Sindoor khela 2024: मां दुर्गा की विदाई पर खेली जाती है सिंदूर की होली, जानें कैसे हुई इस रस्म की शुरुआत
दशमी तिथि के साथ नवरात्र का पावन पर्व समाप्त होने वाला है। हर साल नवरात्र के अगले दिन Dussehra मनाया जाता है। बंगाली समुदाय इस पर्व को विजयादशमी के तौ ...और पढ़ें

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। नौ दिनों तक चलने वाला नवरात्र का पावन पर्व अब खत्म होने वाला है। 9 दिनों तक मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-अर्चना के बाद दशमी पर दशहरे के साथ इस पर्व का समापन होता है। देशभर में नवदुर्गा और दशहरे के पर्व को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। देश भर में इस त्योहारों की धूम देखने को मिलती है, लेकिन बंगाल में यहां एक अलग ही रौनक नजर आती है। यहां पर नवरात्र के त्योहार को दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत नवरात्र की पांचवें दिन यानी पंचमी से होती है और यह दशमी पर खत्म होता है।
यहां दशहरे को विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है और इस दिन सिंदूर खेला (Sindoor khela 2024 History) नाम की परंपरा भी आयोजित की जाती है। यह बंगालियों की एक प्रमुख परंपरा है, जिसे हर साल धूमधाम से मनाया जाता है। बंगाली मान्यताओं के अनुसार दशहरा के अगले दिन सिंदूर खेला की रस्म (Sindoor khela 2024 Celebration) की जाती है। इस मौके पर आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे क्या है यह रस्म और इसका इतिहास। साथ ही जानेंगे क्यों इसे इतना खास (Sindoor khela Significance) माना जाता है।
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कौन लेता सिंदूर खेला में हिस्सा
सिंदूर खेला बंगाली हिंदू महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। परंपरागत रूप से यह रस्म विवाहित महिलाओं के लिए है, जो इस पूरे रीति-रिवाज के साथ मनाती हैं। दरअसल ऐसा माना जाता है कि यह रस्म विवाहित महिलाओं के लिए सौभाग्य लाता है और उनके पतियों की उम्र भी बढ़ता है। दुर्गा पूजा भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसे पश्चिम बंगाल में धूमधाम से मनाया जाता है और विजयादशमी इस उत्सव के अंत का प्रतीक होता है। यह दिन शादीशुदा महिलाओं के लिए बेहद खास होता है और वह साल भर इसका इंतजार करती हैं।
क्या है सिंदूर खेला की रस्म
इस दिन बंगाली समुदाय के लोग मां दुर्गा को सिंदूर चढ़ाते हैं। साथ ही मां रानी के पंडालों में मौजूद लोग एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर दुर्गा पूजा की शुभकामनाएं देते हैं। इसके साथ ही इस रस्म की शुरुआत होती है। इस रस्म के दौरान महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और धूमधाम से दुर्गा पूजा का समापन करती हैं। इसी परंपरा को सिंदूर खेला के नाम से जाना जाता है।
क्यों मनाई जाती है यह रस्म
9 दिनों तक नवरात्र का त्योहार मनाया जाता है। बंगाल में ऐसी मान्यता है कि मां दुर्गा 10 दिनों के लिए अपने मायके आती हैं और इसी उपलक्ष्य में उनके स्वागत के लिए बड़े-बड़े पंडालों में मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है। बंगाली समुदाय में दुर्गा पूजा पंचमी तिथि से शुरू होती है ,जिसका अंत दशमी तिथि के दिन सिंदूर की होली खेल कर किया जाता है। इस दिन सिंदूर की होली खेल कर मां दुर्गा को विदा किया जाता है, इसलिए बंगाली समुदाय में इसे सिंदूर खेला के नाम से जानते हैं।
क्या है सिंदूर खेला का इतिहास
बात करें इस दिन के इतिहास की, तो दुर्गा महोत्सव पर सिंदूर खेला का इतिहास लगभग 450 साल पुराना है। माना जाता है कि इस रस्म की शुरुआत जमींदारों की दुर्गा पूजा के दौरान हुई। मान्यता है कि जब कोई महिला इस रस्म में हिस्सा लेती है, तो वह विधवा होने से बच जाती है। यह रस्म महिलाओं की ताकत का प्रतीक है और माना जाता है कि यह एकता और शांति को बढ़ावा देती है।

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