शांति किस्कू: आदिवासी शेरनी जो नक्सल भूमि में जगा रही है देश सेवा की अलख
झारखंड के नक्सल प्रभावित पश्चिमी सिंहभूम में तैनात सीआरपीएफ की सहायक कमांडेंट शांति किस्कू आदिवासी महिलाओं को सेना में शामिल होने के लिए प्रेरित कर रही हैं। बिहार के रोहतास की रहने वाली शांति साहस और शांति का प्रतीक बनकर युवतियों को आत्मनिर्भरता और देश सेवा की राह दिखा रही हैं जिससे आदिवासी समाज में नई क्रांति आ रही है।

सुधीर पांडेय, चाईबासा। झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के घने जंगलों और नक्सल प्रभावित इलाकों में 50 वर्षीय शांति किस्कू एक ऐसी शख्सियत हैं, जो अपने नाम की तरह शांति और साहस का संदेश बिखेर रही हैं।
सीआरपीएफ की 174वीं बटालियन में सहायक कमांडेंट के रूप में तैनात शांति न केवल माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों का नेतृत्व कर रही हैं, बल्कि आदिवासी महिलाओं और युवतियों को सेना में शामिल होकर देश सेवा की राह पर चलने के लिए प्रेरित भी कर रही हैं।
उनकी कहानी साहस, समर्पण और बदलाव की एक ऐसी दास्तान है, जो हर किसी को प्रेरित करती है।
जिसने तोड़ा रूढ़ियों का जाल
बिहार के रोहतास जिले के चेनारी गांव की रहने वाली शांति किस्कू ने 2003 में सीआरपीएफ जॉइन कर इतिहास रचा।
वह अपने गांव की पहली आदिवासी महिला थीं, जिन्होंने सुरक्षा बलों में कदम रखा। आज, 22 साल बाद, वह सहायक कमांडेंट के पद पर हैं और उनकी उपलब्धियां अनगिनत युवतियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुकी हैं।
शांति बताती हैं, “मेरे इस कदम ने मेरे गांव की लड़कियों को हौसला दिया। आज मेरी प्रेरणा से कंचन कुमारी जैसी युवतियां सीआरपीएफ में सेवा दे रही हैं।”
महिलाओं को दे रहीं नया हौसला
शांति किस्कू का मानना है कि सेना केवल पुरुषों का क्षेत्र नहीं है। वह आदिवासी युवतियों को बताती हैं कि सेना में महिलाओं के लिए भी ढेरों अवसर हैं, जहां वे नेतृत्व, अनुशासन और देशभक्ति का अनुभव ले सकती हैं।
“जब मैं गांवों में जाती हूं, तो युवतियां मुझसे अपने सपनों और डर के बारे में बात करती हैं। मैं उन्हें समझाती हूं कि साहस और मेहनत से हर मुकाम हासिल कर सकती हैं,” शांति कहती हैं।
वह न केवल अपने अनुभव साझा करती हैं, बल्कि प्रशिक्षण सत्रों के जरिए युवतियों को सेना की तैयारी, अनुशासन और जिम्मेदारियों के लिए तैयार भी करती हैं।
उनका कहना है, “सेना में शामिल होना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन यह आत्मविश्वास और नेतृत्व क्षमता को निखारने का एक अनूठा मौका है।”
आदिवासी महिलाओं के लिए बड़ा संदेश
शांति किस्कू का मिशन सिर्फ सुरक्षा बलों में सेवा देना नहीं, बल्कि आदिवासी समाज की महिलाओं को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाना भी है। वह चाहती हैं कि हर युवती अपनी क्षमताओं को पहचाने और राष्ट्र सेवा में योगदान दे।
उनकी कहानी यह साबित करती है कि सही दिशा और दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ कोई भी सपना असंभव नहीं है।
एक प्रेरणा, जो बदल रही है जिंदगियां
शांति किस्कू की जिंदगी और उनका काम आदिवासी समाज की महिलाओं के लिए एक मशाल की तरह है। वह न केवल नक्सल प्रभावित इलाकों में शांति स्थापित करने का काम कर रही हैं, बल्कि अपने साहस और समर्पण से नई पीढ़ी को देश सेवा की राह दिखा रही हैं।
उनकी कहानी हर उस महिला को प्रेरित करती है, जो अपने सपनों को पंख देना चाहती है।
आप भी बनें बदलाव का हिस्सा
शांति किस्कू की कहानी हमें सिखाती है कि साहस और मेहनत से कोई भी बाधा पार की जा सकती है। अगर आप भी देश सेवा के इस रोमांचक सफर का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो शांति जैसे प्रेरणास्रोतों से हौसला लें और अपने सपनों को हकीकत में बदलें।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।