Prada के नए कलेक्शन में ‘कोल्हापुरी चप्पलों' ने मारी एंट्री! यहां जानें क्यों हैं ये चप्पलें इतनी खास
लग्जरी ब्रांड प्राडा (Prada) ने अपने समर-स्प्रिंग कलेक्शन 2026 में एक खास सैंडल शो किए हैं, जो बिल्कुल कोल्हापुरी चप्पलों (Kolhapuri Chappal) जैसे दिख रहे हैं। इसे लेकर सोशल मीडिया पर विवाद खड़ा हो गया है कि भारत की कला को कॉपी करने के बावजूद प्राडा ने भारत को क्रेडिट नहीं दिया है। आइए जानें क्यों कोल्हापुरी चप्पलें इतनी पसंद की जाती हैं।

Prada कलेक्शन में 'कोल्हापुरी चप्पलें' (Picture Courtesy: Instagram)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। मिलान में आयोजित प्राडा (Prada) स्प्रिंग समर 2026 शो सोशल मीडिया पर काफी चर्चा में है, लेकिन इस बार चर्चा का कारण डिजाइन नहीं, बल्कि कुछ और है। दरअसल, प्राडा ने अपने कलेक्शन में कोल्हापुरी चप्पल (Kolhapuri Chappal) जैसी डिजाइन की सैंडल पेश की। ये चप्पल देखने में हू-बहू कोल्हापुरी चप्पल जैसी लग रही थीं। लेकिन परेशान करने वाली बात यह थी कि प्राडा ने भारतीय कारीगरों को कोई क्रेडिट नहीं दिया (Prada Kolhapuri controversy)।
(Picture Courtesy: Instagram)
इस बात से लोग काफी नाराज हैं कि प्राडा ने भारत का नाम क्यों ज्रिक नहीं किया, जबकि उनकी सैंडल साफ-साफ कोल्हापुरी की कॉपी हैं। इसके कारण सोशल मीडिया पर बहस छिड़ चुकी है कि इंटरनेशल फैशन ब्रांड आखिर इंडिया को क्रेडिट देना कब शुरू करेंगे। हालांकि, यह एक अच्छा मौका है, लोगों को कोल्हापुरी चप्पलों के बारे में बताने का। आइए जानते हैं कि असली कोल्हापुरी चप्पल कैसी होती हैं, कहां बनती है और इनकी खासियत क्या है?
कोल्हापुरी चप्पल- इंडियन हैंडिक्राफ्ट की पहचान
कोल्हापुरी चप्पल महाराष्ट्र के कोल्हापुर की पारंपरिक हस्तशिल्प कला है, जिसका इतिहास 13वीं शताब्दी से जुड़ा है। यह चमड़े की बनी आरामदायक चप्पल है, जिसकी खासियत इसकी हैंडवोवन डिजाइन और नेचुरल टैन रंग है। इसे पूरी तरह हाथ से बनाया जाता है, जिसमें कारीगर महीनों मेहनत करते हैं। हैंडिक्राफ्ट का अनोखा नमूना होने के कारण इसे जीआई टैग भी मिला हुआ है।
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इन चप्पलों को बनाने की प्रक्रिया इन्हें बेहद खास बनाती है। इन्हें बनाने के लिए कारिगर सबसे पहले हाई-क्वालिटी के लेदर को चुनते हैं। इसके बाद इस लेदर को मुलायम बनाया जाता है, शेप दिया जाता है और चप्पल की डिजाइन में काटा जाता है। इन चप्पलों का डिजाइन इनकी खासियत होती हैं और इन्हें अलग पहचान देती हैं। आपको बता दें कि यह पूरी प्रक्रिया हाथ से होती है और इसमें किसी भी मशीन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
इन चप्पलों में अंगूठे के पास एक रिंग बनी होती है, जो चप्पल की ग्रिप को बेहतर बनाने में मदद करता है। इसके अलावा, पतली स्ट्रैप कोल्हापुरी चप्पलों को यूनिक डिजाइन देते हैं। इन चप्पलों की खासियत बस यहीं खत्म नहीं होती है। असली कोल्हापुरी चप्पल सालों-साल चलती है और काफी आरामदायक होती है।
महाराष्ट्र के ह्युमिड वातावरण में भी इन्हें पहनने से पैरों को आराम मिलता है, गर्मी नहीं लगती और लंबी दूरी तक आराम से वॉक भी कर सकते हैं। साथ ही, इन चप्पलों को बनाने के लिए जिस चमड़े का इस्तेमाल किया जाता है, वह समय के साथ पहनने वाले के पौरों के साथ ढलने लगते हैं, जिसके कारण इन चप्पलों जैसा आराम और किसी में नहीं मिलता।
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