Shibu Soren: नेता बनाने की फैक्ट्री थे दिशोम गुरु शिबू सोरेन, कई पहुंचे सीएम की कुर्सी तक
दिशोम गुरु शिबू सोरेन के कई पहचान हैं। वे न केवल एक आंदोलनकारी थे बल्कि एक दूरदर्शी समाज सुधारक समाजसेवी के साथ ऐसे राजनेता भी थे जिन्होंने झारखंड की राजनीति में कई प्रभावशाली दिग्गज दिए। उनके शिष्यों में दो मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा और चम्पाई सोरेन भी शामिल हैं जिन्हें उन्होंने राजनीति का ककहरा सिखाया।

प्रदीप सिंह, रांची। दिशोम गुरु शिबू सोरेन न केवल एक आंदोलनकारी थे, बल्कि एक दूरदर्शी समाज सुधारक समाजसेवी के साथ ऐसे राजनेता भी थे, जिन्होंने झारखंड की राजनीति में नेताओं की ऐसी पौध तैयार की जो आज विभिन्न दलों में अपनी पहचान बनाए हुए हैं।
उनके शिष्यों में दो मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा और चम्पाई सोरेन भी शामिल हैं, जिन्हें उन्होंने राजनीति का ककहरा सिखाया। शिबू सोरेन को नेता बनाने की फैक्ट्री कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा।
उनके नेतृत्व में कई युवा नेताओं ने राजनीति की बारीकियां सीखीं। अर्जुन मुंडा ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) से अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की।
1995 में पहली बार एकीकृत बिहार में विधायक बने। इसके बाद वे भाजपा में शामिल हो गए। जब वे 2003 में झारखंड के दूसरे मुख्यमंत्री बने तो शिबू सोरेन ने गर्व से कहा था - मैंने ही अर्जुन को तीर चलाना सिखाया है।
मुंडा तीन बार मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री भी बने। अर्जुन मुंडा मंगलवार को उनकी अंत्येष्टि में मोटर साइकिल पर सवार होकर नेमरा पहुंचे। इसी तरह, चम्पाई सोरेन, जिन्हें उन्हें समर्थक टाइगर कहते हैं, गुरुजी के विश्वासपात्र थे।
2024 में हेमंत सोरेन के जेल जाने पर चम्पाई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाया गया, जो उनके प्रति गुरुजी और हेमंत सोरेन के भरोसे को दर्शाता है।
हालांकि, चम्पाई ने भाजपा का दामन थाम लिया। शिबू सोरेन के निधन के बाद चम्पाई सोरेन ने कहा कि गुरुजी दिल में बसते हैं। मंगलवार को पैतृक गांव रामगढ़ के नेमरा में गुरुजीपंचतत्व में विलीन हो गए।
संथाल और कोल्हान में तैयार की थी नेताओं की फौज
शिबू सोरेन ने संथाल परगना और कोल्हान में नेताओं की फौज तैयार की थी। इसमें झामुमो के केंद्रीय महासचिव रहे शैलेंद्र महतो दो बार जमशेदपुर से सांसद बने। बाद में वे भी भाजपा में चले गए।
जमशेदपुर के वर्तमान सांसद विद्युत वरण महतो पहले झामुमो के टिकट पर बहरागोड़ा से विधायक बने। उन्होंने भी भाजपा में शामिल होकर चुनाव लड़ा और सांसद बने।
दिवंगत सुनील महतो भी इसी कतार में थे। उनकी नक्सलियों ने हत्या कर दी थी। संताल परगना में साइमन मरांडी और हेमलाल मुर्मू की भी राजनीतिक शुरूआत झामुमो से हुई। दोनों बीच में अलग-अलग दलों में जाकर फिर झामुमो में वापस लौटे।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।