महत्वपूर्ण है उम्र का तीसरा साल
बच्चे का तीसरा जन्मदिन मनाने के साथ ही माता-पिता को यह महसूस होने लगता है कि अब उनका बच्चा बड़ा हो रहा है इसलिए अब वह उन्हे पहले की तरह परेशान नहीं करेगा।

बच्चे का तीसरा जन्मदिन मनाने के साथ ही माता-पिता को यह महसूस होने लगता है कि अब उनका बच्चा बड़ा हो रहा है इसलिए अब वह उन्हे पहले की तरह परेशान नहीं करेगा। लेकिन वे यह भूल जाते है कि उम्र का तीसरा वर्ष बच्चे के लिए इतना अधिक महत्वपूर्ण होता है कि उसे और अधिक देखभाल की जरूरत होती है क्योंकि इस उम्र में बच्चे के शारीरिक विकास के साथ-साथ उनका मानसिक विकास भी बहुत तेजी से हो रहा होता है।
बाल रोग विशेषज्ञ की नजर में
दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. पी.के. सिंघल के अनुसार, 'इस उम्र में सामान्य स्वस्थ बच्चे तेजी से दौड़ना और तीन पहिये वाली साइकिल चलाना शुरू कर देते है क्योंकि उनके पैरों की मांसपेशियां मजबूत और विकसित हो जाती है। इस उम्र में बच्चों के पूरे दांत निकल चुके होते है। बच्चे आदतन ज्यादा चॉकलेट खाते है। इसलिए उन्हे प्रतिदिन दो बार ब्रश करने की आदत डालनी चाहिए। इस उम्र में बच्चा हर काम खुद करना चाहता है और वह अपनी मां की देखकर खुद भी अपने सारे काम खुद करने की कोशिश करता है। इसलिए इस घर चाकू, कैंची और दवाएं आदि बच्चों की पहुंच से दूर रखनी चाहिए। इस उम्र में बच्चों के साथ एक समस्या यह भी होती है कि कुछ बच्चे जिन्हें छोटी उम्र में अंगूठा चूसने या बोतल से दूध पीने की आदत होती है। बच्चे जब तीसरे साल में पहुंचते है तो उन्हें इस आदत की वजह से बहुत दिक्कतें आती है क्योंकि इस उम्र से बच्चे प्ले स्कूल भी जाना शुरू कर देते हैं। दूसरों के सामने ऐसा करने में बच्चे को शर्मिदगी महसूस होती है लेकिन उनके लिए ऐसी आदतों को छोड़ पाना भी मुश्किल होता है। इसलिए माता-पिता की यही कोशिश होनी चाहिए कि वे दूसरे साल से बच्चे को बोतल के बजाय कप या छोटे गिलास से दूध पिलाने की आदत डालें क्योंकि ज्यादा दिनों तक बोतल से दूध पीने वाले बच्चे आगे चलकर स्वभाव से शर्मीले और अंतर्मुखी हो जाते है।
'तीन वर्ष की उम्र में बच्चा शारीरिक और मानसिक रूप से काफी एक्टिव होता है। यही वह उम्र है जब उसका परिचय घर से बाहर की दुनिया से होता है और उसका सामाजीकरण भी तेजी से हो रहा होता है। इसलिए इस उम्र में बच्चों के मन में काफी उत्सुकता होती है और उन्हे घर से बाहर घूमना, नयी चीजों को देखना बहुत अच्छा लगता है। इसलिए बच्चे का थोड़ा जिद करना या शरारतें करना स्वाभाविक है। इसके लिए बच्चे के साथ बहुत ज्यादा सख्ती नहीं बरतनी चाहिए। पर इसका मतलब यह भी नहीं है कि बच्चे को मनमानी करने के लिए पूरी तरह से छोड़ देना चाहिए। इस उम्र तक बच्चे में निर्देशों को समझने और उनका पालन करने की क्षमता विकसित हो जाती है। इसलिए इस उम्र से ही बच्चे की दिनचर्या को नियमित करने की कोशिश करनी चाहिए, जिससे धीरे-धीरे बच्चे में अनुशासन की भावना विकसित हो सके। इस उम्र में बच्चों को छोटे-छोटे निर्देश दे कर कई अच्छी बातें आसानी से सिखाई जा सकती है, जैसे अपने खिलौनों को खेलने के बाद सही जगह पर वापस रखना, लोगों का अभिवादन करना आदि। बच्चा इस उम्र में जो कुछ भी सीखता है वह उसे जीवन भर याद रहता है इसलिए इस उम्र से ही बच्चों में अच्छे संस्कार बीज बोने चाहिए।' मनोचिकित्सक की नजर में
