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    झारखंड में आदिवासी के बाद कुर्मी को साधने के प्रयास में जुटी भाजपा, अपनाई जा रही नई रणनीति

    By Jagran NewsEdited By: Yashodhan Sharma
    Updated: Sat, 29 Jul 2023 12:10 AM (IST)

    लोकसभा की 14 सीटों वाले झारखंड में दो बड़े जाति समूह हैं आदिवासी और कुर्मी। राज्य की लगभग आधी आबादी इन्हीं दोनों की है। बाबूलाल मरांडी को प्रदेश की कमान सौंपने के बाद भाजपा कुर्मी समूह को साधने के प्रयास में है। नेता प्रतिपक्ष के लिए कुर्मी जाति के विधायक की तलाश को हवा देकर भाजपा ने इरादे भी जता दिए हैं।

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    झारखंड में आदिवासी के बाद कुर्मी को साधने के प्रयास में जुटी भाजपा, अपनाई जा रही नई रणनीति

    अरविंद शर्मा, नई दिल्ली: लोकसभा की 14 सीटों वाले झारखंड में दो बड़े जाति समूह हैं, आदिवासी और कुर्मी। राज्य की लगभग आधी आबादी इन्हीं दोनों की है।

    बाबूलाल मरांडी को प्रदेश की कमान सौंपने के बाद भाजपा कुर्मी समूह को साधने के प्रयास में है। नेता प्रतिपक्ष के लिए कुर्मी जाति के विधायक की तलाश को हवा देकर भाजपा ने इरादे भी जता दिए हैं, लेकिन झामुमो छोड़कर भाजपा में आए जयप्रकाश पटेल के नाम पर भारी विरोध है।

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    विडंबना यह भी है कि उनके अलावा इस समुदाय से भाजपा के पास कोई अन्य प्रभावशाली विधायक नहीं है। जयप्रकाश के पिता टेकलाल महतो झामुमो के संस्थापक एवं बड़ा चेहरा थे।

    केंद्रीय नेतृत्व पर छोड़ा फैसला

    झारखंड भाजपा प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी एवं केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे ने रांची में अपने विधायकों से विचार-विमर्श करने के बाद फैसला केंद्रीय नेतृत्व पर छोड़ दिया है, जो राज्य की सभी सीटों पर जीत की रणनीति बनाने में जुटा है।

    नीतीश कुमार ने बिहार कोटे से खीरू महतो को राज्यसभा सदस्य बनाकर भाजपा को पहले ही सोचने के लिए बाध्य कर रखा है। प्रदेश में आदिवासी के बाद कुर्मी दूसरा सबसे बड़ा वोट बैंक है, जिसपर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) एवं राज्यस्तरीय दल आजसू की राजनीति परवान चढ़ती रही है।

    कभी भाजपा के पास भी इस समुदाय से कई बड़े नेता हुआ करते थे, लेकिन पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो एवं रामटहल चौधरी के राजनीतिक अवसान के बाद इस समुदाय से अभी तक एक भी बड़ा प्रतिनिधि नहीं उभर पाया है।

    अपने दम पर खड़ी होना चाहती है भाजपा

    अत: जरूरी और मजबूरी के रास्ते पर चलते हुए इसकी भरपाई के लिए भाजपा ने आजसू के साथ गठबंधन की रणनीति अपनाई, जो समय और जरूरत के हिसाब से जुड़ते-बिछुड़ते आज भी चली आ रही है। किंतु इस बार आजसू से गठबंधन बनाए रखते हुए भाजपा का अपने दम पर भी खड़ा होने का प्रयास है।

    भाजपा की इस रणनीति को पिछले कुछ चुनाव परिणामों का सबक माना जा रहा है। 2019 के संसदीय चुनाव में भाजपा से गठबंधन कर लड़ने वाली आजसू ने छह महीने बाद ही विधानसभा चुनाव में अलग राह पकड़ ली थी।

    दोनों के प्रत्याशियों ने एक-दूसरे को हराया। नतीजा हुआ कि रघुवर दास के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की सत्ता में वापसी नहीं हो सकी।

    किस रणनीति पर काम कर सकती है भाजपा

    हालांकि, दस दिन पहले 18 जुलाई को एनडीए के 39 घटक दलों की दिल्ली वाली बैठक में आजसू प्रमुख सुदेश महतो ने भी सक्रिय हिस्सा लिया था, फिर भी माना जा रहा है कि कुर्मी समुदाय में भाजपा अपने किसी नेता का कद बड़ा कर सुदेश महतो की महत्वाकांक्षा को नियंत्रित करने की रणनीति पर काम कर सकती है, क्योंकि सीटों के लिहाज से भाजपा कभी झारखंड को नजरअंदाज नहीं कर सकती है।

    संसदीय चुनाव में झारखंड पर भाजपा का प्रारंभ से ही एकाधिकार रहा है। 2014 के चुनाव में भी आजसू से अलग होने के बावजूद भाजपा ने अपने दम पर 14 में से 12 सीटें जीत ली थीं।

    हालांकि, 2019 के संसदीय चुनाव में दोनों फिर साथ आए और मिलकर फिर 12 सीटें जीत ली। आजसू को एक एवं भाजपा को 11 सीटों पर जीत मिली, किंतु इस बार भाजपा को 26 दलों वाले इंडिया से झारखंड में भी कड़ी चुनौती मिल सकती है।