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    Breast Cancer Awareness Month 2023: कैसे होते हैं बेस्ट कैंसर के शुरुआती लक्षण और इन्हें पहचानना का तरीका?

    By Jagran NewsEdited By: Ruhee Parvez
    Updated: Wed, 18 Oct 2023 12:59 PM (IST)

    हर साल अक्‍टूबर के महीना में ब्रेस्ट कैंसर अवेयरनेस मंथ मनाया जाता है। इसका मकसद है लोगों में ब्रेस्‍ट कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के प्रति जागरूकता फैलाना। हम जीवनशैली को बेहतर और अपनी सतर्कता बढ़ाकर रखें तो कैंसर जैसी असाध्य बीमारियों के जोखिम को न केवल कम कर सकते हैं बल्कि शुरुआती चरण में इसे खत्म भी किया जा सकता है...

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    Breast Cancer Awareness Month: सही समय पर लक्षण पहचानना व उपाय अपनाना जरूरी

    नई दिल्ली। जब हम असंचारी रोगों की बात करते हैं, तो उसमें हाइ रिस्क फैक्टर यानी जोखिम कारकों को जानना आवश्यक है यानी ऐसी कौन-सी चीजें हैं, जिससे कैंसर जैसी बीमारी का खतरा रहता है। हालांकि कुछ अज्ञात कारण भी होते हैं लेकिन जो जोखिम कारक ज्ञात हैं, हम उनसे बचाव तो कर सकते हैं। खुद जांच करके या टेस्ट कराकर कैंसर को शुरुआत में ही पकड़ लेने से सफल इलाज हो सकता है। हर साल अक्टूबर के महीने में वर्ल्ड ब्रेस्ट कैंसर अवेयरनेस मंथ (Breast Cancer Awareness Month 2023) मनाया जाता है।

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    जुड़े हैं जोखिम के कई कारक

    • महिलाओं में स्तन कैंसर का जोखिम अपेक्षाकृत अधिक होता है। उम्र बढ़ने के साथ इसकी आशंका बढ़ती है।
    • यह कैंसर पुरुषों में भी हो सकता है। हालांकि यह कुल मामलों में एक-दो प्रतिशत ही होता हैं।
    • हम सोचते हैं यह आनुवांशिक कारणों से होता है, लेकिन यह पूरा सच नहीं है। जो जेनेटिक कैंसर होते हैं, वह बमुश्किल 5-10 प्रतिशत ही होते हैं।
    • आनुवांशिक जीन, बीआरसीए-1 और बीआरसीए-2, अगर किसी में हैं, तो उनमें स्तन कैंसर होने का जोखिम 50 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।
    • करीब स्वजन, जैसे-माता-पिता, भाई-बहन या बच्चों में यह बीमारी रह चुकी है, तो इसके होने की आशंका रहती है।

    खराब लाइफस्टाइल से बढ़ती है समस्या

    • बढ़ते शहरीकरण से दिनचर्या बदल रही है। अधिक उम्र में शादी और पहला बच्चा 30 वर्ष की आयु के बाद करने और स्तनपान नहीं कराने का चलन इस तरह की बीमारियों को न्योता दे रहा है।
    • अगर किशोर उम्र या कम उम्र में त्वचा रोग के इलाज के दौरान रेडिएशन दी जाती है, तो उससे भी आगे कैंसर हो सकता है।
    • आजकल मासिकधर्म की शुरुआत 10-12 वर्ष की उम्र में हो जाती है, जबकि पहले यह 14-15 वर्ष की उम्र में होती थी। जल्दी शुरू होने से साइकिल बढ़ते हैं और एस्ट्रोजन, पोजेस्ट्रान जैसे हार्मोन असंतुलित होते हैं।
    • वहीं मेनोपाज 55 वर्ष की आयु के बाद होने पर एस्ट्रोजन बढ़ने की आशंका रहती है।

    यह भी पढ़ें: महिलाएं ही नहीं पुरुष भी होते हैं ब्रेस्ट कैंसर का शिकार, एक्सपर्ट से जानें जरूरी बातें

    सावधानी है जरूरी

    अगर किसी में स्तन से जुड़ी बीमारियों का इतिहास है, तो उसे बाहर से ओरल गर्भ निरोधक गोलियां नहीं देनी चाहिए, क्योंकि इसमें एस्ट्रोजन व पोजेस्ट्रान होता है। वहीं, हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी का भी रिस्क फैक्टर जुड़ा है।

