Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    लांस नायक अलबर्ट एक्का: 3 दिसंबर की काली रात 20 गोलियां लगने पर अस्त हो गया गुमला का सूरज, उदय हुआ बांग्लादेश

    By Jagran NewsEdited By: Arijita Sen
    Updated: Sat, 03 Dec 2022 01:09 PM (IST)

    लांस नायक अलबर्ट एक्‍का को चीन के साथ भी लड़ने का मौका मिला और पाकिस्‍तान को धूल चटाने की भी खुशनसीबी उनके हिस्‍से आई। उन्‍हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। 1971 के युद्ध में उनकी भूमिका अहम रही है।

    Hero Image
    रांची के अलबर्ट अक्‍का चौक पर लांसनायक की प्रतिमा

    रांची, संजय कृष्ण। झारखंड की राजधानी रांची में लांस नायक अलबर्ट एक्का (Lance Naik Albert Ekka) की आदम कद प्रतिमा सैनिक लिबास में मशीनगन ताने लगी हुई है, जो भारत-बांग्लादेश की जीत (India Bangladesh Victory) की कहानी बयां करती है। जब दुनिया के मानचित्र पर एक नए देश का उदय हो रहा था, तब तक झारखंड के गुमला (Gumla) का यह सूरज अपनी छाप छोड़कर अस्त हो गया था। इस वीर को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जारी गांव के रहने वाले थे लांस नायक अलबर्ट

    लांस नायक अलबर्ट एक्का गुमला जिले के जारी गांव के थे, जहां उरांव जनजाति (Oraon tribe) के लोग अधिक संख्‍या में रहते थे। कुडुख भाषा में इस गांव को जड़ी कहते हैं, लेकिन अंग्रेजी उच्चारण ने इस गांव को जड़ी से जारी कर दिया। गुमला रांची का हिस्सा था। अब जिला बन गया। अलबर्ट एक्का जब सेना में भर्ती हुए थे उस वक्‍त उनका सबसे पहले पाला चीन (China) से पड़ा था। उन दिनों वह बिहार रेजिमेंट में थे।

    पाकिस्तान से बांग्लादेश को आजाद कराने में निभाई अहम भूमिका 

    इसके बाद 1962 की लड़ाई के नौ साल बाद पाकिस्तान के जबड़े से कराहते बांग्लादेश को आजाद कराने चल पड़े। तब वह 14 गार्ड रेजीमेंट के लांस नायक बन चुके थे। ऐसा बहुत कम सैनिकों को नसीब हुआ जिन्‍होंने चीन के साथ भी युद्ध किया और पाकिस्तान (Pakistan) को भी धूल चटाई। यह खुशनसीबी अलबर्ट के हिस्से आई और इसी बहादुर के हिस्से परमवीर चक्र भी आया।

    1971 की लड़ाई को भारत के पक्ष में किया

    03 दिसंबर, 1971 की वह काली रात थी जब चारों ओर गोलियां चल रही थीं। कहीं से आग के गोले निकल रहे थे, तो कहीं से हैंड ग्रेनेड व मोर्टार छोड़े जा रहे थे। अलबर्ट का मोर्चा गंगा सागर (Gangasagar) के पास था। यहीं पास में रेलवे स्टेशन था, जहां 165 पाकिस्तानी घुसपैठिए अड्डा जमाए थे। 03 दिसंबर की रात 2.30 बजे अलबर्ट और उनके साथी रेलवे पार गए। उस वक्‍त अलबर्ट 29 साल के थे। जैसे ही उन्‍होंने रेलवे स्टेशन पार किया, पाकिस्तानी सेना के एक संतरी ने उन्‍हें रूकने के लिए कहा, उन्‍होंने उसे गोली मारकर दुश्मन के इलाके में घुस गए।

    जानें- क्‍यों मनाया जाता है विजय दिवस और क्‍या है इसके पीछे की कहानी जिसे कभी नहीं भूलेगा पाकिस्‍तान

    20 गोलियां लगने तक किया दुश्‍मनों का सामना

    उन्होंने पाक सेना का बंकर उड़ा दिया, 65 पाक सैनिकों को मार गिराया और 15 को कैद कर लिया। रेलवे के आउटर सिग्नल इलाका को कब्जे में लेने के बाद वापस आने के दौरान टाप टावर मकान के ऊपर में खड़ी पाक सेना ने अचानक मशीनगन से उन पर हमला कर दिया। इसमें 15 भारतीय सैनिक मारे गए।

    तब अलबर्ट दौड़ते हुए टाप टावर पर चढ़ गए और मशीनगन को कब्जे में लेकर दुश्मनों को तहस-नहस कर दिया। इस दौरान अलबर्ट एक्का को 20 से अधिक गोलियां लगीं। उनका शरीर छलनी हो गया था और वह टाप टावर से नीचे गिर गए और अपनी अंतिम सांस ली। उस दिन अगर एलबर्ट एक्का नहीं रहते तो 150 जवान मारे जाते।

    बांग्‍लादेश के निर्माण में कई वीरों ने दी प्राणों की आहुति

    गंगा सागर की जीत के बाद दक्षिणी और दक्षिणी पश्चिमी छोर से अखौरा तक पहुंचना भारतीय सेना के लिए आसन हो गया। इसका नतीजा यह हुआ कि भारतीय सेना के हमले के आगे दुश्मन को अखौरा भी छोड़कर भागना पड़ा। तीन दिसंबर से 16 दिसंबर, 1971 तक यह युद्ध चला और बांग्लादेश का उदय हुआ। इस नए देश के निर्माण में झारखंड के इस सपूत के साथ रांची और आसपास के करीब 26 जवानों ने अपनी जान की आहुति दी थी।

    1971 Indo-Pak War : जब भारत के खिलाफ अमेरिका ने भेजा अपना सातवां बेड़ा, अपने मिशन पर डटी रही हिंदुस्‍तान की सेना