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    हर साल जून में ही क्यों मनाया जाता है LGBTQIA+ Pride Month? जानें इसका इतिहास और महत्व

    Updated: Sat, 07 Jun 2025 09:44 PM (IST)

    जून का महीना दुनिया भर में LGBTQIA+ कम्युनिटी के लिए Pride Month के रूप में मनाया जाता है लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर हर साल यह जून में ही क्यों आता है (Why Is Pride Month Celebrated In June) और इसका क्या महत्व है? आइए इस आर्टिकल में विस्तार से जानते हैं इसका महत्व।

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    जून की वो ऐतिहासिक घटना जिसने LGBTQIA+ कम्युनिटी को दी नई पहचान (Image Source: Freepik)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। हर साल जून का महीना LGBTQIA+ कम्युनिटी के लिए गर्व, एकजुटता और अधिकारों की लड़ाई की याद दिलाता है। यह वह समय होता है जब दुनिया भर में लोग इससे जुड़े विभिन्न आंदोलनों की उपलब्धियों का जश्न मनाते हैं और समानता के लिए चल रहे संघर्ष को याद करते हैं।

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    रंग-बिरंगे फ्लैग्स, परेड और इवेंट्स के पीछे छिपी है एक ऐसी सच्ची कहानी, जिसने दुनिया भर में समानता की अलख जलाई। ऐसे में, क्या आपने कभी सोचा है कि प्राइड मंथ जून में ही क्यों मनाया जाता है (Pride Month Significance)? अगर नहीं, तो बता दें कि इसका जवाब छिपा है एक ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शन में, जिसने एक बड़े आंदोलन की नींव रखी।

    स्टोनवॉल विद्रोह: जहां से शुरू हुआ बदलाव

    साल था 1969 और जगह थी न्यूयॉर्क शहर का एक फेमस समलैंगिक बार- स्टोनवॉल इन। उस दौर में LGBTQIA+ कम्युनिटी के लोगों को समाज से तो तिरस्कार झेलना ही पड़ता था, बल्कि पुलिस भी आए दिन उनके ठिकानों पर छापे मारती थी... लेकिन 28 जून की रात कुछ अलग हुआ।

    जब पुलिस ने स्टोनवॉल इन पर छापा मारा, तो वहां मौजूद लोगों ने चुपचाप गिरफ्तारी देने की बजाय पहली बार खुलकर विरोध किया। ट्रांसजेंडर, ड्रैग परफॉर्मर्स और क्वीर अफ्रीकी-एशियाई लोगों ने मिलकर पुलिस की ज्यादतियों के खिलाफ आवाज उठाई। कई दिन तक यह प्रदर्शन चला और इसे इतिहास में 'स्टोनवॉल विद्रोह' के नाम से जाना गया।

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    जून में ही क्यों मनाते हैं प्राइड मंथ?

    स्टोनवॉल विद्रोह की पहली वर्षगांठ पर, 28 जून 1970 को न्यूयॉर्क में क्रिस्टोफर स्ट्रीट लिबरेशन डे मार्च निकाली गई। यही पहली बार था जब LGBTQIA+ समुदाय ने सार्वजनिक रूप से अपने हक और पहचान के लिए परेड की। इसके बाद लॉस एंजेलेस, शिकागो जैसे शहरों ने भी ऐसी परेड्स आर्गेनाइज की और जून का महीना धीरे-धीरे प्राइड मंथ के रूप में मनाया जाने लगा।

    विरोध से उत्सव तक का सफर

    आज भले ही प्राइड परेड में संगीत, नाच-गाना और रंग-बिरंगे झंडे नजर आते हों, लेकिन इसकी जड़ें एक मजबूत विरोध में हैं। यह महीना LGBTQIA+ कम्युनिटी की उस लड़ाई का प्रतीक है जो उन्होंने समाज में जगह बनाने, बराबरी पाने और अपने अस्तित्व को स्वीकार करवाने के लिए लड़ी।

    सिर्फ उत्सव नहीं है प्राइड मंथ

    कई देशों में आज भी LGBTQIA+ समुदाय को भेदभाव, हिंसा और कानूनी पाबंदियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में, प्राइड मंथ केवल उत्सव नहीं, बल्कि जागरूकता फैलाने और बदलाव की मांग करने का समय भी है।

    हालांकि जून को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्राइड मंथ माना जाता है, लेकिन हर देश में इसका स्वरूप अलग हो सकता है। भारत में, उदाहरण के तौर पर, दिल्ली क्वीर प्राइड परेड आमतौर पर नवंबर में होती है। वहीं कुछ देशों में LGBTQIA+ समुदाय को खुलकर सामने आने की भी आजादी नहीं है। फिर भी, छोटे-छोटे प्रयासों के जरिए वहां भी यह आंदोलन जारी है।

    प्राइड फ्लैग के अलग-अलग रंग

    प्राइड का सबसे ज्यादा पहचाना जाने वाला चिन्ह रेनबो फ्लैग है, जिसे 1978 में कलाकार गिल्बर्ट बेकर ने डिजाइन किया था। इस झंडे के हर रंग का खास मतलब है- जैसे लाल जीवन को दर्शाता है, नारंगी उपचार को, हरा प्रकृति को, और बैंगनी आत्मा को। आज के दौर में इस झंडे में नए रंग और डिजाइन्स जोड़े गए हैं ताकि ट्रांसजेंडर, इंटरसेक्स और रंगभेद झेलने वाले लोगों को भी इन्क्लूसिविटी दी जा सके।

    सिर्फ एक महीने की बात नहीं

    प्राइड मंथ केवल एक महीने का उत्सव नहीं है, बल्कि यह समाज में स्वीकार्यता, समझ और समर्थन का प्रतीक है। यह समय है जब हम इतिहास से सीखते हैं, LGBTQIA+ समुदाय की आवाजों को आगे लाते हैं और ऐसे इन्क्लूसिव माहौल की कोशिश करते हैं जो सिर्फ जून तक सीमित न रहे।

    प्राइड मंथ LGBTQIA+ समुदाय की उस जद्दोजहद की याद है, जिसने दुनिया को यह दिखाया कि पहचान, प्रेम और समानता के अधिकार सभी को मिलने चाहिए। जून का महीना सिर्फ उत्सव नहीं, बल्कि एक आंदोलन है- जो हमें याद दिलाता है कि बदलाव संभव है, अगर हम साथ खड़े हों।

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