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    पेसा कानून लागू होने से जनजातियों की संस्कृति व परंपराएं होंगी और मजबूत : डॉ. ललन शर्मा

    Updated: Tue, 30 Dec 2025 12:22 AM (IST)

    डॉ. ललन शर्मा ने बताया कि पेसा कानून जनजातीय संस्कृति व परंपराओं को मजबूत करता है। यह कानून भूरिया कमेटी की रिपोर्ट पर आधारित है और 1996 में बना था। य ...और पढ़ें

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    संजय कुमार, रांची। एकल अभियान के राष्ट्रीय अभियान प्रमुख डॉ. ललन कुमार शर्मा ने कहा कि भूरिया कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर 24 दिसंबर 1996 को पेसा कानून बनाया गया था। इसके माध्यम से जनजाति बहुल इलाकों में स्थानीय मान्यताओं व परंपराओं को बचाने के लिए परंपरागत ग्राम सभाओं को मजबूत किया गया।

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    जनजाति बहुल 10 राज्यों में इसे लागू करना था अब तक आठ राज्यों में ही लागू है। अधिकारों के टकराव के कारण 2010 तक तो किसी राज्य ने लागू ही नहीं किया था। आंध्र प्रदेश पहला राज्य था, जिसने मार्च 2011 को इसे अधिसूचित किया। उसके बाद राजस्थान ने 16 मई 2011 को अधिसूचित किया।

    झारखंड में 23 दिसंबर 2025 को कैबिनेट ने पास तो कर दिया है परंतु अभी तक अधिसूचना जारी नहीं हुई है। इस कानून के लागू हो जाने से जनजातियों की संस्कृति और रूढ़ीगत परंपराएं मजबूत होंगी।

    उन्होंने कहा कि ग्रामसभा में जनजातीय सुविधाओं संबंधित अधिकार समाप्त हो जाने के डर से अवैध मतांतरण पर शिकंजा कसेगा, क्योंकि ग्राम सभा के अध्यक्ष रुढिगत परंपरा को मानने वाले जनजाति समाज के लोग ही हो सकते हैं। डॉ. ललन शर्मा सोमवार को जागरण विमर्श के तहत रांची में दैनिक जागरण कार्यालय में अपनी बात रख रहे थे। विषय था पेसा कानून क्या है, इस कानून के लागू होने से किनको लाभ मिलेगा।

    उन्होंने कहा कि जहां-जहां अधिकारों को लेकर पंचायत प्रतिनिधियों का अहम सामने आएगा वहां पंचायतों व ग्राम सभाओं में टकराव भी संभव है पर आपसी सहमति बनाकर उसका समाधान निकाला जा सकता है। वैसे इस कानून के माध्यम से ग्राम सभाओं को जिस तरह का अधिकार मिला है, उसे कोर्ट ने भी मान्यता दी है।

    उन्होंने छत्तीसगढ़ के इससे संबंधित कई उदाहरण भी दिए। कहा कि वहां बस्तर जैसा नक्सल प्रभावित क्षेत्र में भी पेसा कानून को लेकर ग्राम सभा के मजबूत होने से ग्रामीणों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास बढ़ा है। वहां की सरकार का भी मानना है कि ग्राम सभाओं के सशक्त होने से स्थानीय लोग बाहरी विचारधाराओं के बजाय अपनी स्वशासन प्रणाली पर भरोसा कर रहे हैं।

    कोंडागांव व नारायणपुर जैसे जिलों में महुआ और तेंदुपता को लेकर ग्राम सभाएं स्वयं तय करती है कि अपना सामान किसे और किस मूल्य पर बेचेंगे। छत्तीसगढ़ के कई गांवों का उदाहरण देते हुए बताया कि मतांतरित ईसाई परिवार में जब किसी का निधन हुआ तो उसे गांव के परंपरागत सीमाओं के अंदर वहां की ग्रामसभा ने शव को दफनाने तक नहीं दिया।

    मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया और फैसला ग्राम सभा के पक्ष में ही आया। शव को गांव की सीमा के पार से 25 किमी दूर दफनाने का आदेश दिया। अवैध मतांतरण पर रोक के लिए तो छत्तीसगढ़ के कई गांवों में ग्राम सभा ने बोर्ड लगाकर अवैध तरीके से भोले भाले ग्रामवासियों का धर्म परिवर्तन कराने वाले के प्रवेश पर रोक लगा दी है।

    ग्राम सभा से जुड़े लोगों को प्रशिक्षण देने की है जरूरत

    डॉ. ललन शर्मा ने कहा कि पेसा कानून लागू होने के बाद गांवों में सचिवालय का निर्माण कर ग्राम सभा से जुड़े लोगों को प्रशिक्षण देने की जरूरत है साथ ही इससे बड़े पैमाने पर ग्रामीण युवाओं को रोज़गार भी मिलेगा। अब वनोपज एवं प्राकृतिक संपदाओं पर ग्राम सभा का अधिकार होने से ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति भी मजबूत होगी। विकास योजना जो बनेगी वह ग्राम सभा तय करेगी।

    छत्तीसगढ़ में तो इस कानून के तहत ग्राम सभाओं को पारंपरिक रीति रिवाजों के अनुसार आपसी विवादों को सुलझाने का कानूनी अधिकार भी मिला है। इससे पुलिस व अदालतों पर निर्भरता कम होगी। झारखंड के इस नए पेशा कानून का सभी को प्रतीक्षा है। उन्होंने संबंधित कई सवालों के जवाब भी दिए।