झारखंड में सरकार और राजभवन के बीच चौड़ी हुई खाई
चार विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर राजभवन की भूमिका से सरकार नाखुश।

रांची, आनंद मिश्र। झारखंड के चार विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर राजभवन की भूमिका से सरकार नाखुश है। सीएनटी (छोटानागपुर टिनेंसी एक्ट) मामले पर पहले से राजभवन और सरकार में चल रही विवाद की खाई और चौड़ी होती दिख रही है। संगठन और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में भी इन नियुक्तियों को लेकर नाराजगी है। कारण, कुलपतियों की नियुक्ति प्रक्रिया के दौरान राजभवन ने सत्ता और संगठन किसी को भी भरोसे में लेने की कोशिश नहीं की।
विश्वविद्यालयों में ऐसे लोगों को कुलपति बनाकर भेजा गया है जिनका सत्ता व संगठन से कोई वास्ता नहीं रहा है। हालांकि विरोध प्रचंड होने के बावजूद खुलकर नाराजगी जाहिर नहीं की जा रही है। राजभवन की भूमिका की शिकायत आरएसएस ने दिल्ली तक जरूर पहुंचा दी है। सबसे अधिक विरोध विनोबा भावे विश्वविद्यालय के कुलपति बनाए गए डॉ. रमेश शरण की नियुक्ति को लेकर है।
आरएसएस को गाहे-बगाहे कोसने वाले रमेश शरण सरकार विरोधी विचारधारा के समर्थक भी माने जाते हैं। सिदो-कान्हू विश्वविद्यालय के कुलपति बनाए गए मनोरंजन सिन्हा का नाम भी भाजपा व आरएसएस के अनुकूल नहीं रहा। विनोबा भावे विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति कुनुल कांदिर भी संगठन की पसंद नहीं हैं। हां कोल्हान विश्वविद्यालय की कुलपति शुक्ला मोहंती और नीलांबर-पीतांबर विश्वविद्यालय के कुलपति सत्येंद्र नारायण सिंह के नामों को पचाने की कोशिश जरूर की जा रही है।
बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास ने शनिवार को राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात कर उनसे कुलपतियों की नियुक्ति के मसले पर चर्चा की थी, लेकिन जारी हुई अधिसूचना में सीएम के सलाह की उपेक्षा की गई। कुलपतियों की नियुक्ति में भाजपा संगठन, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उसकी अनुषंगी इकाइयों की खासी उपेक्षा हुई है। संगठन की ओर से भी जो नाम बढ़ाए गए थे उन पर विचार तक नहीं किया गया।
वर्तमान में सिदो-कान्हू विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति डॉ. सत्यनारायण मुंडा आदिवासी होने के साथ-साथ संगठन की पहली पसंद थे। माना जा रहा था कि उन्हें सिदो-कान्हू विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया जा सकता है, लेकिन आखिरी समय उन्हें छांट दिया गया। पूरे प्रकरण में राजभवन के एक वरिष्ठ आइएएस अधिकारी की भूमिका को लेकर रोष है।

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