कहानी गहनों की: क्या है पच्चीकम जूलरी, जिसमें आज भी बिना मशीन के हाथों से जड़े जाते हैं बेशकीमती पत्थर?
पच्चीकम जूलरी, भारतीय आभूषण कला की दुनिया में एक बहुत ही खास और ऐतिहासिक स्थान रखती है। यह पारंपरिक गहना मुख्य रूप से गुजरात के कच्छ क्षेत्र से आता है और अपनी शानदार कारीगरी तथा अनूठे डिजाइन्स के लिए जाना जाता है। बता दें, पच्चीकम सिर्फ एक आभूषण नहीं, बल्कि भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और शिल्प कौशल का एक जीवंत प्रतीक है। आइए, इस शानदार कला के बारे में विस्तार से जानते हैं।

Pachchikam Jewellery History: दिलचस्प है पच्चीकम जूलरी का इतिहास (Image Source: Jagran)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। भारत की पारंपरिक कलाओं में कुछ ऐसी विधाएं हैं, जो समय बीतने के बावजूद अपना आकर्षण कभी नहीं खोतीं। बता दें, पच्चीकम जूलरी (Pachchikam Jewellery) भी ऐसी ही एक अद्भुत कारीगरी है, जो गुजरात के कच्छ क्षेत्र से निकलकर आज दुनिया भर में अपनी अलग पहचान बना चुकी है। यह आभूषण न सिर्फ खूबसूरत होते हैं, बल्कि अपने भीतर एक लंबा इतिहास और गहरी सांस्कृतिक जड़ें भी समेटे होते हैं। आइए, 'कहानी गहनों की' सीरीज में विस्तार से जानते हैं इसके बारे में।

पच्चीकम क्या है?
पच्चीकम जूलरी एक पुरानी हस्तनिर्मित आभूषण कला है, जिसमें पत्थरों को चांदी में हाथ से दबाकर जड़ा जाता है। “पच्चीकम” शब्द गुजराती शब्द “पच्चीक” से जुड़ा है, जिसका अर्थ है- हाथ से दबाकर जमाना। यही तकनीक इस जूलरी की सबसे बड़ी पहचान है और हर पीस में कलाकार की मेहनत और हुनर साफ झलकता है।
कहां से शुरू हुई यह कला?
इस कला की शुरुआत लगभग 16वीं शताब्दी में कच्छ से मानी जाती है। उस समय इस क्षेत्र के कलाकार अपने बारीक काम और नजाकत के लिए प्रसिद्ध थे। पच्चीकम जूलरी सिर्फ शृंगार का साधन नहीं थी, बल्कि यह राजसी परिवारों की पहचान और प्रतिष्ठा का प्रतीक भी मानी जाती थी। धीरे-धीरे यह कला उनकी पीढ़ियों के साथ आगे बढ़ती गई और आज भी वहीं के शिल्पकार इस तकनीक को जीवित रखे हुए हैं।

“पच्चीक” तकनीक का अर्थ और महत्व
अन्य प्रकार की जूलरी में जहां मशीनों का इस्तेमाल होता है, वहीं पच्चीकम में पूरा काम हाथों से किया जाता है। कलाकार पहले चांदी का ढांचा तैयार करते हैं, फिर चुने हुए पत्थरों को सावधानी से उसमें दबाकर फिट करते हैं।
इस तकनीक की वजह से:
- हर पीस का लुक अलग और अनोखा होता है
- जूलरी को एक विशेष बनावट मिलती है
- यह लंबे समय तक टिकाऊ रहती है
- यह प्रक्रिया समय-साध्य होती है, इसलिए हर पीस की अपनी खास अहमियत है।
कौन-कौन सी सामग्री होती है इस्तेमाल?
पच्चीकम में मुख्य रूप से दो चीजें शामिल होती हैं- चांदी और रंगीले पत्थर। चांदी का मुलायम स्वभाव कलाकारों को खूबसूरत डिजाइन बनाने की सुविधा देता है। इसमें कई तरह के पत्थर जड़े जाते हैं, जैसे:
- हीरा
- पन्ना
- माणिक
- फिरोजा
- एमेथिस्ट
- और अन्य सेमी-प्रेशियस स्टोन्स
इन पत्थरों के रंग और चमक ज्वेलरी को एक दमकती हुई, शाही लुक देते हैं।

कारीगरी का महत्व
पच्चीकम जूलरी की खासियत सिर्फ उसके रूप में नहीं, बल्कि उस हाथों की कला में छिपी होती है जो उसे जन्म देती है।
कच्छ के कलाकार- पीढ़ियों से इस कला को आगे बढ़ा रहे हैं, बिना मशीनों के बारीक काम करते हैं और पत्थरों और धातु के संतुलन को भी समझते हैं। इन्हीं सब बातों का नतीजा है कि एक-एक पीस देखने वाले को मोहित कर देता है।
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
पुराने समय में यह जूलरी केवल राजघरानों के लिए बनाई जाती थी। राजा-महारानी इसे समारोहों में पहनते थे और इसे अपनी शान का प्रतीक मानते थे। इतना ही नहीं, 16वीं शताब्दी में यूरोपीय राजघरानों ने भी इसके डिजाइन से प्रेरणा लेकर अपनी जूलरी बनवानी शुरू कर दी थी। यह इस कला की लोकप्रियता और सुंदरता का प्रमाण है।

आधुनिक समय में पच्चीकम
आज के दौर में पच्चीकम जूलरी ने नए रूप में वापसी की है। कलाकार इसकी पारंपरिक शैली को आधुनिक फैशन से जोड़कर नए-नए डिजाइन बना रहे हैं।
ऑक्सीडाइज्ड सिल्वर का ट्रेंड
ऑक्सीडाइज्ड चांदी से बने पच्चीकम पीस विंटेज और रस्टिक लुक देते हैं। यह बोहो-फैशन के साथ खूब मेल खाते हैं और युवा पीढ़ी में काफी लोकप्रिय हैं।
वेस्टर्न आउटफिट्स के साथ भी परफेक्ट
अब यह जूलरी सिर्फ पारंपरिक पोशाकों तक सीमित नहीं है। इसे डेनिम, ड्रेसेज, इंडो-वेस्टर्न या किसी भी मॉडर्न लुक के साथ पहना जा सकता है। यही वर्सेटिलिटी इसे फैशन की दुनिया में फिर से ट्रेंड में लाकर खड़ा कर रही है।

पच्चीकम जूलरी का वजन और आकार
- पच्चीकम जूलरी का वजन आमतौर पर 50 से 100 ग्राम के बीच होता है।
- बड़ी नेकलेस और स्टेटमेंट पीस भारी होते हैं।
- वहीं रिंग, ईयररिंग और छोटे पेंडेंट हल्के और रोजाना पहनने लायक होते हैं।
- इसके बावजूद, इसकी बनावट ऐसी होती है कि पहनने में ज्यादा असुविधा नहीं होती।
पच्चीकम जूलरी केवल एक आभूषण नहीं, एक जीवित विरासत है- कच्छ की मिट्टी, उसके कलाकारों और भारत की सांस्कृतिक धरोहर का सुंदर मिलन। समय के साथ भले डिजाइन बदल गए हों, लेकिन इसकी आत्मा आज भी वैसी ही है- हाथों से गढ़ा गया अनोखा सौंदर्य। चाहे आप इसे उसकी परंपरा के लिए पसंद करें या उसके आधुनिक फ्यूजन लुक के लिए, पच्चीकम जूलरी हमेशा आपके संग्रह में एक खास चमक जोड़ती है।

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