उत्तरकाशी की तरह झारखंड में भी है लैंडस्लाइड का खतरा, खनन और पेड़ कटाई ने खोखली कर दी जमीन
हजारीबाग में मिट्टी धंसने के बाद रांची समेत झारखंड की पहाड़ियों पर खतरा बढ़ गया है। खनन पेड़ों की कटाई और जल स्रोतों के भरने से चट्टानें कमजोर हो रही हैं। बारिश से मिट्टी ढीली हो गई है जिससे पहाड़ियों के गिरने का खतरा है। पर्यावरणविदों ने पौधारोपण और संरक्षण के उपाय सुझाए हैं।

दिव्यांशु, रांची। हजारीबाग के बभनवे पहाड़ी पर हुई मिट्टी धंसान के साथ ही राज्य की दूसरी पहाड़ियों पर भी खतरा मंडरा रहा है। छोटानागपुर की पहाड़ियां करोड़ों साल पुरानी हैं।
रांची पहाड़ी की संरचना तो हिमालय से भी पुरानी है। लगातार हो रहे खनन, पेड़ों की कटाई और जल स्रोतों को भरे जाने से चट्टान अपरदित होकर मिट्टी में तब्दील हो रही हैं।
दस साल पहले रांची के अनगड़ा में ही दो पहाड़ियों की मिट्टी पूरी तरह जमीन पर आ गई थी। इस वर्ष मानसून की अतिवृष्टि से पहाड़ियों की मिट्टी ढीली हो गई है और इनके गिरने का खतरा बढ़ गया है।
पर्यावरणविद और चट्टानों की आयु पर शोध करने वाले विज्ञानी नीतिश प्रियदर्शी ने बताया कि मिट्टी में दरार आ गई है। इनमें पानी के जाते ही मिट्टी का वजन बढ़ जाता है और वह गुरुत्वाकर्षण की वजह से नीचे की ओर आ जाती हैं।
अपरदन से बचाने वाले पेड़ काटे गए पहाड़ियों पर पहले बड़ी संख्या में पेड़ लगे हुए थे। इससे चट्टान के अपरदन होने का खतरा नहीं रहता था। अब छोटानागपुर समेत पूरे राज्य की पहाड़ियां वृक्षविहीन हो चुकी हैं।
इसके अलावा कोयला खनन के लिए होने वाले ब्लास्ट की वजह से भूगर्भ में भी दरार आई है। इससे पहाड़ कमजोर हुए हैं। खनन कंपनियों के साथ पर्यावरण अनुकूल सेवा के लिए काम करने वाले सलाहकार सौमित्र प्रसाद ने बताया कि पहाड़ियों के आसपास आबादी बसी हुई है।
इससे खतरा और ज्यादा है। हालांकि, राज्य में बादल फटने जैसी आपदा की आशंका तो नहीं है, लेकिन मिट्टी दरकने की वजह से पहाड़ियों के टूटने और इनके आबादी वाले क्षेत्र में गिरने की आशंका है।
पहाड़ियों की पहचान कर पौधारोपण ही उपाय नीतिश प्रियदर्शी ने बताया कि ऐसी पहाड़ियों की पहचान कर उनका संरक्षण किया जाना चाहिए। उनपर पौधारोपण करने से मिट्टी में कसाव आएगा। इसके साथ ही बारिश में मिट्टी पौधे की जड़ से जुड़ी रहेगी।
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