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    Shibu Soren: 'नौकरी के पीछे मत भागो', शिबू सोरेन ने नशे को बताया था विनाश का कारण; गांव-गांव जाकर जगाई अलख

    Updated: Mon, 04 Aug 2025 01:19 PM (IST)

    शिबू सोरेन ने राजनीति में ऊंचाइयों के साथ समाज सुधार पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने नशा मुक्ति शिक्षा और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया जिससे लाखों आदिवासियों को प्रेरणा मिली। उन्होंने युवाओं को नौकरी के पीछे भागने की बजाय खेती और पशुपालन अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया। शिक्षा को शोषण से मुक्ति का हथियार मानते हुए उन्होंने स्कूलों की स्थापना को बढ़ावा दिया।

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    शिबू सोरेन ने नशे को बताया था विनाश का कारण। (जागरण)

    प्रदीप सिंह, रांची। शिबू सोरेन ने ना सिर्फ राजनीति में ऊंचाइयों को हासिल किया, बल्कि समाज सुधार के दृष्टिकोण से देखें तो उनका पूरा राजनीतिक अभियान भी इसी पर केंद्रित था।

    नशे के खिलाफ उनकी कट्टर सोच, शिक्षा के प्रति प्रबल समर्थन और आत्मनिर्भरता की उनकी अपील ने लाखों आदिवासियों के जीवन को दिशा दी।

    सभाओं में उनकी गूंजती आवाज - नशा छोड़ो, खेती करो, मुर्गी पालन, बत्तख पालन को अपनाओ और शिक्षा को गले लगाओ, आज भी झारखंड के गांवों में प्रेरणा का स्रोत है।

    शिबू सोरेन का जीवन सामाजिक बुराइयों के खिलाफ संघर्ष का पर्याय रहा है। 1960-70 के दशक में, जब आदिवासी समाज नशे की चपेट में था, शिबू सोरेन ने नशाबंदी को अपने आंदोलन का मुख्य आधार बनाया। उनकी सभाओं में नशे के दुष्परिणामों का जिक्र प्रमुखता से होता था।

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    वे कहते थे - नशा आदिवासी समाज को खोखला कर रहा है। यह हमें कमजोर बनाता है, हमारी जमीन और सम्मान छीनता है। उनकी यह अपील केवल शब्दों तक सीमित नहीं थी। उन्होंने गांव-गांव जाकर

    नशाबंदी के लिए जनजागरण अभियान चलाया।

    साहूकारों द्वारा नशे को बढ़ावा देने की साजिश को उन्होंने उजागर किया, क्योंकि यह आदिवासियों को आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर करने का हथियार था। इस अभियान ने हजारों परिवारों को

    नशे की लत से मुक्ति दिलाई और समाज में नई चेतना जगाई।

    आत्मनिर्भरता की राह : नौकरी के पीछे मत भागो

    शिबू सोरेन का दर्शन आत्मनिर्भरता पर आधारित था। वे मानते थे कि आदिवासी समाज की असली ताकत उसकी जमीन, संस्कृति और मेहनत में है। अपनी सभाओं में वे युवाओं से अपील करते - नौकरी के पीछे मत भागो। उनका मानना था कि नौकरी की तलाश में शहरों की ओर पलायन करने से आदिवासी अपनी जड़ों से कट रही है।

    उन्होंने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए पशुपालन और कृषि को बढ़ावा देने पर जोर दिया। उनके इस संदेश ने कई आदिवासी युवाओं को अपनी जमीन पर टिकने और स्वावलंबी बनने के लिए प्रेरित किया।

    आज भी झारखंड के कई गांवों में उनके अनुयायी खेती और पशुपालन को अपनाकर आत्मनिर्भरता की मिसाल कायम कर रहे हैं।

    शिक्षा समाज को सशक्त करने का हथियार

    शिबू सोरेन शिक्षा को सामाजिक उत्थान का सबसे बड़ा हथियार मानते थे। वे कहा करते थे कि शिक्षा ही वह चाबी है, जो आदिवासियों को शोषण से मुक्ति दिला सकती है। उनकी सभाओं में शिक्षा का महत्व बार-बार उभरकर सामने आता था।

    उन्होंने आदिवासी बच्चों, खासकर लड़कियों की शिक्षा पर विशेष जोर दिया। उनके नेतृत्व में झामुमो ने कई क्षेत्रों में स्कूलों और छात्रावासों की स्थापना को प्रोत्साहित किया। शिबू सोरेन का मानना था कि शिक्षित आदिवासी समाज ही साहूकारों, जमींदारों और शोषक व्यवस्था को चुनौती दे सकता है।

    उनकी यह सोच आज भी झारखंड के शिक्षा आंदोलन में जीवंत है, जहां आदिवासी समुदाय के बीच शिक्षा का प्रसार तेजी से हो रहा है। शिबू सोरेन का यह दृष्टिकोण न केवल आदिवासी समाज को सशक्त करने का माध्यम बना, बल्कि झारखंड के समग्र विकास का आधार भी बना। उनकी सादगी और जनता से जुड़ाव ने उन्हें ‘दिशोम गुरु’ का दर्जा दिलाया।

    नशे के खिलाफ उनकी लड़ाई ने सामाजिक जागरूकता पैदा की, तो आत्मनिर्भरता और शिक्षा पर उनके जोर ने आदिवासियों को अपनी पहचान और सम्मान हासिल करने का रास्ता दिखाया। शिबू सोरेन के विचार प्रासंगिक रहेंगे, जो गांवों में नई पीढ़ी को प्रेरित कर रही है।

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