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    Jharkhand News: जल की रानी मछली ने रातू के निशांत को बनाया राजा, कर रहे हैं लाखों की कमाई

    Updated: Sun, 20 Jul 2025 10:40 AM (IST)

    रांची में मछली उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है। किंग फिशरीज फार्म पांच तकनीकों का उपयोग करके सालाना 200 टन मछली का उत्पादन कर रहा है जिससे 300 परिवारों को रोजगार मिल रहा है। निशांत कुमार ने 2018 में फार्म शुरू किया और बायोफ्लॉक तकनीक सीखी। अब वे विभिन्न प्रकार की मछलियां उगाते हैं और बिहार झारखंड ओडिशा और बंगाल में बेचते हैं।

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    रातू के निशांत मत्स्य पालन करके कमा रहे हैं लाखों रुपए। फाइल फोटो

    मनोज सिंह, रांची। मछली उत्पादन में राज्य काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है। सरकार की सहायता से मछली पालकों को कमाई भी हो रही है। रांची के रातू स्थित किंग फिशरीज फार्म में पांच तकनीक से मछली का पालन किया जाता है।

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    यह देश में ऐसा पहला व्यावसायिक फार्म है, जहां एक जगह पांचों तकनीक का इस्तेमाल कर मछली पालन किया जाता है। जिससे सालाना 200 टन मछली का उत्पादन होता है। जिससे कुल 300 परिवार जुड़े हैं। सरकार की सहायता और स्वयं की मेहनत से निशांत कुमार ने यह मुकाम हासिल किया है।

    निशांत कहते हैं कि वर्ष 2018 में मछली पालन के लिए फार्म की स्थापना किया था, तो परिवार सहित अन्य लोगों ने ताना भी मारा था कि इस व्यवसाय में कुछ भी नहीं है। लेकिन अपने निशांत कुमार को आने वाले समय में इसकी उपयोगिता और कमाई के बारे में जानकारी थी।

    उन्होंने दोस्तों के साथ मिलकर सीमेंट का तालाब बनाकर मछली पालन शुरू किया। हालांकि पहले ही साल उन्हें नुकसान का सामना करना पड़ा। लेकिन कहते हैं कि जहां चाह है, वहां राह है।

    इसके बाद इन्होंने मछली पालन की तकनीक सीखनी शुरू की। वर्ष 2021 से उन्हें प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत 50 टैंक मिले हैं।

    इंडोनेशिया से सीखी बायोफ्लॉक की तकनीक

    निशांत कुमार ने कहा कि जब पहले साल उन्हें मछली पालन में नुकसान हुआ तो परिवार सहित अन्य का ताना भी बढ़ गया। तब उन्होंने सोचा कि बिना नई तकनीक सीखे पारंपरिक तरीके से मछली का उत्पादन नहीं बढ़ाया जा सकता है। इसके बाद उन्होंने इंडोनेशिया में बायोफ्लॉक तकनीक सीखा।

    वापस लौटकर इन्होंने 24 बायोफ्लॉक टैंक का निर्माण कराया और मछली पालन शुरू किया। पहले साल इन्होंने पांच टन मछली का उत्पादन किया। तब उन्हें अपनी सफलता पर गर्व हुआ और उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

    अब वह 74 बायोफ्लॉक टैंक, रास तकनीक, जलाशय और तालाब में मछली पालन करते हैं। सालाना 200 टन मछली का उत्पादन है। इस साल करीब ढाई सौ से तीन सौ टन मछली का उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया है। निशांत कुमार ने बताया कि उन्हें 20 प्रतिशत मुनाफा होता है।

    लगभग 98 एकड़ में इन्होंने पांचों तकनीक का इस्तेमाल कर सिस्टम बनाया है। इनके फार्म में तेलपिया, पंगासिस, सिंघी, रूपचंदा, रोहू, कतला, नैनी, ग्रास कार्प, अमूर कार्प, पापदा और कोई प्रजाति की मछलियों का पालन किया जाता है।

    इन राज्यों में भेजते हैं मछली

    निशांत कुमार ने बताया कि उनके साथ करीब 200 से ज्यादा वेंडर और रिटेलर जुड़े हुए हैं। उनके फार्म की मछली सबसे ज्यादा बिहार में भेजी जाती है। उत्पादन का लगभग 70 प्रतिशत मछली बिहार भेजी जाती है।

    बाकी झारखंड, ओडिशा के सीमावर्ती क्षेत्र और कुछ बंगाल में भेजा जाता है। इस बार उन्होंने सजावट वाली मछली का उत्पादन शुरू किया है। जिसमें जापनीज कोई मछली है।

    यह मछली दो सौ से तीन सौ रुपये प्रति पीस बिकती है। यहां एक्वा टूरिज्म को भी बढ़ावा मिलता है। फार्म के पास वाटर पार्क और रिजार्ट भी है। मछली पालक सहित अन्य लोग भी इनके फार्म में तकनीक की जानकारी लेने आते हैं।

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