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    झारखंड में BJP की हार के पीछे 3 बड़ी वजह, बौखलाए कार्यकर्ता ने कहा- प्रभारियों के होटल का बिल देख लिया जाए तो...

    भारतीय जनता पार्टी में चुनाव हार के बाद हाहाकार मचा है। 30 नवंबर को हार की समीक्षा के लिए बैठक होगी। कार्यकर्ताओं का कहना है कि अनुभवहीन प्रभारियों की नियुक्ति से पार्टी को नुकसान हुआ। प्रभारियों के चयन में सामाजिक समीकरण का ख्याल नहीं रखा गया। हार के बाद कार्यकर्ताओं ने पार्टी की तीन बड़ी कमी को उजागर किया है।

    By Dibyanshu Kumar Edited By: Mukul Kumar Updated: Mon, 25 Nov 2024 07:27 PM (IST)
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    हार के बाद भाजपा में मचा हाहाकार। फाइल फ़ोटो

    राज्य ब्यूरो, रांची। चुनाव में हार के बाद भारतीय जनता पार्टी में हाहाकार मचा है। 30 नवंबर को हार की समीक्षा के लिए होने वाली बैठक में सभी विधायक और चुनाव हार चुके प्रत्याशी को बुलाया गया है। लेकिन हार की वजह पर कार्यकर्ताओं के बीच चर्चा प्रारंभ है।

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    कार्यकर्ताओं का कहना है कि जिन्होंने कभी वार्ड का चुनाव नहीं लड़ा उन्हें पलामू और संताल परगना जैसे बड़े प्रमंडल का प्रभारी बना दिया गया। बालमुकुंद सहाय को संताल परगना का प्रभारी बनाया गया। इसी तरह विकास प्रीतम को पलामू का प्रभारी बनाया गया।

    गणेश मिश्रा एक बार विधानसभा का चुनाव लड़कर हार चुके हैं। उन्हें द. छोटानागपुर का प्रभारी बनाया गया। इन तीनों ने पार्टी की लुटिया डूबो दी। एकमात्र उत्तरी छोटानागपुर यानि कोयलांचल के प्रभारी मनोज सिंह ने अपने क्षेत्र में पार्टी को सफलता दिलाई।

    होटलों में सिमटे रहे प्रभारी और उनके साथ गए दूसरे नेता

    भाजपा में एक महत्वपूर्ण मोर्चा को पदाधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि पार्टी की तरफ से भेजे गए इन प्रभारियों के होटल का बिल ही देख लिया जाए तो एक विधानसभा क्षेत्र का चुनाव का खर्च निकल जाएगा। इनमें से कई प्रभारी तो स्वयं चुनाव लड़ने की मंशा पाले हुए थे।

    विकास प्रीतम गिरिडीह जिले की किसी सीट से तो बालमुकुंद सहाय गढ़वा से चुनाव लड़ना चाहते थे। टिकट नहीं मिला तो सेटिंग की वजह से प्रभारी बन गए और प्रधानमंत्री-गृहमंत्री की सभा में मंच पर बैठकर चेहरा चमकाने में लगे रहे।

    प्रभारियों के चयन में सामाजिक समीकरण का ख्याल भी नहीं रखा गया। गुमला लोहरदगा जैसे जिले के लिए एक ब्राह्मण प्रभारी कितने उपयोगी होंगे इसपर कोई विमर्श पार्टी ने किया ही नहीं।

    किसी चेहरे के बिना जाने का भी नुकसान हुआ

    झामुमो की तरफ से कल्पना सोरेन ने 98 सभाएं की। हेमंत सोरेन लगभग सभी क्षेत्र में गए। लेकिन भाजपा के बड़े आदिवासी नेता बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, चंपई सोरेन अपने ही क्षेत्र में सिमटे रहे।

    ओबीसी मतदाताओं को भी पार्टी ने प्रदेश के किसी बड़े नाम के जरिए साधने की कोशिश नहीं की। जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी सभाओं में लगातार ओबीसी समाज की एकजुटता की बात करते रहे।

    भाजपा कार्यकर्ता किसी महिला नेता को प्रचार अभियान में नहीं देख पाए। कार्यकर्ताओं का कहना है कि कल्पना सोरेन के सामने केंद्रीय नेतृत्व ने स्मृति इरानी या बांसुरी स्वराज को भेजा होता तो इसका असर होता।

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