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    Jharkhand Election 2024: उपचुनाव से MLA बने सात नेताओं के सामने इस बार अलग चुनाैती, कल्पना की सीट पर सबकी नजरें

    Updated: Mon, 11 Nov 2024 03:52 PM (IST)

    झारखंड विधानसभा चुनाव में इस बार उपचुनाव से जीतकर विधानसभा पहुंचे सातों विधायकों के लिए अलग चुनौती है। उपचुनाव में मिली सहानुभूति का लाभ इस बार नहीं मिलेगा। मतदाता उनके कार्यों का आकलन कर वोट देंगे। कल्पना सोरेन हफीजुल हसन बेबी देवी कुमार जयमंगल उर्फ अनूप सिंह नेहा शिल्पी तिर्की सुनीता चौधरी और बसंत सोरेन सभी की जीत का फैसला इस बार मतदाता करेंगे।

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    उपचुनाव के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव के मैदान में उतरे निर्वतमान विधायकों में कल्पना सोरेन सबसे प्रमुख हैं।

    नीरज अम्बष्ठ, रांची। झारखंड विधानसभा के वर्तमान (पंचम) कार्यकाल में रिकॉर्ड सात उपचुनाव हुए। इन उपचुनावों में जीत दर्ज करनेवाले सभी नेता और नेत्री पहली बार विधानसभा पहुंचे थे। यह भी संयोग है कि इनमें सभी के सभी इस बार विधानसभा का चुनाव भी लड़ रहे हैं। उपचुनाव के माध्यम से विधानसभा पहुंचनेवाले निर्वतमान विधायकों के समक्ष इस बार अलग चुनाैती है, क्योंकि विधानसभा चुनाव उपचुनावों से माहौल थोड़ा अलग होता है।

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    इसमें कई दल और प्रत्याशी लंबे समय से चुनाव की तैयारियां करते हैं और चुनाव मैदान में उतरते हैं। दूसरी तरफ, उपचुनाव के माध्यम से विधानसभा पहुंचनेवाले सात निर्वतमान विधायकों में पांच को उपचुनाव में सहानुभूति का भी लाभ मिला था। इस बार निश्चित रूप से जनता उनके कार्यों का आकलन कर वोट देगी।

    कल्पना की सीट पर सबकी नजरें

    उपचुनाव के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव के मैदान में उतरे निर्वतमान विधायकों में कल्पना सोरेन सबसे प्रमुख हैं, जिनकी सीट पर सभी की नजरें होंगी। गांडेय उपचुनाव में भाजपा ने कल्पना सोरेन के सामने कमजोर प्रत्याशी खड़ा किया था। वहीं, एनडीए के घटक दल आजसू पार्टी सीट नहीं मिलने पर पार्टी के बागी अर्जुन बैठा चुनाव मैदान में उतर आए थे। कल्पना ने इस उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी दिलीप कुमार वर्मा को 27,149 मतों से हराया था। भाजपा ने इस चुनाव में कल्पना सोरेन के सामने मुनिया देवी को चुनाव मैदान में उतारा है।

    कुशवाहा समाज से संबंध रखनेवाली मुनिया देवी अभी गिरिडीह की जिला परिषद अध्यक्ष हैं। वह लगभग एक वर्ष पहले भाजपा में सम्मिलित हुई थीं। दूसरी तरफ, कल्पना अपने पति हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद उपचुनाव लड़ी थीं। सरफराज अहमद के राज्यसभा सदस्य चुने जाने के बाद यह सीट रिक्त हुई थी। तत्कालीन मंत्री हाजी हुसैन अंसारी के कोरोना संक्रमण से निधन होने के बाद रिक्त हुई मधुपुर विधानसभा सीट से हफीजुल हसन ने चुनाव जीता तो तत्कालीन शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो के निधन से रिक्त हुई डुमरी सीट से उनकी पत्नी बेबी देवी ने चुनाव जीता।

    निश्चित रूप से दोनों को उपचुनाव में सहानुभूति का लाभ मिला। चूंकि सरकार में दोनों को मंत्री बनने का अवसर मिला तो मतदाता निश्चित रूप से इस बार उनके कार्यों का आकलन करेंगे। हफीजुल हसन के सामने इस बार भी भाजपा के गंगा नारायण सिंह हैं, जिन्होंने उपचुनाव में उन्हें कड़ी टक्कर दी थी।

    इसी तरह, बेबी देवी के सामने भी आजसू प्रत्याशी यशोदा देवी सामने हैं। पूर्व मंत्री राजेंद्र सिंह के निधन से रिक्त हुई बेरमो सीट पर हुए उपचुनाव से कुमार जयमंगल उर्फ अनूप सिंह को विधानसभा पहुंचने का अवसर प्राप्त हुआ। उन्हें भी सहानुभूति का लाभ मिला। इस बार उनके सामने पूर्व सांसद तथा भाजपा नेता रवींद्र कुमार पांडेय हैं।

    नेहा शिल्पी, सुनीता चौधरी, बसंत सोरेन के सामने इस बार अलग प्रत्याशी

    मांडर, रामगढ़ और दुमका उपचुनाव से विधानसभा पहुंचनेवाले क्रमश: नेहा शिल्पी तिर्की, सुनीता चौधरी तथा बसंत सोरेन के सामने इस बार अलग प्रत्याशी हैं। मांडर में भाजपा ने जहां युवा नेता सन्नी टोप्पो को उतारा है तो रामगढ़ में इस बार सुनीता चौधरी के सामने ममता देवी हैं, जिनकी एक मामले में सदस्यता जाने के बाद वहां उपचुनाव हुआ था। उस समय उनके पति बजरंग महतो उनके सामने थे, जबकि इस बार उनकी प्रतिद्वंदी स्वयं सामने हैं।

    इसी तरह, हेमंत सोरेन के दुमका सीट से इस्तीफा देने के बाद वहां हुए उपचुनाव से उनके भाई बसंत सोरेन विधानसभा पहुंचे थे। उस उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी लुईस मरांडी उनके सामने थीं, जो इस बार झामुमो के टिकट पर ही जामा से चुनाव लड़ रही हैं। भाजपा ने इस बार बसंत सोरेन के सामने पूर्व सांसद सुनील सोरेन को चुनाव मैदान में उतारा है।

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