दिल्ली स्थित मैक्स हेल्थ केयर सेंटर के मनोकित्सक डॉ. समीर पारेख के अनुसार, 'जन्म के बाद से शुरू के पांच वर्षो में बच्चों का मानसिक विकास बहुत तेजी से हो रहा होता है। तीसरे वर्ष में बच्चे की भाषा का विकास भी तेजी से होता है। वह दो-तीन शब्दों वाले छोटे-छोटे वाक्यों को बोलने और समझने लगता है। इस उम्र तक बच्चे के मस्तिष्क का विकास भी लगभग 90 प्रतिशत हो चुका होता है। इसलिए वह प्रसन्नता, नाराजगी और विरोध जैसी कुछेक प्रमुख भावनाओं को समझना और अभिव्यक्त करना सीख जाता है। साथ ही उसकी अन्य भावनाएं भी विकसित हो रही होती है। लेकिन इस उम्र में बच्चे अपनी भावनाओं को पूरी तरह नियंत्रित करना सीख नहीं पाते क्योंकि उनके मस्तिष्क में स्थित हाइपोथेलेमस का विकास पूरी तरह नहीं हुआ होता है। मस्तिष्क का यही वह हिस्सा है जो हमारी भावनाओं को नियंत्रित करता है। यही वजह है कि छोटा बच्चा अगर किसी बात पर रोना शुरू करता है तो जल्दी चुप ही नहीं होता पर धीरे-धीरे हाइपोथेलेमस के विकसित हो जाने पर यह समस्या दूर हो जाती है। इसलिए अगर इस उम्र में बच्चा किसी बात के लिए जिद करे या रोए तो माता-पिता को उसके व्यवहार को लेकर ज्यादा चिंतित नहीं होना चाहिए। इस उम्र में बच्चे में सेंस ऑफ पर्पज भी विकसित होने लगता है। अर्थात बच्चे में इतनी समझ हो जाती है कि उसके किस कार्य के लिए उसे बड़ों से प्रशंसा मिलेगी और किस कार्य के लिए फटकार सुननी पड़ेगी।
'यह उम्र का वह महत्वपूर्ण दौर है जब बच्चे के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव आता है। इसी उम्र में बच्चे को पहली बार अपनी मां से अलग होकर प्ले स्कूल में जाना पड़ता है। इसलिए बच्चे को प्ले स्कूल में भेजने से पहले उसे मानसिक रूप से तैयार करना चाहिए और शुरू में बच्चे को आधे घंटे के लिए स्कूल में अकेला छोड़ना चाहिए, फिर धीरे-धीरे जब बच्चा स्कूल के वातावरण के साथ एडजस्ट करने लगे तो उसे पूरे समय के लिए स्कूल में छोड़ना चाहिए। 'इस उम्र में बच्चे के मानसिक विकास में खेल का बहुत बड़ा योगदान होता है। कुछ खेल ऐसे होते हैं जिन्हे बच्चे अकेले बैठकर खेलते है, जैसे ब्लॉक जोड़ कर आकृतियां बनाना, टूटी हुई रेखाओं को जोड़ कर चित्र बनाना, चित्रों में रंग भरना आदि। इसी तरह कुछ खेल बच्चे अपने दोस्तों के साथ ग्रुप में मिलकर खेलते है, ऐसे खेलों से बच्चे का सामाजीकरण ज्यादा अच्छी तरह होता है। इससे बच्चा लोगों से ज्यादा अच्छी तरह दोस्ती करना सीखते है। बच्चों को दोनों ही तरह के खेल खेलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। लेकिन कुछ बच्चे थोड़े अंतर्मुखी होते है और वे दूसरों से दोस्ती करने में थोड़ा वक्त लगाते है। ऐसे बच्चों पर जबरदस्ती ग्रुप में खेलने का दबाव नहीं डालना चाहिए और न ही बच्चे को लोगों के सामने शो आइटम की तरह पेश करना चाहिए। कुछ लोगों की आदत होती है कि वे घर में आने वाले मेहमानों के सामने बच्चे को जबरदस्ती नर्सरी राइम्स सुनाने को कहते है, इससे बच्चा चिढ़ जाता है और इसका उसके व्यक्तित्व पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जैसे ही बच्चा तीन वर्ष होता है कुछ अभिभावक उसकी पढ़ाई को लेकर बहुत चिंतित हो जाते हैं और इसी उम्र से बच्चे पर पढ़ने का दबाव डालते है। ऐसा करना उचित नहीं है। बच्चे का स्वाभाविक विकास अपने आप धीरे-धीरे होने देना चाहिए।' डायटीशियन की राय
