Move to Jagran APP

Jharkhand Politics: चुनाव न लड़कर भी फैक्टर बने शिबू सोरेन, मोर्चा के नारों-भाषणों में 'गुरु जी' की गूंज

पिछले पांच दशक से बिहार-झारखंड की राजनीति में जिस शख्स का जलवा कायम है उसमें झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के अध्यक्ष शिबू सोरेन शामिल हैं। शिबू सोरेन इस बार प्रत्यक्ष तौर पर चुनावी मैदान में नहीं हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में उन्हें परंपरागत दुमका सीट से हार का सामना करना पड़ा था। इसके बावजूद लोकसभा चुनाव में उनकी धमक पूरी तरह बरकरार रहेगी।

By Pradeep singh Edited By: Mohit Tripathi Published: Fri, 12 Apr 2024 08:13 PM (IST)Updated: Fri, 12 Apr 2024 08:13 PM (IST)
चुनाव न लड़कर भी फैक्टर बने शिबू सोरेन। (फाइल फोटो)

प्रदीप सिंह, जागरण, रांची। पिछले पांच दशक से बिहार-झारखंड की राजनीति में जिस शख्स का जलवा कायम है, उसमें मोर्चा के अध्यक्ष शिबू सोरेन शामिल हैं। राज्य में सत्तारूढ़ झामुमो से लेकर भाजपा विरोधी गठबंधन में सम्मिलित अन्य दलों के तमाम पोस्टरों से लेकर भाषण और नारों में गुरुजी की छाप है।

loksabha election banner

JMM के पोस्टर में शिबू सोरेन और हेमंत मुख्य चेहरा 

इस बार भी झामुमो के पोस्टर में शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन हर जगह दिखेंगे। दुमका से आठ बार सांसद रहे शिबू सोरेन इस बार स्वास्थ्य कारणों से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। उनकी पूर्व की भांति सक्रियता भी नहीं है। उम्रजनित बीमारियों से ग्रसित शिबू सोरेन की मौजूदगी उनके समर्थकों में जोश का संचार करती है।

उनकी परंपरागत सीट दुमका पर भी इस बार रोमांचक मुकाबला होगा। भाजपा ने दुमका में शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन को प्रत्याशी बनाया है। सीता सोरेन ने बगावत करते हुए ना सिर्फ झामुमो छोड़ा है, बल्कि सोरेन परिवार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। यह सिलसिला अभी जारी है। वहां उनका मुकाबला झामुमो के वरिष्ठ विधायक नलिन सोरेन से होगा।

शिबू सोरेन का संघर्ष मोर्चा की सबसे बड़ी ताकत

शिबू सोरेन के आंदोलन और संघर्ष के कारण उनके प्रति आदिवासियों व अन्य समाज के मन में व्याप्त सम्मान झामुमो की बड़ी ताकत रही है। झामुमो के रणनीतिकार भी इसे खूब समझते हैं। यही वजह है कि चुनाव से दूर रहकर भी गठबंधन के चुनावी सभाओं में उनकी चर्चा रहेगी।

महाजनी प्रथा के विरुद्ध आंदोलन कर बड़े फलक पर उभरे शिबू सोरेन ने लोगों को जागरूक करते हुए दिशोम गुरु का दर्जा पाया। शिबू सोरेन की आदिवासियों के बीच अच्छी पकड़ व लोकप्रियता है। विरोधी दल भी उन्हें ज्यादा टारगेट करने से परहेज करते हैं।

राजनीतिक सफर में आता रहा उतार-चढ़ाव

झारखंड की राजनीति में धमक रखने वाले शिबू सोरेन आठ बार सांसद, तीन बार राज्यसभा सदस्य, एक बार केंद्रीय मंत्री और तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। 1977 से लेकर अबतक के सभी चुनावों में शिबू सोरेन की मौजूदगी और धमक रही है।

संघर्ष के बूते जहां उन्होंने अपनी अलग राह बनाई, वहीं अलग-अलग समय में राजद, जनता दल, कांग्रेस और भाजपा के साथ तालमेल कर भी राजनीति की।

रिश्वत कांड, कोयला घोटाले से लेकर हत्या के मामलों में भी उनका नाम आया, लेकिन इन शिबू सभी केस में शिबू बरी हो चुके हैं। उनके राजनीतिक सफर में ढ़ेरों उतार-चढ़ाव आए। कई बार जेल यात्राएं की। चुनावों में उन्हें हार का सामना भी कई बार करना पड़ा।

यह भी उल्लेखनीय है कि शिबू सोरेन मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए विधानसभा का चुनाव हार गए थे। तमाड़ विधानसभा क्षेत्र से उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।

शिबू सोरेन ने राज्य में सभी दलों के साथ मिलकर सरकार चलाई। भाजपा के साथ उनका तालमेल ज्यादा नहीं चल पाया। अभी वे राज्यसभा के सदस्य हैं।

पड़ोसी राज्यों में भी प्रभाव

शिबू सोरेन ने वृहद झारखंड राज्य के लिए लंबा आंदोलन चलाया था। इसमें झारखंड से सटे बंगाल, ओड़िशा और छत्तीसगढ़ के जिले भी शामिल थे। हालांकि तकनीकी कारणों से वृहद झारखंड की मांग पर निर्णय नहीं हुआ, लेकिन इस आंदोलन के क्रम में शिबू सोरेन का इन राज्यों में लगातार कार्यक्रम हुआ। बिहार, ओड़िशा, बंगाल में उनके नेतृत्व में झामुमो ने चुनावों में जीत भी हासिल की।

यह भी पढ़ें: झारखंड व असम के 4 ठिकानों पर NIA की ताबड़तोड़ छापेमारी, खूंटी से PLFI के सशस्त्र दस्ते का विनोद मुंडा गिरफ्तार

Jharkhand Politics: झारखंड की इन 4 सीटों पर अपने पत्ते कब खोलेगी कांग्रेस? इस हॉट सीट पर सियासी हलचल सबसे तेज


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.