दुनियाभर में लगातार बढ़ रहा है Slow Fashion का चलन, जानें पर्यावरण के लिए क्यों है यह इतना जरूरी?
आजकल हर कोई जल्दी से जल्दी सब कुछ पाना चाहता है ऐसे में स्लो लिविंग और स्लो फैशन जैसे विचार ठंडी हवा के झोंके जैसे हैं। Slow Fashion धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रहा है। ये फैशन का वो तरीका है जिसमें कपड़ों को जल्दी-जल्दी बनाने और बेचने के बजाय धीरे-धीरे और ध्यान से बनाया जाता है। आइए सीमा झा से इस बारे में विस्तार से जानते हैं।

सीमा झा, नई दिल्ली। Slow Fashion: अगर आप एआई से जुड़ी खबरों को आम सूचना मानकर आगे बढ़ जाना चाहते हैं, किसी प्रकार का नवाचार रोमांच नहीं देता, डिजिटल दौर में हरदम आपको कुछ अपर्याप्त सा महसूस होता है तो आप अकेले नहीं हैं। दरअसल, आप भी ऐसे लोगों में शामिल हैं जो बाजार, प्रचार व विज्ञापनों के नियंत्रण में नहीं, बल्कि सहजता के आकर्षण में बने हैं। कम में खुशी, संतोष और प्रकृति के प्रति जागरूकता आपका स्वभाव है।
वास्तव में यही है स्लो लिविंग की वह अवधारणा, जो कि बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशकों में इटली में हुए ‘स्लो फूड’ आंदोलन से जुड़ी है। यह आंदोलन फास्टफूड के बढ़ते चलन के प्रतिक्रिया के रूप में सामने आया। इसी से प्रेरित होकर सोशल एक्टिविस्ट केट फ्लेटचर ने वर्ष 2007 में फैशन इंडस्ट्री में स्लो फैशन की वकालत की थी।
बता दें कि स्लो फैशन में कपड़ों की गुणवत्ता पर जोर होता है, मात्रा पर नहीं। इसलिए यहां कपड़ों के फैब्रिक, डाई या धागों की वेस्टेज न के बराबर होती है। फास्ट और ट्रेंडी दिखने की चाहत में जब चाहे फैशनेबल कपड़ों को इकटठा करने का हिमायती नहीं है स्लो फैशन। यहां हर पहनावा क्लासिक और टाइमलेस ब्यूटी लिए होता है।
सितारे दे रहे धार
सेलेब्रिटी जगत स्लो फैशन की अवधारणा को धार देने व इसे आम लोगों तक पहुंचाने में आज मुख्य भूमिका में हैं। जैसे, ग्रैमी विजेता रिकी केज कान जैसे बड़े वैश्विक मंच पर भी अपने आउटफिट को दोहराने में भी गर्व महसूस करते हैं। अधिक समय नहीं हुआ जब दक्षिण की अभिनेत्री कीर्ति सुरेश ने मां की 30 साल पुरानी साड़ी पहनी और उनकी यूं लंबे समय तक साड़ी को सहेजकर रखने की कला की प्रशंसा भी की। 69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के मौके पर आलिया भट्ट ने अपनी शादी की साड़ी पहनकर सबका ध्यान खींचा। अभिनेत्री दीया मिर्जा ने जहां अपनी शादी पर नानी की साड़ी पहनी, तो वहीं यामी गौतम ने अपनी मां की।
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इसी तरह, दीपिका पादुकोण ने अपनी मेहंदी सेरेमनी के दौरान मरून कलर का सूट पहना, जिसे अपनी सालगिरह पर रिपीट भी किया। बताते चलें कि कुछ दशक पूर्व महंगे कपड़े खरीदना एक लंबे समय का निवेश माना जाता था। अलमारी के एक विशेष कोने में सिल्क, बनारसी आदि महंगे कपड़ों को किसी खास मौके के लिए सुरक्षित रखा जाता। अच्छी गुणवत्ता वाली फैब्रिक युक्त कुछ ही जोड़ी हों तो वे ही समृद्धि की अनुभूति करातीं। उस खुशी की बराबरी फास्ट फैशन नहीं कर सकता।
फैशन उद्योग की पहल
शिल्पी गुप्ता उत्तर प्रदेश व गुजरात के स्थानीय कारीगरों के साथ काम करते हुए प्राचीन विरासत को वैश्विक मंच तक ले जा रही हैं। रोजी अहलुवालिया खादी व स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देकर वैश्विक मंचों पर प्रस्तुत कर रही हैं। मेघालय के डेनियल सिम उत्तर-पूर्व की विरासत रिंडिया, जो कि पारंपरिक रूप से गारो व खासी की पहचान रही है, को दुनिया के बड़े फैशन मंच पर प्रदर्शित कर चुके हैं। ये सभी भारत टेक्स 2025 में शामिल हुए।
भारत सरकार के साथ इसकी अन्य आयोजनकर्ता आलेख फाउंडेशन की संस्थापक डॉ. रेनी जाय भी स्लो फैशन पर कार्यरत हैं। वे मानती हैं कि विश्व मंच पर स्लो फैशन की जागरुकता बढ़ी है। रेनी के अनुसार, ‘आज पारंपरिक फैब्रिक को भी लग्जरी और हाइ फैशन की मांग पूरा करने वाला बनाया जा रहा है, जिसे और आगे ले जाना है!’
बढ़ा मूल्य बड़ी चुनौती
‘स्लो फैशन की राह में बड़ी चुनौती है-ऐसे पहनावों की कीमत। ऐसे पहनावे पसंद तो आते हैं, पर देखना होगा कि लोग खरीद पा रहे हैं या नहीं।’- डेनियल सियम, फैशन डिजाइनर
आधुनिकता व परंपरा का मेल
‘स्लो फैशन हमारी समृद्ध विरासत, संस्कृति को स्वस्थ रखने में मदद करेगा। क्योंकि इससे स्थानीय कारीगरों को बढ़ावा मिलेगा।‘-शिल्पी गुप्ता, फैशन डिजाइनर
बदलनी होगी धारणा
‘स्लो फैशन वाले कपड़े पहनकर आपका व्यक्तित्व शानदार बनता है। इसमें पर्यावरण के प्रति आपका सरोकार और नैतिक पहल दिखती है।‘-रोजी अहलुवालिया, फैशन डिजाइनर
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