कहानी गहनों की: 14वीं सदी से आज तक सबकी पहली पसंद है 'जरकन' जूलरी, सस्ते में मिलता है डायमंड जैसा लुक
जरकन उन रत्नों में से हैं जिनकी खूबसूरती सदियों से लोगों को मोहित करती आई है। चाहे बात हो हीरों जैसी चमक वाली कलरलेस जरकन जूलरी की या नीले, हरे, पीले, नारंगी और लाल रंगों में मिलने वाले रंगीन जरकन की, इनका इस्तेमाल हर दौर में गहनों को खास बनाने के लिए किया गया है। नेकलेस, ईयररिंग्स, कंगन, चूड़ियां- ये रत्न हर डिजाइन में अपनी अलग ही दमक छोड़ते हैं।

चमक-दमक में हीरे को टक्कर देता है जरकन (Image Source: Jagran)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। जरकन उन रत्नों में से है जो सदियों से लोगों को अपनी चमक, पारदर्शिता और खूबसूरत रंगों से आकर्षित करता आया है। खासकर बिना रंग वाले जरकन, जिन्हें कई जगह मतारा डायमंड भी कहा जाता है, प्राकृतिक हीरे का किफायती और बेहद प्रभावशाली विकल्प माने जाते हैं।
जरकन जूलरी का सौंदर्य इसी बहुमुखी प्रतिभा में छिपा है- चाहे वह सफेद चमकीला जरकन हो या नीले, पीले, नारंगी, हरे और भूरा-लाल रंगों वाले रंगीन जरकन। यही वजह है कि आज भी हार, झुमके, कंगन और ब्रेसलेट जैसी कई जूलरी में इस रत्न का इस्तेमाल बेहद लोकप्रिय है। आइए, 'कहानी गहनों की' इस सीरीज में इससे जुड़ी कुछ दिलचस्प बातों के बारे में जानते हैं।

कैसे बदलती है जरकन की चमक?
प्राकृतिक उच्च-गुणवत्ता वाले जरकन अक्सर रेडियोएक्टिव प्रभावों से प्रभावित नहीं होते। इन पत्थरों को जब लगभग 800 से 1000 डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया जाता है, तो उनका रंग और पारदर्शिता बेहतर हो जाती है।
- भूरे रंग के जरकन गर्म होने पर अक्सर सफेद या नीले रंग में बदल जाते हैं।
- गर्म करके बनाए गए सफेद जरकन को स्पार्कलाइट्स या मतारा डायमंड कहा जाता है।
- वहीं, नीले रंग में परिवर्तित होने पर इन्हें स्टारलाइट्स या स्ट्रेमलाइट्स कहा जाता है।
जरकन के कई ट्रेड नाम भी हैं-
- पीले-नारंगी रंग के लिए जेसिंथ,
- लाल या लाल-भूरे रंग के लिए हायसिंथ,
- हरे के लिए लिगर,
- भूरे के लिए सिनेमन

कहां मिलता है सबसे सुंदर जरकन?
आज दुनिया में सबसे बेहतरीन जरकन ऑस्ट्रेलिया, कंबोडिया, मेडागास्कर, कनाडा, यूक्रेन, म्यांमार, श्रीलंका और थाईलैंड में पाए जाते हैं। इनमें सबसे बड़ा हिस्सा यानी लगभग 37% उत्पादन अकेले ऑस्ट्रेलिया से होता है।
जरकन एक प्राचीन मिनरल है, जो नेसोसिलिकेट समूह का हिस्सा है और इसकी उम्र लगभग 4.4 अरब वर्ष मानी जाती है। अपनी सुंदरता और मजबूती के कारण यह रत्न यूरोप और अमेरिका के ज्वैलर्स के बीच भी हमेशा लोकप्रिय रहा है।

जरकन का इतिहास
जरकन नाम की जड़ें बहुत पुरानी हैं। माना जाता है कि यह नाम दो अरबी शब्दों ‘जार’ (सोना) और ‘जुम’ (रंग) से मिलकर बना है। फारसी लोग इसे जरगुन कहते थे जिसका अर्थ है सोने सा रंग। जर्मनी में इसे जिर्कोन कहा गया। बाद में अंग्रेजी में यह Zircon बन गया।
ग्रीक लोग 6वीं सदी में जरकन का इस्तेमाल करने वाले सबसे पहले लोगों में गिने जाते हैं। मध्यकाल की शुरुआत में इसे एक शुभ ताबीज माना गया जो नींद और सम्पन्नता लाने में सहायक माना जाता था।
14वीं सदी के बाद जब जरकन को सुंदर काट-छांट कर जूलरी में लगाया जाने लगा, तब यह ब्रूच, हार, अंगूठी और झुमकों का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया। विक्टोरियन युग में नीले जरकन को एस्टेट ज्वेलरी में खूब पसंद किया गया। वहीं, ग्रे जरकन शोक-संस्कार में उपयोग किए जाते थे।
1896 में दक्षिण अफ्रीका में हीरों की खदान मिलने से पहले रंगहीन जरकन को हीरे की तरह प्रयोग किया जाता था। 1920 के दशक तक गरम किए हुए जरकन बाजार में खूब लोकप्रिय हो गए।

