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    लिट्टीपाड़ा उपचुनाव में सीएम रघुवर ने झोंकी ताकत

    By Sachin MishraEdited By:
    Updated: Tue, 04 Apr 2017 05:16 PM (IST)

    डा. अनिल मुर्मू के निधन से खाली हुई लिट्टीपाड़ा सीट को भाजपा की झोली में डालने के लिए मुख्यमंत्री रघुवर दास ने पूरी ताकत झोंक दी है।

    लिट्टीपाड़ा उपचुनाव में सीएम रघुवर ने झोंकी ताकत

    प्रदीप सिंह, रांची। झारखंड मुक्ति मोर्चा की परंपरागत सीट रही लिट्टीपाड़ा में इस बार उलटफेर संभव है। डा. अनिल मुर्मू के निधन से खाली हुई इस सीट को भाजपा की झोली में डालने के लिए मुख्यमंत्री रघुवर दास ने पूरी ताकत झोंक दी है। वे खुद इलाके का तूफानी दौरा कर रहे हैं, जिससे झारखंड मुक्ति मोर्चा बैकफुट पर आ गई है। रघुवर के आक्रामक तेवर की वजह से झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेताओं को लगातार दबाव झेलना पड़ रहा है।

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    पार्टी महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य के मुताबिक टक्कर कांटे की है और भाजपा ने जीत हासिल करने के लिए पूरी सरकारी मशीनरी झोंक रखी है। इसके बावजूद उसे सफलता हाथ नहीं लगेगी। झामुमो का मुख्यमंत्री पर आचार संहिता उल्लंघन का आरोप और इसके विरोध में राज्य निर्वाची पदाधिकारी के कार्यालय के समक्ष धरने की घोषणा से उसकी बेचैनी समझी जा सकती है। दरअसल, राजनीतिक मोर्चे पर लगातार जीत हासिल कर रहे रघुवर दास लिट्टीपाड़ा में एक तीर से कई निशाने साध रहे हैं।

    मुख्य विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा को भी इसका अहसास है कि कैसे रघुवर दास ने राज्यसभा चुनाव में बाजी पलट दी थी। भाजपा में विरोध का स्वर उठा रहे चंद नेताओं को भी वे संदेश देना चाहते हैं कि वे उनके बगैर भी जूझने का माद्दा रखते हैं। उनके उपचुनाव की बागडोर हाथ में लेने की वजह से भगवा कैंप में गजब का उत्साह है। 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में रघुवर दास ने संताल परगना की खाक छानी थी। दुमका उनका केंद्र था। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने संताल परगना को अपने एजेंडे में रखा। उनके कड़े तेवर से झारखंड मुक्ति मोर्चा की बेचैनी स्वाभाविक भी है।

    रघुवर जिन तमाम मुद्दों को अपनी सभाओं के दौरान उठा रहे हैं, उसका जबाव झारखंड मुक्ति मोर्चा को देना पड़ रहा है। संताल से तीन सीएम बनने के बावजूद इलाके का पिछड़ापन उनकी सभाओं का एजेंडा है। वे झारखंड मुक्ति मोर्चा से 40 साल का हिसाब मांगने की बात कहकर भी तालियां बटोर रहे हैं। उपचुनाव में खड़े दोनों प्रत्याशी हेमलाल मुर्मू व साइमन मरांडी झारखंड मुक्ति मोर्चा से जुड़े रहे हैं। राजनीतिक कारणों से दोनों ने भाजपा का दामन थामा, लेकिन साइमन को भगवा खेमा रास नहीं आया और उन्होंने अपनी राह पकड़ी। अब दोनों साथी एक-दूसरे के खिलाफ उपचुनाव में खम ठोक रहे हैं।

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