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    Jharkhand liquor scam: बिहार में शराबबंदी का फायदा उठाकर शराब सिंडिकेट ने रची अवैध कमाई की साजिश

    Updated: Fri, 04 Jul 2025 02:08 PM (IST)

    शराब घोटाले ने झारखंड और बिहार के सीमावर्ती क्षेत्रों में अवैध शराब के कारोबार को बढ़ावा दिया जिससे दोनों राज्यों की सरकारों के लिए चुनौतियां बढ़ गई हैं। बिहार में शराबबंदी ने शराब माफियाओं के लिए अवैध कमाई का नया रास्ता खोल दिया। झारखंड में शराब घोटाले को अंजाम देने वाले सिंडिकेट ने इसका भरपूर फायदा उठाया।

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    जाली होलोग्राम के जरिए नकली शराब की आपूर्ति बिहार में सक्रिय शराब माफिया की सांठगांठ से की गई।

    प्रदीप सिंह,रांची। Jharkhand liquor scamझारखंड में हुए शराब घोटाले ने न केवल राज्य के राजस्व को भारी नुकसान पहुंचाया, बल्कि पड़ोसी राज्य बिहार में शराबबंदी के बावजूद अवैध शराब की तस्करी के बड़े नेटवर्क को भी उजागर किया है। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) की जांच और गिरफ्तारियों से इस घोटाले की परतें खुल रही हैं। 

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    इसमें नकली होलोग्राम के जरिए जाली शराब की आपूर्ति, बिहार में सक्रिय शराब माफिया के साथ सांठगांठ और प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत जैसे गंभीर तथ्य सामने आए हैं। घोटाले ने झारखंड और बिहार के सीमावर्ती क्षेत्रों में अवैध शराब के कारोबार को बढ़ावा दिया, जिससे दोनों राज्यों की सरकारों के लिए चुनौतियां बढ़ गई हैं।

    Bihar News बिहार में 2016 से लागू शराबबंदी ने शराब माफियाओं के लिए अवैध कमाई का नया रास्ता खोल दिया। झारखंड में शराब घोटाले को अंजाम देने वाले सिंडिकेट ने इसका भरपूर फायदा उठाया। झारखंड में सरकारी शराब दुकानों की आड़ में नकली और मिलावटी शराब का उत्पादन और आपूर्ति बिहार के बाजारों में की गई।

    बिहार में शराब की भारी मांग के कारण तस्करों ने नकली होलोग्राम का इस्तेमाल कर अवैध शराब को असली जैसा दिखाकर बेचा, जिससे करोड़ों रुपये की काली कमाई हुई।

    नकली होलोग्राम और अवैध आपूर्ति की साजिश

    एसीबी की जांच में पता चला कि इस घोटाले में नकली होलोग्राम का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया। प्रिज्म होलोग्राफी सिक्यूरिटी फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड जैसी कंपनियों ने 50 करोड़ से अधिक के होलोग्राम की आपूर्ति की और अधिकारियों को इसके एवज में भारी कमीशन दिया।

    इन होलोग्राम्स का उपयोग अवैध शराब को वैध दिखाने के लिए किया गया, जिसे झारखंड से बिहार के सीमावर्ती क्षेत्रों में सप्लाई किया गया। इस रैकेट में छत्तीसगढ़ के कारोबारियों और अधिकारियों की भी संलिप्तता सामने आई है, जिन्होंने झारखंड में छत्तीसगढ़ माडल लागू कर शराब नीति में हेरफेर किया।

    बिहार में शराब माफिया के साथ सांठगांठ

    Liquor Syndicate जांच में यह भी खुलासा हुआ कि झारखंड के शराब माफिया ने बिहार के स्थानीय तस्करों और माफिया गिरोहों के साथ मिलकर काम किया। सीमावर्ती क्षेत्रों जैसे झारखंड के कोडरमा और साहिबगंज से बिहार के नालंदा, भागलपुर और मुजफ्फरपुर जैसे जिलों में शराब की तस्करी की गई।

    बिहार में शराबबंदी के कारण ऊंचे दामों पर नकली शराब बेची गई, जिससे माफिया और तस्करों को भारी मुनाफा हुआ। कई मामलों में बिहार के आबकारी अधिकारियों पर भी सरकारी वाहनों का दुरुपयोग कर शराब तस्करी में शामिल होने का आरोप लगा है।

    एसीबी की कार्रवाई और गिरफ्तारियां

    एसीबी ने इस घोटाले में शामिल कई बड़े अधिकारियों और कारोबारियों को गिरफ्तार किया है। पूर्व उत्पाद आयुक्त अमित प्रकाश, छत्तीसगढ़ के कारोबारी सिद्धार्थ सिंघानिया और पूर्व उत्पाद सचिव विनय कुमार चौबे जैसे लोग इस घोटाले के मुख्य आरोपियों में शामिल हैं।

    सिद्धार्थ सिंघानिया ने पूछताछ में विनय चौबे को घोटाले का मास्टरमाइंड बताया, जिसमें 50 करोड़ रुपये की घूस का भी खुलासा हुआ। इसके अलावा, साहिबगंज में एक सरकारी शराब दुकान की आड़ में नकली शराब का कारखाना पकड़ा गया, जहां से 10 लाख रुपये की अवैध शराब बरामद की गई।

    सीमावर्ती क्षेत्रों में प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत ने इस घोटाले को और बढ़ावा दिया। कई मामलों में, स्थानीय पुलिस और आबकारी विभाग की निष्क्रियता के कारण तस्करों के हौसले बुलंद हुए।

    उदाहरण के लिए, गोड्डा में बिहार के आबकारी अधिकारियों द्वारा सरकारी गाड़ी में शराब तस्करी का प्रयास और चौकीदार के साथ मारपीट का मामला सामने आया। ऐसे मामलों ने प्रशासनिक ढील और भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों को उजागर किया है।

    पड़ोस से समन्वय आवश्यक

    झारखंड का शराब घोटाला एक जटिल और गहरी साजिश का परिणाम है, जिसमें अधिकारियों, कारोबारियों और माफिया का गठजोड़ शामिल है। बिहार में शराबबंदी का फायदा उठाकर इस सिंडिकेट ने न केवल अवैध कमाई की, बल्कि दोनों राज्यों की कानून-व्यवस्था को भी चुनौती दी।

    एसीबी और सीबीआई की सख्त कार्रवाई से इस रैकेट का खात्मा होने की उम्मीद है। यह घोटाला प्रशासनिक भ्रष्टाचार और सीमावर्ती क्षेत्रों में तस्करी की गंभीर समस्या को उजागर करता है। इसे समाप्त करने के लिए दोनों राज्यों के बीच परस्पर समन्वय और खुफिया सूचनाओं का आदान-प्रदान आवश्यक है।