Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Jharkhand News: कुरमाली विषय में पीएचडी करने के लिए शिक्षक नहीं, छात्रों को हो रही परेशानी

    By Neeraj Ambastha Edited By: Rajesh Kumar
    Updated: Mon, 28 Jul 2025 09:18 AM (IST)

    झारखंड में कुरमाली भाषा में पीएचडी करने के लिए शिक्षकों की कमी है जिससे नेट/जेआरएफ पास छात्र शोध नहीं कर पा रहे। पूर्व विधायक लंबोदर महतो ने रांची विश्वविद्यालय के कुलपति से मानविकी विषयों के शिक्षकों के मार्गदर्शन में पीएचडी कराने की मांग की है। वर्तमान में केवल रांची विश्वविद्यालय और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में ही कुरमाली भाषा में पीएचडी शोध कार्य हो रहा है।

    Hero Image
    झारखंड में कुरमाली भाषा में पीएचडी करने के लिए शिक्षकों की कमी है। फाइल फोटो

    राज्य ब्यूरो, रांची। राज्य में कुरमाली भाषा में पीएचडी शोध करने के लिए शिक्षक नहीं हैं। ऐसे में, कुरमाली भाषा में नेट या जेआरएफ उत्तीर्ण कई छात्र पीएचडी शोध नहीं कर पा रहे हैं। अब मानविकी विषयों (संस्कृत, हिंदी, दर्शनशास्त्र) के शिक्षकों के मार्गदर्शन में कुरमाली भाषा में पीएचडी कराने की मांग उठ रही है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    पूर्व विधायक डॉ. लंबोदर महतो ने भी रांची विश्वविद्यालय के कुलपति का ध्यान इस ओर आकर्षित करते हुए यह मांग की है। उन्होंने छात्र हित में कुरमाली भाषा में नेट/जेआरएफ उत्तीर्ण छात्रों को मानविकी संकाय विषयों के शिक्षकों के मार्गदर्शन में पीएचडी शोध कार्य करने की अनुमति देने का अनुरोध किया है।

    दरअसल, राज्य में कुरमाली भाषा में पीएचडी शोध कार्य केवल रांची विश्वविद्यालय और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में ही हो रहा है।

    वर्तमान में झारखंड में कुरमाली भाषा के केवल दो नियमित शिक्षक हैं, जिनमें से केवल एक शिक्षक ही पीएचडी शोध कार्य करने के लिए पात्र हैं।

    उनका पद भी भरा हुआ है। जब से जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय को मानविकी संकाय से अलग किया गया है, कुरमाली भाषा के शोध छात्र मानविकी (संस्कृति एवं हिंदी) के शोध निदेशकों के अधीन पीएचडी के लिए पंजीकरण नहीं करा पा रहे हैं।

    इससे पहले, कुरमाली भाषा के छात्र संस्कृत और हिंदी विषय के शिक्षकों के शोध मार्गदर्शन में पीएचडी शोध करते थे, जिससे उनके भविष्य पर कोई असर नहीं पड़ता था।