Jharkhand Election: कहीं बहू जीती तो कहीं बेटे ने मारी बाजी, चुनावी 'खेल' में पार्टी से ज्यादा इनका पलड़ा रहा भारी
झारखंड विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर प्रत्याशी बदलने के बावजूद पार्टी और प्रमुख नेता अपने दम पर चुनाव जिताने में सफल रहे। शिकारीपाड़ा मनोहरपुर बाघमार ...और पढ़ें

नीरज अम्बष्ठ, रांची। हाल ही में संपन्न झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे से साफ हो गया है कि राज्य में कई विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां प्रत्याशी बदलने पर भी दल और प्रमुख नेता अपने दम पर चुनाव जिताने में सफल रहते हैं।
शिकारीपाड़ा, मनोहरपुर, बाघमारा, जमशेदपुर पूर्वी आदि ऐसे उदाहरण हैं। इन सीटों पर मजबूत जनाधार रखनेवाले नेताओं ने इस बार स्वयं चुनाव नहीं लड़कर अपने परिजनों को चुनाव मैदान में उतारा था। वे सभी अपने परिजनों को चुनाव जिताने में सफल भी रहे।
वहीं, जिन सीटों पर नेताओं का जनाधार पूर्व में भी नहीं रहा था, वहां उनके परिजन चुनाव हार गए। पोटका, घाटशिला आदि कई उदाहरण हैं। बात करते हैं संताल परगना प्रमंडल की विधानसभा सीट शिकारीपाड़ा की।
बेटों को मिली जीत
पिछले विधानसभा चुनाव में यहां से नलिन सोरेन ने लगातार सात बार चुनाव जीतने का रिकार्ड बनाया था। इस वर्ष लोकसभा के लिए चुने जाने के बाद उन्होंने इस सीट पर अपने बेटे आलोक कुमार सोरेन को झामुमो से ही टिकट दिलाया।
नलिन सोरेन के स्वयं चुनाव नहीं लड़ने के बाद भी इस सीट पर उनके बेटे को 41,174 मतों से जीत मिली। इसी तरह, मनोहरपुर से लगातार चुनाव जीत रही जोबा मांझी ने भी लोकसभा के लिए चुने जाने के बाद अपने बेटे जगत मांझी को झामुमो से ही टिकट दिलाया। उनको भी 31,956 मतों से जीत हासिल हुई।
किसी ने अपनी विरासत बचाई
वर्ष 2009 से ही बाघमारा से विधानसभा चुनाव जीत रहे ढुल्लू महतो ने भी इस वर्ष लोकसभा के लिए चुने जाने के बाद अपने भाई शत्रुघ्न महतो को भाजपा से टिकट दिलाकर चुनाव लड़ाया। इन्होंने भी 18,682 वोट से अपने भाई के प्रतिद्वंदी रहे कांग्रेस के जलेश्वर महतो को हराया।
संयुक्त बिहार के समय से ही वर्ष 1995 से जमशेदपुर पूर्वी से विधानसभा चुनाव जीत रहे रघुवर दास भले ही वर्ष 2019 में सरयू राय से चुनाव हार गए थे, लेकिन इस बार उनकी बहू पूर्णिमा साहू ने कांग्रेस प्रत्याशी अजय कुमार को 42,871 मतों से हराया।
परिजन को जीत दिलाने में नहीं हुए सफल
इस बार सरयू राय ने जमशेदपुर पूर्वी की जगह जमशेदपुर पश्चिमी से भाजपा के सहयोगी दल जदयू के टिकट पर चुनाव जीता है। इससे उलट कई अन्य नेताओं ने भी अपने परिजनों को विधानसभा चुनाव में मैदान में उतारा था। लेकिन वे अपने परिजनों को जीत दिलाने में सफल नहीं हो सके।
निश्चित रूप से ये सभी ऐसी सीटें थीं, जहां उनका मजबूत जनाधार नहीं रहा है। चंपई सोरेन ने अपने बेटे बाबूलाल सोरेन को पहली बार घाटशिला से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ाया। लेकिन वे कुछ खास नहीं कर सके।
इसी तरह, पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने इस बार स्वयं चुनाव नहीं लड़कर अपनी पत्नी मीरा मुंडा को पोटका से टिकट दिलाया था। उनकी भी हार हो गई। इस चुनाव में कई ऐसी सीटें भी सम्मिलित हैं, जहां चुनाव लड़ रहे नेता या नेत्री अपने पिता या पति की विरासत बचा नहीं सके।
इनमें मंत्री रह चुकीं बेबी देवी भी सम्मिलित हैं जो डुमरी में अपने पति जगरनाथ महतो की विरासत बचा नहीं सकीं। यही हाल रामगढ़ में आजसू प्रत्याशी सुनीता चौधरी का हुआ।
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