    सुरक्षा के लिए लाइफस्टाइल को बनाएं बेहतर

    • मोटापे से कई सारे कैंसर के जोखिम जुड़े हैं। फैट कोशिकाएं शरीर में एस्ट्रोजन बनाती हैं। कम मात्रा में भी अल्कोहल महिलाओं के लिए खतरनाक है।
    • अगर 30 मिनट ब्रिस्क वॉक कर रहे हैं, तो प्रयास करें हार्ट रेट बढ़े। इससे एस्ट्रोजन का स्तर नियंत्रित होता है।
    • कपालभांति करने से शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती है, जिससे कैंसर की आशंका कम होती है।
    • केमिकल और पेस्टिसाइड युक्त फलों और सब्जियों के सेवन से बचें। ऑर्गेनिक फलों-सब्जियों में एंटी ऑक्सीडेंट होता है, जो बीमारियों से बचाव करता है।
    • भोजन में वनस्पति तेलों का ही प्रयोग करना चाहिए। रेडी टू ईट खाद्य पदार्थों के रूप में जो ट्रांस फैटी एसिड खाते हैं, उन्हें स्तन कैंसर का खतरा अधिक होता है।
    • रेड मीट से भी मोटापा और कैंसर की आशंका बढ़ जाती है।
    • अगर बच्चों में शुरू से ही मोटापा नियंत्रित कर लें, वे खेलकूद करें, संतुलित भोजन की आदत डालें, तो आगे चलकर समस्या नहीं होगी।

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    खुद करें जांच और बढ़ाएं सतर्कता

    आप ब्रेस्ट सेल्फ एग्जामिनेशन कर सकते हैं। यह सामान्य सी तकनीक है, जिससे महिला खुद जांच करके डॉक्टर के पास जाती है। शरीर में कोई बदलाव होता है, जैसे- गांठ, सूजन या त्वचा अंदर की तरफ चली गई है या सिकुड़न आ रही है या आकार बदल रहा है, तो बीमारी का जल्दी पता चल जाएगा। दूसरा, 40-45 वर्ष की उम्र के बाद से एक बेसलाइन मेमोग्राम जरूर कराना चाहिए। यह स्क्रीनिंग हर दो साल में जरूर करा लेनी चाहिए।

    ब्रेस्ट सेल्फ एग्जामिनेशन

    पीरियड शुरू होने के एक हफ्ते के बाद ब्रेस्ट सेल्फ एग्जामिनेशन करना चाहिए। इसमें आईने के आगे खड़े होकर आकार को देखना है कि कहीं कोई त्वचा मोटी या कोई गांठ या रंग में कोई बदलाव तो नहीं हो रहा है। इसमें स्तन अस्थि तक एक वर्टिकल स्ट्रिप बनाकर जांच करते हैं। ध्यान रहे, 90 प्रतिशत मामलों में यह कैंसर नहीं होता। इसलिए इससे डरने की जरूरत नहीं है, यह केवल जागरूकता से जुड़ी प्रक्रिया है। जब आप जागरूक होंगे, तो डॉक्टर के पास जाएंगे। जाहिर है कि वहां सभी जरूरी जांच की जाएंगी, जिससे बीमारी की सही जानकारी व स्थिति का पता चलेगा।

    बीमारी को छिपाना नहीं, मिटाना है

    यह शरीर का ऐसा हिस्सा है, जिसके बारे में महिलाएं खुलकर बात नहीं करना चाहतीं। वे हिचकती हैं कि किस डॉक्टर के पास जाएं। गांठ बहुत बढ़ जाने पर किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ के पास चली जाती हैं। लेकिन ध्यान रखें स्तन की गांठों का इलाज सर्जन करता है। अगर 35 वर्ष से कम आयु है, तो वे अल्ट्रा सोनोग्राफी करते हैं, क्योंकि इसमें रेडिएशन नहीं होता। कैंसर की पुष्टि बायोप्सी से होने पर ही इलाज शुरू होता है। भारत में जागरूकता के अभाव के चलते यह समस्या बढ़ रही है। यही कारण है कि 80-90 हजार मौतें इस कैंसर से होती हैं। आप जागरूक होंगे, खुद जांच करेंगे, तो यह स्थिति उत्पन्न नहीं होगी।

    डॉ. अनीता खोखर

    विभागाध्यक्ष, कम्युनिटी मेडिसिन, सफदरजंग अस्पताल, नई दिल्ली

    बातचीत : ब्रह्मानंद मिश्र