पान तो खाते होंगे, मगर क्या आप जानते हैं इसका दिलचस्प इतिहास? सुहागरात से भी जुड़ा है कनेक्शन
भारतीय खानपान में पान का अहम स्थान रहा है। ये न केवल माउथ फ्रेशनर है बल्कि भारतीय संस्कृति और मेहमाननवाजी का भी प्रतीक माना जाता है। रामायण में भी पान का जिक्र मिलता है। वहीं मुगल काल में रानियां इसे होंठ लाल करने के लिए खाती थीं। सुहागरात में भी इसका महत्व है।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। भारत में खानपान की कई चीजें मशहूर हैं। यहां आपको खाने की कई वैरायटीज मिल जाएंगी। आपने देखा होगा कि अक्सर लोग खाने के बाद यहां पर पान जरूर खाते हैं। ये एक तरह से माउथ फ्रेशनर और डेजर्ट का काम करता है। मीठे पान का बीड़ा खाने पर मानो आपको जन्नत नसीब हो जाता है। पान भारत की एक ऐसी परंपरा है, जो सदियों से लोगों की जिंदगी का हिस्सा रहा है।
आपको बता दें कि चाहे किसी खास मौके की बात हो या कुछ अच्छा स्वाद लेने का मन हो, पान हर जनरेशन के लोगों को खूब पसंद आता है। इसे सिर्फ एक माउथ फ्रेशनर नहीं, बल्कि इंडियन कल्चर और मेहमाननवाजी का प्रतीक भी माना जाता है। इसका जिक्र तो प्राचीन ग्रंथों और आयुर्वेद में भी मिलता है। पान का पत्ता औषधीय गुणों से भरपूर होता है। ये डाइजेशन को तो बेहतर बनाता ही है, साथ ही सांसों को भी ताजगी देता है। राजाओं-महाराजाओं के समय में पान को शाही ठाट-बाट के साथ पेश किया जाता था।
क्या है पान का इतिहास?
इसे अलग-अलग मसालों, चूना, कत्था, इलायची और गुलकंद से सजाया जाता था। नॉर्थ इंडिया में तो बनारसी पान बहुत फेमस है। वहीं वेस्ट बंगाल में मीठा पान लोगों को खूब पसंद आता है। यहां तक कि साउथ इंडिया में भी पान की अपनी एक खास परंपरा रही है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि पान का इतिहास क्या है? ये कैसे हमारी लाइफ का हिस्सा बन गया? अगर नहीं, तो आइए हम आपको विस्तार से बताते हैं-
रामायण में मिलता है जिक्र
आपको बता दें कि भारत में पान का इतिहास पांच हजार साल से भी ज्यादा पुराना है। पान की उत्पत्ति के बारे में बात करें तो इसे संस्कृत शब्द 'पर्ण' से लिया गया है। इसका मतलब पत्ती होता है। पान चबाना एक पुरानी परंपरा रही है। इसका जिक्र रामायण में भी किया गया है।
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भगवान राम चबाते थे पान
आप जब भी रामायण का पाठ करेंगे तो आपको अयोध्या कांड में पढ़ने को मिलेगा कि भगवान राम भूख पर काबू पाने के लिए खाली समय में पान चबाते थे। यही नहीं, जब हनुमानजी मां सीता को ढूंढते हुए लंका पहुंचे थे और उन्होंने रावण की सोने की लंका में आग लगा दिया था तब माता सीता ने भी उन्हें पान के पत्ते की माला दी थी। तभी से हनुमान जी को लोग पान के पत्तों की माला अर्पित करते हैं।
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हिमालय पर बाेया गया था पान का बीज
ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान शिव और माता पार्वती ने ही मिलकर पान का पहला बीज हिमालय पर बोया था। यही कारण है कि इसे पवित्र माना जाता है और पूजा पाठ में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। पांडवों ने भी जब कौरवों से युद्ध जीत लिया था तब पूजा के दौरान पान के पत्ते का इस्तेमाल किया गया था।
मुगल काल की रानियां भी खाती थीं पान
ऐसा कहा जाता है कि जब मुगल भारत आए थे तब उन्होंने पान का इस्तेमाल माउथ फ्रेशनर के रूप में किया था। वे पान को कत्था और चूना लगाकर खाते थे। साथ ही लौंग, इलायची भी डालते थे। शाही मेहमानों को भी खाने के बाद पान का बीड़ा दिया जाता था। मुगल काल की कुछ रानियां तो अपने होंठों काे लाल करने के लिए भी पान खाती थीं।
सुहागरात पर दूल्हा-दुल्हन को खिलाया जाता है पान
वहीं पान का संबंध शारीरिक संबंध से भी है। आपको बता दें कि शादी के बाद सुहागरात के समय दूल्हा दुल्हन को भी पान खाने के लिए दिया जाता था। ऐसा माना जाता है कि शारीरिक संबंध बनाने के दाैरान पान खाने से आपको ज्यादा आनंद मिलता है। आज के समय तो यूपी में कई जगहों पर सुहागरात पान भी मिलता है।
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