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    दुनियाभर में तेजी से बढ़ रहा है कोलोरेक्टल कैंसर, एक खास जीन से शुरुआत में ही हो सकेगी पहचान

    कोलोरेक्टल कैंसर (Colorectal Cancer) के मामले दुनियाभर में तेजी से बढ़ रहे हैं। यह कैंसर बड़ी आंत में अनचाहे सेल ग्रोथ की वजह से होता है। लेकिन हाल ही में हुए एक रिसर्च में पाया गया कि एक जीन की मदद से कोलोरेक्टल कैंसर की शुरुआती स्टेज में पता लगाया जा सकता है।

    By mritunjay mishra Edited By: Swati Sharma Updated: Tue, 17 Jun 2025 12:29 PM (IST)
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    एमएनएनआइटी के विज्ञानियों ने पाया कि कोशिकाओं की वृद्धि और नियंत्रण से जुड़ा होता है यह जीन (Picture Courtesy: Freepik)

    मृत्युंजय मिश्र, नई दिल्ली। कोलोरेक्टल (बड़ी आंत) का कैंसर (Colorectal Cancer) विश्व स्तर पर सबसे तेजी से बढ़ते कैंसरों में से एक है और इसकी शुरुआती पहचान बड़ी चुनौती बनी हुई है। अब मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एमएनएनआइटी) के शोधकर्ताओं ने कोलोरेक्टल कैंसर की समय रहते पहचान करने में सहायक एक महत्वपूर्ण जीन खोज निकाला है। जैव प्रौद्योगिकी विभाग में हुए इस शोध में आरएसपीओ-2 नामक एक विशेष जीन की भूमिका को रेखांकित किया गया है, जो इस घातक बीमारी के शुरुआती चरण में बायोमार्कर यानी पहचान संकेतक के रूप में काम कर सकता है।

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    प्रोफेसर समीर श्रीवास्तव के निर्देशन में शोधार्थी अंकित श्रीवास्तव 2020 से बड़ी आंत के कैंसर पर काम कर रहे हैं। उनके अनुसार बड़ी आंत के कैंसर का पता लगाने के लिए वर्तमान में कई परीक्षण और प्रक्रियाएं इस्तेमाल की जाती हैं, जिनमें स्टूल टेस्ट, कोलोनोस्कोपी, बायोप्सी और इमेजिंग परीक्षण इत्यादि शामिल हैं।

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    जीन आधारित इस नैदानिक तकनीक में प्रारंभिक स्तर पर कैंसर की उपस्थिति का पता लगाया जा सकेगा, जिससे जीवन प्रत्याशा दर बढ़ेगी। प्रो. समीर बताते हैं कि आरएसपीओ-2 जीन आमतौर पर सेल्स की वृद्धि और नियंत्रण से जुड़ा होता है लेकिन कोलोरेक्टल कैंसर के रोगियों में यह जीन 'हाइपरमिथाइलेटेड' स्थिति में पाया गया है। यानी यह बंद अवस्था में चला जाता है और अपनी सामान्य सक्रियता खो देता है।

    यह परिवर्तन कैंसर की शुरुआत में ही दिखाई देने लगता है जिससे इसकी समय से पहले पहचान की संभावना बनती है। यह शोध अंतरराष्ट्रीय जर्नल क्लीनिकल कोलोरेक्टल कैंसर में प्रकाशन की प्रक्रिया में है। इस आशय का शोधपत्र बीएचयू और विभिन्न संस्थानों में हुए अंतराष्ट्रीय सेमिनारों में साझा किया जा चुका है।

    तकनीकी औजारों से खुला राज

    शोधकर्ताओं ने इस जीन की पड़ताल के लिए अत्याधुनिक आनलाइन बायोइन्फार्मेटिक टूल्स और कैंसर सेल लाइनों का सहारा लिया। जब प्रयोगशाला में कृत्रिम रूप से आरएसपीओ 2 को फिर से सक्रिय किया गया तो यह पाया गया कि कैंसर सेल्स की वृद्धि दर कम हो गई और उनकी घाव भरने की क्षमता भी धीमी पड़ गई। इसका मतलब यह हुआ कि यह जीन शरीर में एक तरह से कैंसर को रोकने वाले 'ब्रेक' की तरह काम करता है। प्रो. समीर श्रीवास्तव का कहना है कि आरएसपीओ-2 की सक्रियता की कमी से कैंसर कोशिकाएं तेजी से फैलने लगती हैं, जबकि इसकी पूर्ण उपस्थिति उन्हें नियंत्रित कर सकती है। इस लिहाज से यह जीन न केवल कैंसर की पहचान में सहायक हो सकता है बल्कि आगे चलकर इसका इस्तेमाल उपचार की रणनीतियों में भी किया जा सकता है।

    बड़ी आंत के हिस्से से शुरू होती है सेल्स की अवांछित वृद्धि

    कोलन कैंसर को कभी-कभी कोलोरेक्टल कैंसर भी कहा जाता है। यह शब्द कोलन कैंसर और रेक्टल कैंसर को मिलाकर बना है जो मलाशय में शुरू होता है। कोलन कैंसर मुख्य रूप से सेल्स की वृद्धि है जो बड़ी आंत के एक हिस्से में शुरू होती है जिसे कोलन कहा जाता है। कोलन बड़ी आंत का पहला और सबसे लंबा हिस्सा है। बड़ी आंत पाचन तंत्र का आखिरी हिस्सा है।

    पाचन तंत्र शरीर के इस्तेमाल के लिए भोजन को तोड़ता है। यह आमतौर पर सेल्स के छोटे-छोटे समूहों के रूप में शुरू होता है। जिन्हें पालीप्स कहा जाता है जो कोलन के अंदर बनते हैं। पालीप्स आमतौर पर कैंसर नहीं होते हैं लेकिन कुछ समय के साथ कोलन कैंसर में बदल सकते हैं। पालीप्स अक्सर लक्षण पैदा नहीं करते हैं। इस कारण से, डाक्टर कोलन में पालीप्स की जांच के लिए नियमित स्क्रीनिंग टेस्ट की सलाह देते हैं।

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