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    मेडिकल फील्ड में बड़े बदलाव की उम्मीद! लैब में तैयार हुई बल्ड सर्कुलेशन वाली पहली Human Skin

    क्या आपने कभी सोचा है कि अगर किसी की त्वचा गंभीर रूप से जल जाए या किसी बीमारी से खराब हो जाए तो क्या उसे बदला जा सकता है? विज्ञान ने अब इसे संभव कर दिखाया है! वैज्ञानिकों ने पहली बार लैब में ऐसी मानव त्वचा विकसित की है जो न केवल असली जैसी दिखती है बल्कि उसमें अपना खुद का ब्लड फ्लो भी होता है।

    By Jagran News Edited By: Nikhil Pawar Updated: Mon, 25 Aug 2025 09:49 AM (IST)
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    विज्ञानियों ने प्रयोगशाला में विकसित की दुनिया की पहली मानव त्वचा (Image Source: Freepik)

    आइएएनएस, नई दिल्ली। मानव इतिहास में विज्ञान ने कई चमत्कार किए हैं, लेकिन हाल ही में शोधकर्ताओं ने एक ऐसा कदम उठाया है जिसने चिकित्सा जगत में नई उम्मीद जगा दी है। पहली बार वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में पूरी तरह कार्यात्मक मानव त्वचा तैयार की है, जिसमें अपनी ही रक्त वाहिकाएं मौजूद हैं। यह खोज न केवल विज्ञान की शक्ति को दर्शाती है, बल्कि उन मरीजों के लिए भी नई राह खोलती है जो गंभीर त्वचा रोगों या जलने जैसी स्थिति से जूझ रहे हैं।

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    इस नई त्वचा में क्या है खास?

    ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड विश्वविद्यालय की वैज्ञानिक टीम ने स्टेम कोशिकाओं की मदद से यह त्वचा विकसित की है। स्टेम कोशिकाएं ऐसी विशेष कोशिकाएं होती हैं जिनमें शरीर की किसी भी अन्य कोशिका में बदल जाने की क्षमता होती है। इन्हीं की बदौलत शोधकर्ताओं ने त्वचा की ऐसी प्रतिकृति तैयार की है जिसमें रक्त वाहिकाएं, कैपिलरी, तंत्रिकाएं, हेयर फॉलिकल और यहां तक कि इम्यून कोशिकाएं भी मौजूद हैं। यह संरचना इतनी वास्तविक है कि इसे प्राकृतिक मानव त्वचा से अलग पहचान पाना मुश्किल है।

    क्यों जरूरी है यह खोज?

    अब तक डॉक्टरों और वैज्ञानिकों के पास त्वचा रोगों का अध्ययन करने के सीमित साधन थे। पारंपरिक प्रयोगों में वास्तविक मानव त्वचा जैसी बारीकियां नहीं मिल पाती थीं। लेकिन इस नए मॉडल के जरिए रोगों को और गहराई से समझा जा सकेगा और नई दवाओं या उपचारों का परीक्षण भी अधिक सटीकता से किया जा सकेगा।

    जलने की स्थिति में स्किन ग्राफ्टिंग को लेकर अक्सर चुनौतियां सामने आती थीं, लेकिन यह तकनीक भविष्य में ऐसे मरीजों के लिए जीवनदायी साबित हो सकती है।

    छह साल की मेहनत का नतीजा

    इस अद्भुत प्रयोगशाला मॉडल को तैयार करने में करीब छह साल लगे। शोधकर्ताओं के अनुसार, यह मॉडल सोरायसिस, एटोपिक डर्मेटाइटिस और स्क्लेरोडर्मा जैसी गंभीर और आनुवंशिक बीमारियों के उपचार में उपयोगी साबित हो सकता है। इससे भविष्य में त्वचा संबंधी विकारों के इलाज की राह काफी आसान हो जाएगी।

    कैसे बनाई गई यह त्वचा?

    शोधकर्ताओं ने पहले मानव त्वचा कोशिकाओं को लेकर उन्हें स्टेम कोशिकाओं में बदल दिया। इन कोशिकाओं को विशेष वातावरण में विकसित होने दिया गया, जिससे छोटे-छोटे "स्किन ऑर्गेनोइड्स" बने। बाद में इन्हीं ऑर्गेनोइड्स में रक्त वाहिकाएं जोड़ दी गईं। इस तरह प्रयोगशाला में तैयार हुई यह त्वचा न सिर्फ त्रि-आयामी (3D) है बल्कि कार्यात्मक भी है।

    भविष्य की संभावनाएं

    यह खोज आने वाले समय में चिकित्सा विज्ञान की दिशा बदल सकती है। अब नई दवाओं की टेस्टिंग, गंभीर त्वचा विकारों का इलाज और प्रत्यारोपण की जटिलताओं का समाधान करना संभव हो सकेगा। सबसे बड़ी बात यह है कि मरीजों को अधिक सुरक्षित और असरदार इलाज उपलब्ध कराया जा सकेगा।

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