इस उम्र में बच्चे के खान-पान पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती क्योंकि यह बच्चे के शारीरिक विकास का महत्वपूर्ण दौर होता है। दिल्ली स्थित मैक्स हेल्थ केयर सेंटर की डायटीशियन डॉ. चारु दुआ के अनुसार, 'तीन से छह वर्ष के बीच बच्चे के शारीरिक विकास की गति पहले और दूसरे वर्ष की तुलना में थोड़ी धीमी हो जाती है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के अनुसार दो वर्ष की उम्र के बाद प्रतिवर्ष बच्चे का कद पांच से छह सेमी. और वजन डेढ़ से तीन किलोग्राम बढ़ता है लेकिन आजकल उच्चवर्ग में बच्चों का खान-पान अच्छा होने की वजह से तीन वर्ष में लड़के का औसत कद 99 से.मी. और वजन 15 से 16 किलोग्राम के बीच और लड़कियों का औसत कद 93 से 94 से.मी. और वजन लगभग 14 किलोग्राम तक होता है।
इस उम्र में बच्चों को पौष्टिक आहार की जरूरत होती है। नेशनल सेंटर फॉर हेल्थ स्टैटिस्टिक्स के अनुसार एक वर्ष के बाद बच्चे को प्रतिदिन एक हजार कैलोरी की जरूरत होती है और उसमें प्रतिवर्ष 125 कैलोरी जुड़ती जाती है। उदाहरण के लिए अगर कोई तीन वर्ष का बच्चा है तो उसे प्रतिदिन के भोजन में 1000 +125 X 3 = 1375 कैलोरी दी जानी चाहिए। बच्चे के भोजन में कैलोरी मापने का यह फार्मूला 12 वर्ष तक लागू होता है। बच्चे के खाने में 21 ग्राम प्रोटीन होना चाहिए। इस उम्र में बच्चे की हड्डियों का विकास हो रहा होता है इसलिए प्रति किलोग्राम वजन के हिसाब से 1.5 से 1.8 ग्राम कैल्शियम देना चाहिए। इसके साथ ही विटामिन ए, डी, आयरन और फॉलिक एसिड भी उसके विकास के लिए जरूरी है।
तीन वर्ष की उम्र में बच्चे को ज्यादा भूख नहीं लगती। बच्चा जितना अधिक फिजिकल एक्टिविटी करेगा उसे उतनी ही ज्यादा भूख लगेगी। इसलिए बच्चे को जबरदस्ती खिलाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। इस उम्र में बच्चे को पूरे दिन में चार से पांच बार खिलाना चाहिए। सुबह आठ बजे नाश्ते में अनाज से बना कोई भी व्यंजन जैसे उपमा, इडली, हलवा, दलिया आदि। एक अंडा या पनीर और एक गिलास दूध देना चाहिए। सुबह 10 बजे कोई फल या जूस। 12 से 1 के बीच रोटी, सब्जी, दाल आदि। 3 से 4 बजे के बीच दूध, बिस्किट या कोई स्नैक्स आदि। शाम 7 से 8 के बीच डिनर में भी लंच की तरह रोटी, चावल, सब्जी, दाल और दूध। आजकल बच्चों को वेफर्स नमकीन, बर्गर, पिज्जा आदि खाने की लत लग जाती है। आपकी कोशिश यही होनी चाहिए कि बच्चे को ऐसी चीजें खाने की आदत न पड़े। फिर भी अगर बच्चा खाना चाहे तो उसे ये चीजें सीमित मात्रा में ही दें। अन्यथा वह लंच या डिनर नहीं ले पाएगा। बच्चे को टीवी देखते हुए कभी भी खाने को न दें इससे बच्चे का सारा ध्यान टीवी पर होता है और वह ढंग से खा नहीं पाता।'
अगर आप अपने बच्चे के तीसरे वर्ष में इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखेंगी तो निश्चिय ही उसका शारीरिक और मानसिक विकास ज्यादा बेहतर ढंग से होगा।
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