कैसे बनती है जरकन जूलरी?
जरकन जूलरी बनाने की प्रक्रिया बेहद सटीकता और कारीगरी से भरी होती है:
डिजाइन तैयार करना
सबसे पहले कलाकार CAD या हाथ से स्केच बनाकर ज्वेलरी की रूपरेखा तैयार करता है। फिर जरकन पत्थरों को बोर्ड पर सजाकर डिजाइन का विज़ुअल लुक तय किया जाता है।
3D मॉडल
एक 3D प्रिंटर से डिजाइन का मॉडल तैयार किया जाता है ताकि हर डिजाइन को सुरक्षित रूप से परखा जा सके।
वैक्स मॉडल
कारीगर एक मोम की छड़ पर डिजाइन को तराशता है और उसमें पतली चैनल जैसी स्प्रूज लगाता है ताकि पिघला हुआ धातु आसानी से बह सके।
कास्टिंग
मोम मॉडल को फ्लास्क में रखकर उसमें पिघला हुआ सोना या धातु डाला जाता है। बाद में फ्लास्क को ठंडे पानी में डालकर मोम निकाल दिया जाता है, जिससे धातु की जूलरी का ढांचा बन जाता है।
ग्राइंडिंग और सेटिंग
धातु की सतह को घिसकर चिकना किया जाता है। फिर जूलरी में जरकन को विभिन्न सेटिंग्स (प्रॉन्ग, पावे, बेजल आदि) के माध्यम से सावधानी से सजाया जाता है।
पॉलिश और फिनिशिंग
जूलरी को चमकदार बनाने के लिए पॉलिश की जाती है।
गुणवत्ता जांच
अंत में हर टुकड़े की जांच होती है- कहीं पत्थर ढीला तो नहीं, कहीं खरोंच या दाग तो नहीं। इसके बाद जूलरी पैक होकर बिक्री के लिए तैयार हो जाती है।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
इतिहास में जरकन को सिर्फ सुंदरता के लिए ही नहीं पहना गया, बल्कि इसे शुभ और आध्यात्मिक रत्न भी माना गया है।
- सितंबर में जन्मे लोग इसे अपना जन्म रत्न मानते हैं।
- दिसंबर में जन्मे लोग नीला जरकन पहनते हैं।
- मध्यकाल में इसे ताबीज के रूप में पहना जाता था।
भारतीय ज्योतिष में जरकन को शुक्र ग्रह से जोड़ा जाता है और इसे समृद्धि, ज्ञान और आकर्षण बढ़ाने वाला माना जाता है।
महाकवि कालिदास ने अपने ग्रंथ मेघदूत में कल्पवृक्ष की पत्तियों को हरे जरकन से चमकते हुए बताया है। इसके अलावा, चीनी संस्कृति में भी जरकन आध्यात्मिक अनुष्ठानों का हिस्सा रहा है और अरब यात्रियों के लिए यह सुरक्षा का प्रतीक माना गया।

समय के साथ बदला जरकन जूलरी का रूप
प्राचीन काल, मध्यकाल, पुनर्जागरण और आधुनिक युग- हर दौर में जरकन जूलरी ने अपना एक अलग स्थान बनाए रखा है। आज यह फैशनेबल, किफायती और डायमंड जैसा लुक देने वाला एक खूबसूरत विकल्प बन चुका है।
आज के डिजाइनर्स खासतौर पर सफेद और नीले जरकन को आधुनिक जूलरी में खूब इस्तेमाल कर रहे हैं। इनके डिजाइन पहले से ज्यादा स्टाइलिश, हल्के और डेली वियर के लिए कम्फर्टेबल होते जा रहे हैं।
जरकन ज्वेलरी अपनी चमक, रंगों की विविधता, ऐतिहासिक महत्त्व और किफायती कीमत की वजह से आज भी लोगों की पहली पसंद बनी हुई है। यह रत्न सदियों की यात्राओं से गुजरकर आधुनिक फैशन में भी उतना ही शक्तिशाली और आकर्षक दिखाई देता है। चाहे आप एक साधारण सा पेंडेंट पहनें या भव्य हार- जरकन हर रूप में आपकी खूबसूरती को निखार देता है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।