बीमारियों से जूझ रहा मरीज एकाएक बेहोशी की हालत में चला जाता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए न सिर्फ ऐसे मरीजों के परिजन बल्कि आसपास के लोगों की भी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। कई बार तो ऐसे मरीज होश में रहते हुए भी खुद पर नियंत्रण खो देते हैं। ऐसे में इनका निरंतर ख्याल रखना जरूरी हो जाता है ताकि अनियंत्रित होने पर इनपर काबू पाया जा सके।

    न्यूरोट्रांसमीटर के बीच संतुलन आवश्यक

    मस्तिष्क की कार्यप्रणाली संचालित करने वाले न्यूरोट्रांसमीटर के बीच संतुलन होना आवश्यक है। दिमाग में सामान्य तौर पर स्रावित होने वाले हार्मोंस सेरोटोनिन, डोपामाइन और एंडार्फिन जब असंतळ्लित हो जाते हैं तो मस्तिष्क की कार्यप्रणाली बिगड़ जाती है। इससे व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन आता है। यह मानसिक रोग का शुरुआती लक्षण होता है।

    याददाश्त पर पड़ता है असर

    चिंता, तनाव और अवसाद सहित किसी भी प्रकार की मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी हुई समस्या मानसिक रोगों की श्रेणी में आती है। यानी मानसिक रोग की स्थिति में व्यक्ति की मनोदशा, यादाशत, स्वभाव पर असर पड़ता है और व्यक्ति का अपने भावों पर कोई काबू नहीं रहता है।