Delisting: झारखंड में आदिवासी आरक्षण में सुधार की मांग, आक्रामक रुख की तैयारी में भाजपा; निशाने पर 3 राज्य
झारखंड में भाजपा मतांतरित आदिवासियों को आरक्षण से बाहर करने (डिलिस्टिंग) के मुद्दे पर आक्रामक रणनीति अपना रही है। पार्टी कार्तिक जतरा में राष्ट्रपति क ...और पढ़ें

झारखंड भाजपा डीलिस्टिंग पर आंदोलन की तैयारी। फाइल फोटो
राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड में आदिवासी मुद्दों को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) एक बार फिर आक्रामक रणनीति अपनाने जा रही है। डिलिस्टिंग के सवाल पर पार्टी अपने रुख को और सख्त करेगी।
इस क्रम में कार्तिक जतरा में राष्ट्रपति की मौजूदगी को भाजपा आदिवासी समाज के बीच एक बड़े राजनीतिक और सामाजिक संदेश के तौर पर प्रस्तुत करने की तैयारी में है। इसका असर केवल झारखंड तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे आदिवासी बहुल राज्यों में भी यह संदेश पहुंचाने की कवायद होगी।
भाजपा का स्पष्ट रुख है कि मतांतरित आदिवासियों को आदिवासी आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए। पार्टी इस मांग को लेकर सामाजिक संगठनों और आदिवासी मंचों को साथ जोड़ने की योजना बना रही है। डिलिस्टिंग को संविधान और सामाजिक न्याय से जोड़ते हुए इसे आदिवासी पहचान की रक्षा का सवाल बताया जाएगा।
कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे स्वर्गीय कार्तिक उरांव की विरासत को केंद्र में रखकर भाजपा इस मुद्दे को धार देने की कोशिश कर रही है। कार्तिक उरांव के नाम और उनके विचारों का हवाला देकर भाजपा यह संदेश देना चाहती है कि डिलिस्टिंग की मांग नई नहीं, बल्कि लंबे समय से आदिवासी समाज के भीतर उठती रही है। विपक्ष इसे राजनीतिक आड़ बताकर हमला कर सकता है, लेकिन भाजपा इसे वैचारिक लड़ाई के रूप में पेश करेगी।
सामाजिक संगठनों के साथ व्यापक अभियान
आने वाले दिनों में सेमिनार, जनसंवाद, आदिवासी पंचायतों और सामाजिक मंचों के माध्यम से इस मुद्दे को गांव-गांव तक ले जाने की योजना है। पार्टी नेतृत्व का मानना है कि इससे आदिवासी समाज के भीतर उसकी वैचारिक पकड़ मजबूत होगी।
हाल के वर्षों में आदिवासी इलाकों में भाजपा के जनाधार में आई कमी को देखते हुए यह रणनीति अहम मानी जा रही है। डिलिस्टिंग को मुख्य मुद्दा बनाकर भाजपा न केवल राजनीतिक ध्रुवीकरण चाहती है, बल्कि अपने पारंपरिक वोट बैंक को फिर से संगठित करने की कोशिश भी कर रही है।

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