Move to Jagran APP

Jharkhand के जंगलों में नाइट्रोजन की भारी कमी बना चिंता का विषय, 69 फीसदी मिट्टी पौधों के लिए अनुपयुक्‍त

झारखंड के जंगलों की 69 फीसदी तक मिट्टी पौधों के पनपने के लिए नाकामयाब साबित हो रही हैं क्‍योंकि इनमें नाइट्रोजन की भारी कमी है। जंगलों की मिट्टी में नाइट्रोजन का घटता स्‍तर चिंता विषय है। एक रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है।

By Jagran NewsEdited By: Arijita SenPublished: Sun, 04 Dec 2022 03:02 PM (IST)Updated: Sun, 04 Dec 2022 03:02 PM (IST)
Jharkhand के जंगलों में नाइट्रोजन की भारी कमी बना चिंता का विषय, 69 फीसदी मिट्टी पौधों के लिए अनुपयुक्‍त
Jharkhand के जंगलों में नाइट्रोजन की भारी कमी बना चिंता का विषय

रांची, एजेंसी। झारखंड (Jharkhand) के जंगलों में इन दिनों नाइट्रोजन की भारी कमी चिंता का विषय बनी हुई है, क्‍योंकि इस वजह से यहां की मिट्टी पौधों के पनपने के लिए उपजाऊ साबित नहीं हो रही है। हाल ही में सामने आई एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है।

loksabha election banner

रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड के जंगलों की मिट्टी में नाइट्रोजन (Nitrogen) का स्‍तर लगातार घटता जा रहा है। इस बारे में बताते हुए एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय (Union Ministry of Forest and Environment) के निर्देश पर रांची स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट प्रोडक्टिविटी (आईएफपी) के तैयार किए गए वन मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एफएसएचसी) की रिपोर्ट में ये निष्कर्ष सामने आए हैं। 

पौधों के लिए नाइट्रोजन है अहम

आइएफपी के मुख्‍य तकनीकि अधिकारी (Chief Technical Officer) शंभू नाथ मिश्रा (Shambhu Nath Mishra) ने समाचार एजेंसी पीटीआइ को बताया, जंगलों की मिट्टी में नाइट्रोजन की भारी कमी है, जबकि पौधों के पनपने के लिए इनकी भ‍ूमिका अहम है।

बता दें कि गैर-अवक्रमित जंगल (Non-degraded forest) में नाइट्रोजन की उपस्थित प्रति हेक्‍टेयर के हिसाब से 258 किलोग्राम होनी चाहिए, जबकि झारखंड के जंगलों में प्रति हेक्‍टेयर की जमीन पर यह औसत 140 किलोग्राम है। 

इस शोध परियोजना के प्रमुख अन्‍वेषक (principal investigator) शंभू नाथ मिश्रा का कहना है कि यहां के अधिकांश वन प्रभागों में नाइट्रोजन की उपस्थिति 160 से 180 किलोग्राम के बीच बनी हुई है। कुछ इलाके ऐसे भी हैं, जहां यह आंकड़ा 100 किलोग्राम या इसके आसपास है।

रांची राजभवन के सामने धरने पर बैठे दिव्‍यांग, कहा- हमारी 21 सूत्री मांग पर सरकार करें विचार

एफएसएचसी रिपोर्ट पेश करने वाला झारखंड पहला राज्‍य

इस दौरान उन्‍होंने यह भी कहा कि झारखंड देश का पहला ऐसा राज्‍य है, जिसने एफएसएचसी रिपोर्ट की पेश की है। रिपोर्ट में बताया गया है कि इसके लिए राज्‍य के 31 वन प्रभागों के 1,311 स्‍थानों से अधिकतम 16,670 मिट्टियों के नमूने एकत्रित किए गए हैं। अधिकारी ने कहा कि यहां नाइट्रोजन की कमी के कारण घने या सामान्‍य रूप से घने जंगलों की संख्‍या कम होती जा रही है।  

उन्होंने बताया, नाइट्रोजन की कमी को पूरा करने के लिए प्रति हेक्टेयर 225 किलोग्राम यूरिया का उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा, प्रति हेक्‍टेयर के हिसाब से सात टन गोबर खाद (FYM) या 5.6 टन वर्मीकम्पोस्ट या केंचुआ खाद का उपयोग करके 90 किलोग्राम तक नाइट्रोजन की कमी को पूरा किया जा सकता है।

स्थिति नहीं सुधरी तो गंभीर हो सकते परिणाम

एफएसएचसी रिपोर्ट को जारी करने वाले झारखंड के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) संजय श्रीवास्तव (Sanjay Srivastava) ने कहा, मिट्टी की अहमियत काफी है क्‍योंकि 95 फीसदी तक खाद्य पदार्थों का स्रोत यही है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में प्रति सेकेंड एक एकड़ जमीन का मान घटता जा रहा है और अगर ऐसा ही चलता रहा तो 60 सालों के बाद स्थिति और भी बदतर हो जाएगी।

Jamshedpur: आखिरकार चार घंटे में जमींदोज हुआ 40 साल पुराना सिंह होटल, अब यहां बनेगा मल्‍टीप्‍लेक्‍स


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.