Jharkhand News: 'तानाशाही इस स्तर...', BJP सांसद की SC पर टिप्पणी से भड़के JMM प्रवक्ता; कर डाली ये मांग
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के बयान पर विपक्षी दल हमलावर हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के प्रवक्ता मनोज पांडे ने निशिकांत दुबे पर निशाना साधते हुए कहा कि देश में तानाशाही इस स्तर पर पहुंच गई है कि अब सांसद अदालतों को चुनौती दे रहे हैं। इसके साथ ही उन पर कार्रवाई की भी मांग की। असदुद्दीन ओवैसी ने भी सांसद पर हमला बोला है।
एएनआई, रांची। सुप्रीम कोर्ट पर भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की विवादित टिप्पणी की आलोचना करते हुए झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के प्रवक्ता मनोज पांडे ने कहा कि देश में तानाशाही इस स्तर पर पहुंच गई है कि अब सांसद अदालतों को चुनौती दे रहे हैं।
JMM प्रवक्ता ने न्यायपालिका से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की साथ ही अदालत पर उनकी टिप्पणी को दुर्भाग्यपूर्ण बताया।
निशिकांत दुबे के खिलाफ कार्रवाई की मांग
मनोज पांडे ने कहा कि देश में तानाशाही इस स्तर पर पहुंच गई है कि अब सांसद अदालत को चुनौती दे रहे हैं। क्या ये लोग न्यायाधीशों से ज्यादा विद्वान हैं? क्या वे बहुमत मिलने पर कुछ भी करेंगे और क्या अदालतें चुप रहेंगी?
जब अदालतें उनके पक्ष में फैसला देती हैं तो वे कहते हैं कि न्यायपालिका लोकतंत्र का तीसरा स्तंभ है। उन्होंने कहा कि अदालत को उनके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।
असदुद्दीन ओवैसी ने भी की आलोचना
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी निशिकांत दुबे की टिप्पणी की आलोचना की है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा के सदस्य कट्टरपंथी हो गए हैं और अब न्यायपालिका को धमका रहे हैं। ओवैसी ने कहा कि आप लोग (भाजपा) ट्यूबलाइट हैं...इस तरह से अदालत को धमका रहे हैं।
क्या आपको पता भी है कि अनुच्छेद 142 क्या है? इसे बीआर अंबेडकर ने बनाया था। उन्होंने संविधान के उस प्रावधान का हवाला दिया, जो सुप्रीम कोर्ट को किसी भी मामले में पूर्ण न्याय देने का अधिकार देता है।
क्या है पूरा मामला
दरअसल, भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट 'धार्मिक युद्धों को भड़का रहा है' और SC के अधिकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट को कानून बनाना है तो संसद भवन को बंद कर देना चाहिए।
उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत का एक ही उद्देश्य है 'मुझे चेहरा दिखाओ और मैं तुम्हें कानून दिखाऊंगा'। सुप्रीम कोर्ट अपनी सीमाओं से परे जा रहा है। अगर किसी को हर चीज के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना है तो संसद और राज्य विधानसभा को बंद कर देना चाहिए। इसके साथ ही उन्होने पिछले अदालती फैसलों का हवाला देते हुए समलैंगिकता और धार्मिक विवादों को अपराधमुक्त करने जैसे मुद्दों से निपटने के लिए न्यायपालिका की आलोचना की।
समलैंगिकता का जिक्र
उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 377 के तहत समलैंगिकता को बहुत बड़ा अपराध माना गया था। ट्रंप प्रशासन ने कहा है कि इस दुनिया में केवल दो लिंग हैं, या तो पुरुष या महिला...चाहे वह हिंदू हो, मुस्लिम हो, बौद्ध हो, जैन हो या सिख हो, सभी मानते हैं कि समलैंगिकता एक अपराध है।
एक सुबह, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें इस मामले को खत्म कर देना चाहिए...अनुच्छेद 141 कहता है कि हम जो कानून बनाते हैं, जो फैसले देते हैं, वे निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लागू होते हैं। अनुच्छेद 368 कहता है कि संसद के पास सभी कानून बनाने का अधिकार है और सुप्रीम कोर्ट के पास कानून की व्याख्या करने की शक्ति है।
शीर्ष अदालत राष्ट्रपति और राज्यपाल से पूछ रही है कि वे बताएं कि उन्हें विधेयकों के संबंध में क्या करना है। जब राम मंदिर, कृष्ण जन्मभूमि या ज्ञानवापी का मुद्दा उठता है, तो आप (SC) कहते हैं, 'हमें कागज दिखाओ'। मुगलों के आने के बाद जो मस्जिद बनी है उनके लिए कह रहे हो पेपर कहां से दिखाओ।
देश को 'अराजकता' की ओर ले जाना चाहता है SC: निशिकांत दुबे
दुबे ने आगे आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट इस देश को 'अराजकता' की ओर ले जाना चाहता है। उन्होंने कहा कि आप नियुक्ति प्राधिकारी को कैसे निर्देश दे सकते हैं? राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं। संसद इस देश का कानून बनाती है। आप उस संसद को निर्देश देंगे?
आपने नया कानून कैसे बनाया? किस कानून में लिखा है कि राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला लेना है? इसका मतलब है कि आप इस देश को अराजकता की ओर ले जाना चाहते हैं। जब संसद बैठेगी तो इस पर विस्तृत चर्चा होगी।
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