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    बीमा कंपनी के भुगतान न करने पर उपभोक्ता आयोग ने लगाई फटकार, वाहन मालिक को 1.93 लाख देने का आदेश

    Updated: Thu, 31 Jul 2025 07:43 PM (IST)

    जिला उपभोक्ता आयोग ने टाटा एआईजी जनरल इंश्योरेंस को शशिधर सिंह नामक वाहन मालिक को 193268 रुपये चुकाने का आदेश दिया है। यह मामला बीमा दावे से जुड़ा है जिसमें शॉर्ट सर्किट के कारण वाहन को नुकसान हुआ था। आयोग ने बीमा कंपनी के व्यवहार को अनुचित माना और समय पर भुगतान न करने पर ब्याज लगाने का भी निर्देश दिया।

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    उपभोक्ता आयोग ने बीमा कंपनी को वाहन मालिक को 1.93 लाख रुपये देने का दिया आदेश। जागरण फोटो

    जागरण संवाददाता, चाईबासा। जिला उपभोक्ता आयोग ने एक महत्वपूर्ण आदेश में टाटा एआईजी जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को आदेश दिया है कि वह वाहन मालिक शशिधर सिंह को 1 लाख 63 हजार 268 रुपये की मरम्मत राशि, 20 हजार रुपये मानसिक प्रताड़ना के लिए और 10 हजार रुपये वाद व्यय के रूप में कुल 1 लाख 93 हजार 268 रुपये चुकाए।

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    बताया गया कि शहर के गुटूसाई खदान रोड निवासी शशिधर सिंह ने आयोग में वाद दर्ज कराते हुए अपनी टाटा सिग्ना 5525 वाहन के बीमा दावे को लेकर बीमा कंपनी पर गंभीर आरोप लगाए थे।

    शिकायतकर्ता का कहना था कि वाहन का बीमा टाटा एआईजी से शून्य मूल्यह्रास नीति के तहत लिया गया था, जिसकी अवधि 15 फरवरी 2023 से 14 फरवरी 2024 तक थी। 12 फरवरी 2024 को वाहन में बिजली सर्किट में शॉर्ट सर्किट के कारण आग लग गई, जिससे मुख्य वायरिंग, डैशबोर्ड व अन्य हिस्सों को नुकसान पहुचां।

    शिकायतकर्ता द्वारा बीमा दावा किया गया, किंतु बीमा कंपनी ने 1 लाख 14 हजार 200 रुपये का आंशिक दावा स्वीकृत किया और शेष राशि का भुगतान करने से इंकार कर दिया। कहा कि वायरिंग हार्नेस का नुकसान बीमा की शर्तों के अंतर्गत नहीं आता। बीमा कंपनी ने किसी भी प्रकार की राशि का भुगतान नहीं किया।

    अदालत ने पाया कि बीमा कंपनी ने न तो सर्वेक्षण रिपोर्ट शिकायतकर्ता को दी, न ही सर्वेक्षण की सूचना समय पर दी, जिससे शिकायतकर्ता अपनी आपत्ति नहीं दर्ज करा सका। इसके अलावा, शिकायतकर्ता के दावे को जानबूझकर कई प्रतिनिधियों को सौंपा गया जिससे निर्णय में देरी हुई।

    आयोग ने बीमा कंपनी के आचरण में कमी और अनुचित व्यापार व्यवहार की श्रेणी में माना। निर्णय में कहा गया कि यदि 45 दिनों के भीतर कंपनी द्वारा उपरोक्त राशि का भुगतान नहीं किया गया, तो उस पर 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज लगेगा।

    साथ ही यह भी निर्देश दिया गया कि निर्णय की प्रति दोनों पक्षों को निशुल्क उपलब्ध कराई जाए और आयोग की वेबसाइट पर प्रकाशित की जाए।

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