World Tribal Day: सड़क से संसद तक आदिवासियों की आवाज थे Shibu Soren, हिंदू-मुस्लिम विवाद पर ये थे विचार
झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शिबू सोरेन ने अपने भाषणों से आदिवासी अस्मिता सामाजिक न्याय और पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों को उठाया। उन्होंने आदिवासियों के कल्याण शराबबंदी और जंगलों के महत्व पर जोर दिया। शिबू सोरेन ने महाजनी प्रथा के खिलाफ संघर्ष किया और आदिवासियों को सत्ता का मालिक बनने के लिए प्रेरित किया।

प्रदीप सिंह, रांची। झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने अपने संसदीय भाषणों और विभिन्न अवसरों पर दिए गए उद्बोधन के माध्यम से आदिवासी अस्मिता, सामाजिक न्याय और पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों को राष्ट्रीय मंच पर उठाया। बीते चार अगस्त को उनका निधन हो गया, लेकिन उनके शब्द आज भी झारखंड और देश की जनता के बीच गूंजते हैं। उनके भाषण न केवल झारखंड आंदोलन की भावना को प्रतिबिंबित करते हैं, बल्कि शोषित-वंचित समाज के लिए उनके अटूट समर्पण को भी दर्शाते हैं।
1980 में दुमका से पहली बार सांसद बनने के बाद शिबू सोरेन ने संसद में आदिवासियों के कल्याण और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ जोरदार आवाज उठाई। उनके पहले संसदीय भाषण में उन्होंने शराब के दुष्प्रभावों पर बल दिया। उन्होंने कहा कि शराब से समाज टूटा है, बुराइयां आई हैं। सरकार ने शराब का लाइसेंस देकर लोगों को पीना सिखाया। जो पैसे लोग मेहनत से कमाते हैं, शराब के व्यापारी और सरकार उसे लूट लेती है। यह भाषण आदिवासी समाज में शराब के कारण होने वाली आर्थिक और सामाजिक हानि को उजागर करता था। शिबू सोरेन का मानना था कि जब तक आदिवासी समाज शराब से मुक्त नहीं होगा, उसका विकास संभव नहीं है।
ठेकेदारों को जंगल सौंप आदिवासी अर्थव्यवस्था को तोड़ा: शिबू सोरेन
शिबू सोरेन ने अपने भाषणों में जंगलों और पर्यावरण के महत्व पर जोर दिया। एक अवसर पर उन्होंने कहा कि पहले यह क्षेत्र जंगलों से आबाद था। आदिवासियों को छह महीने का भोजन जंगल से मिल जाता था। उनकी सामाजिक अर्थव्यवस्था आत्मनिर्भर थी। मगर जंगलों पर कब्जा कर ठेकेदारों के हाथों में सौंपकर आदिवासियों की अर्थव्यवस्था को तोड़ दिया गया।
उन्होंने जंगल संरक्षण के लिए जंगल बचाओ आंदोलन की आवश्यकता पर बल दिया और सामाजिक संगठन की ताकत को रेखांकित किया। उनके अनुसार, जंगल न केवल आदिवासियों की आजीविका का स्रोत थे, बल्कि उनकी सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान का आधार भी थे।
महाजनी प्रथा और आदिवासी अधिकारों की लड़ाई
2021 में अपने जन्मदिन के अवसर पर साहिबगंज में आयोजित एक पुस्तक लोकार्पण समारोह में शिबू सोरेन ने महाजनी प्रथा के खिलाफ अपने संघर्ष को याद किया। उन्होंने कहा कि सैकड़ों मुकदमे लड़े गए। खेती करने वालों के हक के लिए सालों प्रयास हुए। फिर एक दिन मेहनत करने वालों के खेत से धान खलिहान और फिर घर आया।
यह उदाहरण उनके धान काटो आंदोलन की सफलता को दर्शाता है, जिसने आदिवासियों की जमीन को महाजनों से मुक्त कराया। उन्होंने शिक्षा और जागरूकता को बढ़ावा देने की बात भी की, जिसमें शराबबंदी और सामाजिक सुधार शामिल थे।
सिर्फ वोट बैंक नहीं हैं आदिवासी: शिबू सोरेन
2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान कटोरिया में एक जनसभा को संबोधित करते हुए शिबू सोरेन ने कहा कि आदिवासियों को सिर्फ वोट बैंक नहीं, सत्ता का मालिक बनना होगा। कटोरिया की आवाज पटना तक पहुंचनी चाहिए। यह धरती हमारी है, हमारे पूर्वजों की है। हम अपनी अस्मिता और अधिकारों को किसी कीमत पर नहीं छोड़ेंगे। इस भाषण ने आदिवासी समुदाय में नई ऊर्जा का संचार किया और उनकी नेतृत्व क्षमता को प्रोत्साहित किया।
हेमंत सोरेन ने उनकी सादगी और दृढ़ता को किया याद
शिबू सोरेन के भाषण उनकी सादगी और दृढ़ता को दर्शाते हैं। उनके पुत्र मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उनके निधन के बाद कहा कि बाबा कहते थे, अगर अन्याय के खिलाफ खड़ा होना अपराध है तो मैं बार-बार दोषी बनूंगा। यह उद्धरण शिबू सोरेन के संघर्षमय जीवन और उनकी निडरता को दर्शाता है। उनके भाषणों ने न केवल पृथक झारखंड आंदोलन को बल दिया, बल्कि आदिवासियों को अपनी पहचान और अधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा और शक्ति दी।
धार्मिक विवादों पर शिबू सोरेन का स्पष्ट दृष्टिकोण
शिबू सोरेन ने अपने भाषणों में बार-बार धार्मिक और सांप्रदायिक विवादों को समाज के लिए नुकसानदायक बताया। 1990 के दशक में जब देश में मंदिर-मस्जिद विवाद चरम पर था, उन्होंने रांची में एक जनसभा में कहा था कि मंदिर-मस्जिद का झगड़ा समाज को बांटता है। यह गरीबों और मेहनतकशों का ध्यान उनकी असल समस्याओं से हटाता है। हमें जल, जंगल और जमीन के लिए एकजुट होना है, न कि धर्म के नाम पर लड़ना है।
धार्मिक विवाद शोषित समुदायों को कमजोर करते हैं और सत्ता के लिए इस्तेमाल होते हैं। शिबू सोरेन ने संसद में आदिवासी कल्याण के साथ-साथ सामाजिक सौहार्द पर जोर दिया। एक संसदीय चर्चा में उन्होंने कहा कि धर्म के नाम पर झगड़ा कराने वाले लोग न तो हिंदू के सच्चे हितैषी हैं, न मुसलमान के। वे सिर्फ सत्ता चाहते हैं। हमें एकजुट होकर शिक्षा, रोजगार और जमीन के लिए लड़ना चाहिए।
2015 में कटोरिया (बिहार) में एक जनसभा में उन्होंने कहा कि हमारी लड़ाई किसी धर्म या जाति के खिलाफ नहीं है। यह अन्याय और शोषण के खिलाफ है। हिंदू, मुस्लिम, आदिवासी सबको मिलकर अपनी धरती की रक्षा करनी है। वर्ष 2024 में एक सभा में हेमंत सोरेन ने दिशोम गुरु के शब्दों को दोहराते हुए कहा, "बाबा कहते थे, धर्म के नाम पर बंटवारा हमें कमजोर करता है। एकता ही हमारी ताकत है।"
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