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Madhushravani Puja 2021: 13 दिनों के कठिन व्रत के बाद आज मधुश्रावणी का होगा समापन

13 दिनों तक चलने वाला मधुश्रावणी व्रत का बुधवार को समापन हो जाएगा। मधुश्रावणी मिथिलांचल का प्रमुख लोक पर्व है। सुहाग की सुरक्षा एवं सुखमय दांपत्य जीवन के लिए नवविवाहिताएं 13 दिनों तक पूरे विधि-विधान से पूजा करती हैं।

By Vikram GiriEdited By: Published: Wed, 11 Aug 2021 07:50 AM (IST)Updated: Wed, 11 Aug 2021 07:50 AM (IST)
Madhushravani Puja 2021: 13 दिनों के कठिन व्रत के बाद आज मधुश्रावणी का होगा समापन
Madhushravani Puja 2021: 13 दिनों के कठिन व्रत के बाद आज मधुश्रावणी का होगा समापन। जागरण

रांची, जासं । 13 दिनों तक चलने वाला मधुश्रावणी व्रत का आज यानि बुधवार को समापन हो जाएगा। मधुश्रावणी मिथिलांचल का प्रमुख लोक पर्व है। सुहाग की सुरक्षा एवं सुखमय दांपत्य जीवन के लिए नवविवाहिताएं 13 दिनों तक पूरे विधि-विधान से पूजा करती हैं। खासबात ये है कि पूजा पंडित द्वारा नहीं बल्कि घर की बुजुर्ग महिला कराती हैं। शिव-पार्वती के साथ नागदेव की कथा सुनाती हैं।

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मिथिलानी समूह की निशा झा बताती है कि मधुश्रावणी पर्व मिथिला की नव विवाहिताओं के होती है। उनके लिए ये एक प्रकार से साधना है। नवविवाहिता लगातार 13 दिनों तक चलने वाले इस व्रत में सात्विक जीवन व्यतीत करती है। बिना नमक का खाना खाती है। जमीन पर सोती है। झाड़ू नहीं छूती है। बहुत ही नियम से रहना पड़ता है। नवविवाहिताएं अपनी सखी-सहेलियों के साथ बगीचे में फूल तोड़ने जाती हैं। पूजा का समापन टेमी (रूई की बाती) दागने से समाप्त होती है। ससुराल से आये रूई की बाती से नवविवाहिता के पांव पर टेमी दागी जाती हैं। ये रस्म एक प्रकार की अग्निपरीक्षा के समान होती है।

इस साधना में प्रतिदिन सुबह में स्नान ध्यान कर के नवविवाहिता बिशहरा यानि नाग वंश की पूजा और मां गौरी की पूजा अर्चना करती है। फिर गीत नाद होती है और कथा सुनती है। इस पूरे पर्व के दौरान 15 दिनों की अलग-अलग कथाएं हैं। इसमें भाग लेने के लिए घर के साथ आस पड़ोस की महिलाएं भी आती है। उसके बाद शाम को अपनी सखी सहेलियों के साथ फूल लोढ़ने जाती है। इस बासी फूल से ही मां गौरी की पूजा होती है। 15 दिनों तक यही क्रिया चलती रहती है। इसमें विवाहिता के साथ-साथ पूरे परिवार का कपड़ा, मिठाई, खाजा, लड्डू, केला, दही आदि ससुराल से भेजा जाता है। ये सामान मधुश्रावणी के दिन सभी के बीच बांटा जाता है और खिलाया जाता है।

क्या है पौराणिक महत्व

स्कंद पुराण के अनुसार नाग देवता और मां गौरी की पूजा करने वाली महिलाएं जीवनभर सुहागिन बनी रहती हैं। ऐसी मान्यता है कि आदिकाल में कुरूप्रदेश के राजा को तपस्या से प्राप्त अल्पायु पुत्र चिरायु भी अपनी पत्नी मंगलागौरी की नाग पूजा से दीर्घायु होने में सफल हुए थे। अपने पुत्र के दीर्घायु होने से प्रसन्न राजा ने इसे राजकीय पूजा का स्थान दिया था। इस पर्व का मिथिला में विशेष महत्व है।

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