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    दाल-भात से लेकर चाय तक, एक पापड़ बढ़ा देता है हर पकवान का स्वाद; 1500 साल पुराना है भारत में इसका इतिहास

    Updated: Sun, 08 Sep 2024 01:42 PM (IST)

    भारतीय थाली का वह चटपटा साथी जिसके बिना खाने का स्वाद अधूरा सा लगता है! पापड़ सिर्फ एक क्रिस्पी स्नैक नहीं बल्कि देश की विविधता का प्रतीक है। देश के हर कोने में आपको अलग-अलग तरह के पापड़ (Papad In Indian Cuisine) मिलेंगे जो भारतीय संस्कृति की समृद्धि का जीता-जागता उदाहरण हैं। आइए पापड़ की इस रोचक दुनिया में एक सफर करें और इसके कुछ अनोखे पहलुओं को जानें।

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    दिलचस्प है भारत में पापड़ का इतिहास, कुछ इस तरह हुई थी इसे खाने की शुरुआत

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। दाल-भात से लेकर चाय तक, पापड़ हर पकवान का स्वाद बढ़ा देता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस छोटे से, लेकिन स्वादिष्ट नाश्ते का इतिहास (History Of Papad) कितना पुराना है? बता दें, इसकी शुरुआत करीब 2500 साल पुरानी मानी जाती है। कुछ इतिहासकारों के मुताबिक, पापड़ का जन्म भारत में हुआ था। उस समय, लोग दालों को पीसकर और सुखाकर पतले-पतले टुकड़े बनाते थे। इन्हें ही बाद में तलकर पापड़ बनाया जाने लगा। आइए जानते हैं पापड़ के इतिहास के बारे में कुछ रोचक तथ्य।

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    क्या आप जानते हैं पापड़ की कहानी? 

    क्या आप जानते हैं कि आप जो पापड़ आज खाते हैं, वह हजारों साल पुराना है? जी हां, पापड़ का इतिहास लगभग 2500 साल पुराना है। बौद्ध-जैन धर्म के प्राचीन ग्रंथों में पापड़ का जिक्र मिलता है। खाद्य इतिहासकार केटी आचार्य ने अपनी पुस्तक 'ए हिस्टोरिकल डिक्शनरी ऑफ इंडियन फूड' में बताया है कि प्राचीन काल में लोग उड़द, मसूर और चना दाल से बने पापड़ खाते थे। क्या आपने कभी सोचा है कि ये पापड़ कैसे बनाए जाते थे? दरअसल, इन दालों को पीसकर मसालों के साथ मिलाया जाता है और फिर इसे सूखाकर पापड़ तैयार होते थे।

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    प्राचीन भारत में पापड़ 

    दिलचस्प बात है कि भारत में पापड़ का इतिहास 1500 साल पुराना है, जैसा कि ऐतिहासिक अभिलेखों से पता चलता है। जैन साहित्य में पापड़ का सबसे पहला उल्लेख मिलना भी कोई संयोग नहीं है। हिस्ट्रीवाली की फाउंडर शुभ्रा चटर्जी बताती हैं कि मारवाड़ के जैन समुदाय के लोग पापड़ को अपनी यात्राओं में इसलिए साथ ले जाते थे क्योंकि यह हल्का और स्वादिष्ट होने के साथ-साथ आसानी से ले जाया जा सकता था।

    महिलाओं की मेहनत का नतीजा

    कल्पना कीजिए, एक समय था जब घरों में महिलाएं मिलकर बैठकर पापड़ बनाती थीं। वे घंटों मेहनत करके ताज़ी दालों को पीसती थीं, मसाले डालती थीं और फिर बड़े धैर्य से पापड़ों को सूखाती थीं। आज भी कई गांवों में यह परंपरा देखने को मिलती है। भारत में पापड़ की कहानी बहुत पुरानी है। आज यह न केवल हमारे खाने का स्वाद बढ़ाता है बल्कि कई लोगों के लिए रोजगार का साधन भी बन गया है। लिज्जत पापड़ जैसी कंपनियां इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण हैं।

    एक पापड़ ने बदली कई जिंदगियां

    कल्पना कीजिए, 1959 में सात गुजराती महिलाओं ने मिलकर एक छोटा सा उद्यम शुरू किया। इन महिलाओं ने न केवल स्वादिष्ट पापड़ बनाए बल्कि एक मजबूत सहकारी संस्था की नींव भी रखी। आज, लिज्जत पापड़ देश की सबसे बड़ी पापड़ निर्माता कंपनियों में से एक है। इस संस्था की संस्थापकों में से एक, जसवंतीबेन जमनादास पोपट को उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया था। आज, लिज्जत पापड़ हजारों महिलाओं को रोजगार दे रहा है और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम कर रहा है।

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