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    आखिर क्यों लगाया जाता है Ganpati Bappa Morya का जयकारा? द‍िलचस्‍प है गणेश जी के इस नाम की कहानी

    भारत में गणेश चतुर्थी का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। घरों और पंडालों में बप्पा की सुंदर मूर्तियां स्थापित की जाती हैं। गणपति बप्पा मोरया का जयकारा श्रद्धा से लगाया जाता है। लोकमान्य तिलक ने महाराष्‍ट्र में गणेश उत्सव की शुरुआत की थी। इस खास मौके पर गणपत‍ि बप्‍पा मोरया का जयकारा लगाया जाता है।

    By Vrinda Srivastava Edited By: Vrinda Srivastava Updated: Sat, 23 Aug 2025 04:02 PM (IST)
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    क्‍या है गणपति बप्पा मोरया कहने के पीछे की कहानी ?

     लाइफस्‍टाइल डेस्‍क, नई द‍िल्‍ली। हमारे यहां भारत में त्‍योहारों की रौनक देखने लायक होती है। उन्‍हीं में से गणेश चतुर्थी का उत्‍सव सबसे खास माना जाता है। ये त्‍योहार सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि इसे पूरे उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है। घर-घर में बप्पा की स्थापना होती है, पंडालों में सुंदर प्रतिमाएं सजती हैं और भक्तगण पूरे भक्‍त‍ि भाव से पूजा-अर्चना करते हैं।

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    ढोल-ताशों की गूंज, मिठाइयों की खुशबू और भक्तिरस में डूबे भजन वातावरण को और भी पावन बना देते हैं। मुंबई में तो ये उत्‍सव बहुत ही भव्‍य तरीके से मनाया जाता है। इसी बीच जब भी बप्पा का जयकारा गूंजता है 'गणपति बप्पा मोरया', तो हर कोई श्रद्धा और उमंग से भर जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस जयकारे का क्‍या मतलब है? गणेश जी को बप्‍पा का नाम कैसे म‍िला? ये जयकारा क्‍यों लगाया जाता है? अगर नहीं तो आपको हमारा ये लेख जरूर पढ़ना चाह‍िए। हम आपको इसके पीछे की दिलचस्प कहानी बताने जा रहे हैं। आइए जानते हैं व‍िस्‍तार से -

    क्यों कहते हैं भगवान गणेश को ‘बप्पा’

    जैसा क‍ि आप सभी जानते हैं क‍ि भगवान गणेश को प्यार से गणपति बप्पा कहा जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर उनके नाम के साथ ‘बप्पा’ क्यों जोड़ा जाता है? दरअसल, महाराष्ट्र में पिता को ‘बप्पा’ कहा जाता है। यहां के लोग गणेश जी को प‍िता मानते हैं। यही कारण है क‍ि उन्हें बप्पा पुकारा जाने लगा। लोकमान्य तिलक ने जब महाराष्ट्र से गणेशोत्सव की शुरुआत की थी, तब ये नाम और भी ज्‍यादा मशहूर हो गया।

    मोरया नाम की है अनोखी कहानी

    धीरे-धीरे ये नाम पूरे देश में फैल गया। लेकिन सिर्फ बप्पा ही नहीं, उनके नाम के साथ एक और शब्द जुड़ा है, और वो है ‘मोरया’। इसके पीछे की कहानी और भी रोचक है। ऐसा माना जाता है क‍ि मोरया शब्द का संबंध महाराष्ट्र के चिंचवाड़ गांव से है। लगभग 600 साल पहले यहां मोरया गोसावी नाम के महान गणेश भक्त रहते थे। कहा जाता है कि 1375 ईस्वी में जन्मे मोरया गोसावी को भगवान गणेश का ही अंश माना जाता था।

    95 किलोमीटर दूर दर्शन करने जाते थे मोरया

    उनकी आस्था इतनी गहरी थी कि हर साल गणेश चतुर्थी पर वे चिंचवाड़ से लगभग 95 किलोमीटर दूर स्थित मयूरेश्वर मंदिर तक पैदल दर्शन करने के ल‍िए जाया करते थे। ये परंपरा उन्होंने अपनी 117 साल की उम्र तक निभाई। लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती गई, वे पैदल इतनी दूर तक जाने में असमर्थ हो गए। एक रात भगवान गणेश उनके सपने में आकर बोले क‍ि तुम्हें अब मंदिर आने की जरूरत नहीं है।

    चिंचवाड़ में ही स्थापित कर दी गई मूर्ति

    उन्‍होंने सपने में मोरया से कहा क‍ि कल जब तुम स्नान करके कुंड से बाहर आओगे, वहां मैं तुम्‍हारा इंतजार करूंगा। अगली सुबह जब मोरया नहाने कुंड पर गए थे तो उनके सामने बप्पा की वही छोटी-सी मूर्ति रखी हुई थी जैसी उन्होंने अपने सपने में देखी थी। मोरया गोसावी ने उस दिव्य मूर्ति को चिंचवाड़ में ही स्थापित किया।

    इन वजहों से गूंजने लगा जयकारा

    धीरे-धीरे उनकी भक्ति और ये मंदिर दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गए। लोग दर्शन के लिए यहां आने लगे और गणेश जी का नाम लेते हुए मोरया का नाम भी जोड़ने लगे। यही कारण है कि आज भी जब लोग भगवान गणेश का जयकारा लगाते हैं, तो गणपति बप्पा मोरया! की गूंज सुनाई देती है। आज इस जयकारे के बि‍ना बप्‍पा की पूजा अधूरी मानी जाती है।

    गणेश उत्सव की ऐसे हुई शुरुआत

    आपको बता दें क‍ि महाराष्ट्र में सबसे पहले लोकमान्य तिलक ने हिंदुओं को एकत्र करने के उद्देश्य से पुणे में 1893 में गणेश उत्सव की शुरुआत की थी। तब ये तय किया गया कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी (अनंत चतुर्दशी) तक गणेश उत्सव मनाया जाए। ये उत्‍सव 10 द‍िनों तक चलेगा।

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    Disclaimer: इस लेख में दी गई सभी जानकारी सामान्य उद्देश्य के लिए है। यहां दी गई किसी भी प्रकार की जानकारी का उद्देश्य क‍िसी की भावनाओं को आहत पहुंचाना नहीं है। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया इस लेख में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें।