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    Chhath Puja 2025: प्रकृति की उपासना और आत्म-अनुशासन का महापर्व है 'छठ', देता है 'जीवन दर्शन' का संदेश

    Updated: Sun, 26 Oct 2025 05:38 PM (IST)

    भारत की सनातन संस्कृति में त्योहारों का महत्व सिर्फ परंपरा निभाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमें प्रकृति और जीवन के बुनियादी मूल्यों से जोड़ता है। इसी कड़ी में छठ महापर्व एक ऐसा अनूठा उदाहरण है, जहां मनुष्य और प्रकृति का संबंध अपनी सबसे शुद्ध और श्रेष्ठतम रूप में दिखता है। यह आत्म-अनुशासन, स्वच्छता, और अटूट आस्था का महापर्व बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश की सीमाओं को पार कर आज पूरी दुनिया में श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है। मनुष्य और प्रकृति के बीच तादात्म्य के इस सनातन संस्कार पर पेश है मालिनी अवस्थी का आलेख...

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    जानें क्यों सिर्फ परंपरा नहीं, 'जीवन दर्शन' है छठ महापर्व (Image Source: Freepik)

    मालिनी अवस्थी, नई दिल्ली। आत्म अनुशासन, स्वच्छता और प्रकृति प्रदत्त संस्कारों को अपनी श्रेष्ठतम ऊर्जा में देखना हो तो छठ के महापर्व की आध्यात्मिक ऊर्जा को एक बार जी कर देखिए। छठ महापर्व भारतीय सनातन परंपरा का जीवंत स्वरूप है, जहां हमारे पूर्वजों ने ऐसी संस्कृति का निर्माण किया जो प्रकृति की उपासना करती है (Chhath Puja 2025 Significance), सूर्य-जल-भूमि-कृषि-अन्न को कृतज्ञ भाव से नमन करती है।

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    पश्चिमी संस्कृति के लिए सबक

    आस्था का यह महापर्व बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश में जिस श्रद्धा से मनाया जाता है, वह स्तुत्य है। बिहार, झारखंड, पूर्वांचल की परिधि लांघकर छठ का पर्व आज पूरे देश में ही नहीं, विदेश में भी मनाया जा रहा है तो इसके पीछे है इसमें व्याप्त एकता, समानता, स्वच्छता व निर्मलता की मूल भावना। इस वर्ष संभावना है कि छठ पर्व यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल हो जाएगा। वर्ष में एक दिन के लिए ‘पर्यावरण दिवस’ मनाने वाली पश्चिमी संस्कृति के लिए छठ महापर्व अपने आप में एक शिक्षाप्रद महापाठ के समान साबित हो सकता है, जिसे समझकर यह संसार मनुष्यता के बुनियादी सरोकार का बोध कर सकेगा, भारतीय संस्कृति को अंगीकृत कर सकेगा।

    सृष्टि का प्राचीनतम पर्व

    छठ का पर्व अद्वितीय है। छठ प्रकृति की आराधना का उत्सव है! कृतज्ञ होने का, परमार्थ, संस्कार का उत्सव है छठ। आज के नए युग में जब सबकुछ मशीनीकरण की ओर भाग रहा है, ऐसे में छठ का महापर्व मनुष्य और प्रकृति के सनातन तादात्म्य का पवित्रतम साक्ष्य है। इसको सृष्टि का प्राचीनतम पर्व कहा जा सकता है। छठ में जल में खड़े होकर डूबते और उगते उस सूर्य की आराधना है, जो चराचर जगत का आधार है। जल और सूर्य से ही जीवन है। जीवन बना रहे, इस भाव की कृतज्ञता बनी रहे, मन में विनम्रता बनी रहे, छठ का महापर्व हमें यही सिखाने प्रति वर्ष आता है।

    अद्भुत है छठ की अनुभूति

    कार्तिक मास सबसे पवित्र मास माना गया है। कार्तिक शुरू होते ही हवाओं में हल्की-सी ठंड का आभास और तन-मन में उस ठंड को समेटने की ललक बढ़ जाए तो समझिए कि छठ आ गया। घास पर ओस की बूंद की चमक, ऐसे वातावरण में दूर कहीं जब छठ का कोई गीत सुनाई दे। उस गीत को सुनते ही रोम-रोम घर पहुंचने को मचलने लगे तो समझिए कि छठ आ गया। केले की गहर गदराने लगे, अमरूद, शरीफा डाल पर इतराने लगे, समझिए कि छठ आ गया। छत पर बैठकर गेहूं सूखने की प्रतीक्षा होने लगे और बाजार में रास्ते के दोनों तरफ सुपली, दउरा, फलों के मनोहारी दृश्य दिखने लगें, तो समझिए कि छठ आ गया। रेलवे स्टेशन पर घर पहुंचने को बेचैन खड़ी बैठी कतारें और सब राहें घर की ओर मुड़ने लगें तो समझिए कि छठ आ गया।

    जोड़े जोड़े फलवा सुरुज देव
    घटवा पे तीवई चढ़ावेले हो
    जोड़े जोड़े फलवा सुरुज देव
    घटवा पे तीवई चढ़ावेले हो
    जल बिच खड़ा होई दर्शन ला
    आसरा लगावेले हो
    जल बिच खड़ा होई दर्शन ला
    आसरा लगावेले हो!

    अध्यात्म का अद्वितीय आनंद

    छठ महापर्व मनुष्य के अपने अंतर्मन में प्रकृति को साधने की प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया का आध्यात्मिक आनंद वही जान सकता है जिसने छठ का व्रत किया हो या इसका सहभागी रहा हो। छठ एक त्योहार भर नहीं है। छठ तो एक भावना है, एक ऐसी भावना जो सबको बांध कर रखती है, फिर वह चाहे देश में हो या परदेस में। छठी मैया से घर दुवार परिवार की कुशलता की निर्मल कामना को अपने अंचरा में बांध कर जब घर की मातृ शक्ति छठ पर्व की तैयारी में जुटती है तो लगता है साक्षात् भवानी ही निर्जला उपवास में बैठकर चारों दिन अनुष्ठान कर रही हों, गुड़ की खीर बना रही हों, ठेकुआ बना रही हों, पूरे परिवार समेत दउरा लेकर चल रही हों।

    प्रार्थना का दिव्यभाव

    कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की छठी ही छठी मैया हैं। लोक मान्यता में छठी मैया को सूर्य भगवान की बहन माना गया है। सभी मनोरथ पूर्ण करने वाली छठी मैया हमारे सारे कष्टों का नाश करती हैं। सूर्य जीवन हैं, आत्मा कारक हैं। हमारे यहां सूर्य को पिता माना गया है। उगते सूर्य को तो सभी पूजते हैं किंतु डूबते हुए सूर्य को अरघा (अर्घ्य) देना एक तरह से अपने पितरों को सादर यह आमंत्रण देने का पर्व है कि हे परम पिता, कृपया इसी सृष्टि में, इसी धरा पर, इसी वंश में, इसी घर में फिर कल भी आइए। आइए आज की तरह सूरज बनकर, ताकि कल भी आपकी संततियों की भोर हो सके। सूर्य विश्वास हैं। अनंत समय से चले आ रहे सृष्टि के अखंड विश्वास। सूर्य भगवान प्रकाश ही नहीं जीवन देने वाले हैं, आरोग्य देने वाले हैं, सूर्य की प्रार्थना का यह भाव अद्भुत है!

    स्वदेशी और प्रकृति का प्राचुर्य

    गंगा जी हों या गांव का पोखर, यमुना जी हों या समुद्र की जल राशि, एक-एक घाट पर ठंड में कमर तक पानी में डूबे हुए सहस्त्र परिवार सूर्य को अरघा देते हुए साक्षात समाधिस्थ से हो जाते हैं। भीतर जल, चहुंओर जल, सामने सृष्टि नियंता साक्षात सूर्यदेव! ऐसी घड़ी में मौन ही अभिव्यक्ति है, भाव ही प्रकृति है! छठ का यह दिव्य दृश्य मन में अपनी सनातन संस्कृति के प्रति कैसी श्रद्धा उत्पन्न कर देता है। छठ प्रकृति का त्योहार है। छठ में शामिल होने वाली हर एक चीज प्राकृत होती है, सुपली हो या दउरा, फूल हो या फल, दीया हो या कोंसी या फिर खुद सूर्य हो या नदी, सब कुछ प्राकृतिक और स्वदेशी होता है। आज जब मिट्टी के दीयों की जगह सिरेमिक्स, चाइनीज लाइट्स और वैक्स (कैंडल्स) का प्रयोग हो रहा है। खाने में पैकेज्ड फूड का इस्तेमाल हो रहा है। मगर वहीं बात जब छठ की हो तो आज भी हर घाट पर या घरों की छतों पर मिट्टी के दीप जगमगाते हैं।

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