कड़वी कॉफी से नाराज एक हाउसवाइफ ने दुनिया को दी थी 'Filter Coffee' की सौगात
बीसवीं सदी की शुरुआत में कॉफी का स्वाद आज जैसा बिल्कुल नहीं था। उस समय कॉफी बनाना मतलब तले में जमा पाउडर, कप में आता चूरा और हर घूंट में कड़वाहट... कभी पानी में कॉफी के दाने उबाल दिए जाते, तो कभी कपड़ों या मेटल की छलनी से छानने की कोशिश की जाती, मगर कोई भी तरीका संतोषजनक नहीं था। कॉफी पीना आदत तो थी, लेकिन इसका स्वाद हर बार निराश कर देता था।

Filter Coffee History: बेहद दिलचस्प है फिल्टर कॉफी की कहानी (Image Source: Jagran)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। कई लोगों के लिए सुबह की एक अच्छी शुरुआत अक्सर एक कप कॉफी से होती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आज दुनिया भर में लोग जो स्मूद और बिना कड़वाहट वाली फिल्टर कॉफी पीते हैं, उसके पीछे एक साधारण हाउसवाइफ की जिज्ञासा और थोड़ी-सी नाराजगी छिपी है? जी हां, यह कहानी है जर्मनी की मेलिटा बेंट्ज (Melitta Bentz) की, जिनकी रसोई में हुआ एक छोटा-सा प्रयोग दुनिया की कॉफी संस्कृति को हमेशा के लिए बदल गया। आइए विस्तार से जानते हैं इसका दिलचस्प इतिहास (Filter Coffee History)।

कड़वी कॉफी से परेशान एक मां
बीसवीं सदी की शुरुआत में कॉफी बनाना कोई आसान काम नहीं था। उस समय कॉफी ऐसे तरीकों से पकाई जाती थी जिसमें बर्तनों में उबलते हुए दाने सीधे पानी में डाले जाते थे, जिसका नतीजा था- एक कड़वी, तलछट से भरी हुई कॉफी, जिसे पीना कई बार मजबूरी जैसा लगता था।
उस दौर में इस्तेमाल होने वाले कपड़े या मेटल के फिल्टर भी खास मदद नहीं करते थे। कपड़े के फिल्टर बार-बार धोने पड़ते, धातु की छलनी दाने रोक नहीं पाती थी और पर्कोलेटर कॉफी को कई बार उबालकर उसका स्वाद और भी खराब कर देते थे।
लेकिन मेलिटा बेंट्ज को यह स्वीकार नहीं था कि कॉफी हमेशा ऐसी ही रहनी चाहिए। रोज-रोज खराब कॉफी पीकर आखिर एक दिन उन्होंने तय कर लिया कि अब इसमें बदलाव जरूरी है।

एक साधारण प्रयोग, जिसने दुनिया बदल दी
साल था 1908! एक सुबह कॉफी फिर से वैसी ही बनी- कड़वी और तले में जमा पाउडर से भरी। गुस्से में उन्होंने अपनी रसोई में पड़े सामान पर नजर दौड़ाई। तभी उनकी निगाह अपने बेटे की नोटबुक में रखे ब्लॉटिंग पेपर पर पड़ी। यह वही कागज था जो स्याही सोखने के लिए इस्तेमाल होता था।
उनके दिमाग में बत्ती जली (How Filter Coffee was Invented)। उन्होंने एक छोटे पीतल के बर्तन के तले में कील से कुछ छेद किए, फिर ब्लॉटिंग पेपर का गोल टुकड़ा काटकर बर्तन के अंदर लगाया। अब उन्होंने कॉफी पाउडर डाला और ऊपर से गर्म पानी डाला।
जो तरल नीचे टपका, वह उनके लिए चमत्कार से कम नहीं था। जी हां, उन्हें मिली साफ, सुगंधित और बिना किसी दाने की कॉफी। स्वाद भी बिल्कुल संतुलित। ऐसे में, यह छोटा-सा घरेलू प्रयोग (Origin of Filter Coffee) आने वाले समय में कॉफी बनाने की पूरी प्रक्रिया की दिशा बदलने वाला था।

रसोई से शुरू हुई एक नई कंपनी
अपनी खोज की उपयोगिता समझते हुए मेलिटा ने जून 1908 में इसका पेटेंट करवाया। कुछ ही महीनों बाद उन्होंने अपने घर से ही एक छोटी कंपनी शुरू कर दी- अपने परिवार के साथ। पति कागजी काम संभालते, बच्चे हाथ से फिल्टर बनाने में मदद करते और मेलिटा स्थानीय बाजारों में लोगों को अपनी खोज दिखातीं।
उस समय कई लोग मानते थे कि कॉफी का कड़वा होना उसकी पहचान है, लेकिन जब उन्होंने पहली बार इस नए फिल्टर से बनी कॉफी चखी, तो उनकी राय तुरंत बदल गई। "ना दाने, ना कड़वाहट"- यह एक नए दौर की शुरुआत थी।
घर से दुनिया तक, मेलिटा का सफर
कुछ ही सालों में मेलिटा के बनाए पेपर फिल्टर पूरे जर्मनी में लोकप्रिय हो गए। मांग बढ़ी तो परिवार ने एक छोटी फैक्ट्री शुरू कर दी। दो विश्व युद्धों के कठिन समय में भी उनका व्यवसाय टिका रहा। कभी उत्पादन घटा, कभी कच्चे माल की कमी हुई, लेकिन परिवार ने अपनी खोज को बचाए रखा। युद्ध के बाद परिस्थितियां बदलीं, पर पेपर फिल्टर की उपयोगिता वैसी ही बनी रही। मेलिटा ने जीवनभर अपनी कंपनी को संभाला और उसे आगे बढ़ाया। 1950 में उनके निधन के बाद उनका परिवार इस विरासत को आगे ले गया।

कॉफी की दुनिया पर मेलिटा की अमिट छाप
आज "Melitta Group" दुनिया के 50 से अधिक देशों में मौजूद है। हर दिन अरबों लोग जिस फिल्टर कॉफी का आनंद लेते हैं, वह उसी मूल सिद्धांत पर काम करती है जिसे मेलिटा बेंट्ज ने एक सुबह अपने बेटे के कागज से समझा था- कॉफी के दानों में से गर्म पानी धीरे-धीरे छनकर गुजरना और पेपर फिल्टर के जरिए शुद्ध, टेस्टी ड्रिंक बनकर निकलना।
चाहे कोई हाथ से पोर-ओवर कॉफी बना रहा हो, किसी कैफे में ऑटोमैटिक मशीन चल रही हो या घर में कॉफी मेकर- हर बार वह वही प्रक्रिया दोहराई जाती है जिसे मेलिटा ने 1908 में खोजा था।
एक सवाल जिसने दुनिया बदल दी
मेलिटा बेंट्ज कोई वैज्ञानिक नहीं थीं, न ही तकनीकी विशेषज्ञ। उनके पास न बड़े निवेश थे और न ही किसी इंडस्ट्री का अनुभव। उनके पास बस एक साधारण-सा सवाल था- "क्या यह बेहतर हो सकता है?"
यही सवाल उनकी खोज की नींव बना। बता दें, कभी-कभी दुनिया बदलने के लिए बड़े शोध केंद्र नहीं, बल्कि रसोई की मेज पर रखा एक कागज ही काफी होता है।

दुनिया को दी 'फिल्टर कॉफी' की सौगात
जब आज दुनिया में लगभग तीन अरब लोग सुबह उठकर फिल्टर कॉफी की पहली चुस्की लेते हैं, तो वे अनजाने ही मेलिटा बेंट्ज की उस सोच का हिस्सा बन जाते हैं, जिसने एक साधारण क्षण को वैश्विक विरासत में बदल दिया।
एक मां की जिज्ञासा, थोड़ी-सी निराशा और यह विश्वास कि रोजमर्रा की छोटी चीजें भी बेहतर बनाई जा सकती हैं- इन्हीं ने दुनिया को वह कॉफी दी जिसे हम आज इतना पसंद करते हैं।
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