Hemant Soren: 'यह अपमान नहीं है तो क्या है ?', सराय काले खां बस स्टैंड का नाम बिरसा मुंडा करने पर भड़के हेमंत सोरेन
Jharkhand News दिल्ली में सरायकेला खां बस स्टैंड का नाम बिरसा मुंडा बस स्टैंड करने पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आपत्ति जताई है। उन्होंने इस फैसले को वापस लेने की मांग की कहा कि यह आदिवासियों का अपमान है। हेमंत सोरेन ने पूछा कि क्या दिल्ली में आदिवासियों के आराध्य के लिए उपयुक्त स्थान नहीं था? उन्होंने केंद्र सरकार से इस कदम को वापस लेने की मांग की।

डिजिटल डेस्क, रांची। Jharkhand Vidhan Sabha Chunav 2024: दिल्ली में सरायकेला खां बस स्टैंड का नाम बिरसा मुंडा बस स्टैंड किए जाने पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आपत्ति जताई है। उन्होंने इस फैसले को जल्द से जल्द वापस लेने के लिए कहा है। हेमंत सोरेन ने कहा कि ये है वह बस स्टॉप - वह चौक जिसका नाम हमारे भगवान बिरसा मुंडा पर रखा गया है। यह अपमान नहीं है तो और क्या है ?
क्या राजधानी दिल्ली में हम आदिवासियों के आराध्य के सम्मान के लिए, उनके प्रतिष्ठा एवं हमारी आस्था के अनुरूप क्या कोई और उपयुक्त स्थान नहीं था ? क्या सेंट्रल विस्टा का नाम हमारे भगवान पर नहीं रखा जा सकता था ?
यह झारखंडियों समेत देश के सभी आदिवासियों/मूलवासियों का अपमान है। हम केंद्र सरकार से मांग करते हैं की इस कदम को तुरंत वापस ले - और हमारे भगवान हमारे नायक को उनके प्रतिष्ठा, हमारे आस्था के अनुकूल स्थान दें।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा का अनावरण किया था
बता दें कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 'जनजातीय गौरव दिवस' के अवसर पर शुक्रवार को सराय काले खां बांसेरा पार्क में भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा का अनावरण किया। बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती का मौका था। उनकी जयंती पर जनजाति गौरव दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।
कौन हैं बिरसा मुंडा?
बिरसा मुंडा झारखंड के एक महान स्वतंत्रता सेनानी और आदिवासी नेता थे। उनका जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के खूंटी जिले के उलिहातू गांव में हुआ था। बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
बिरसा मुंडा का जन्म एक आदिवासी परिवार में हुआ था, और उन्होंने अपनी शिक्षा एक मिशन स्कूल में प्राप्त की। उन्होंने जल्द ही ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों और आदिवासियों के अधिकारों के लिए लड़ने का फैसला किया।
बिरसा मुंडा ने 1895 में उलगुलान (विद्रोह) शुरू किया, जिसमें उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आदिवासियों को एकजुट किया। उन्होंने अपने अनुयायियों को संगठित किया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कई लड़ाइयाँ लड़ीं।
बिरसा मुंडा की मुख्य मांगें थीं:
1. आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा।
2. जमींदारी प्रणाली का उन्मूलन।
3. ब्रिटिश सरकार का विरोध।
बिरसा मुंडा को 3 मार्च 1900 को ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार कर लिया और उन्हें जेल में डाल दिया गया। 9 जून 1900 को उन्होंने जेल में ही दम तोड़ दिया।
आज, बिरसा मुंडा को झारखंड के एक महान नायक के रूप में याद किया जाता है, और उनकी जयंती 15 नवंबर को झारखंड में एक महत्वपूर्ण दिन के रूप में मनाई जाती है।
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