Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Draupadi Murmu: बिरसा मुंडा के वंशजों ने द्रौपदी मुर्मु का पांव धोया, ड्रैगन फ्रूट गया राष्ट्रपति भवन

    By Pradeep singhEdited By: M Ekhlaque
    Updated: Tue, 15 Nov 2022 08:16 PM (IST)

    Draupadi Murmu In Jharkhand राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु मंगलवार को खूंटी के उलिहातु गांव में थीं। भगवान बिरसा मुंडा के वंशजों ने पारंपरिक तरीके से उनका स्वागत किया। राष्ट्रपति ने भी मुंडारी भाषा में उनके वंशजों से हाल-चाल पूछा।

    Hero Image
    Jharkhand News: भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के साथ झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस व सीएम हेमंत सोरेन।

    उलिहातु, (प्रदीप सिंह)। आततायी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष कर अमर हुए धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली खूंटी के उलिहातू में मंगलवार को पांव रखने के लिए भी जगह नहीं थी। भावनाओं का ज्वार उमड़ रहा था। आजादी के बाद पहली बार किसी राष्ट्रपति के कदम यहां पड़े थे। बिरसा मुंडा के वंशजों ने उनकी खुले मन से अगवानी की। सुखराम मुंडा ( भगवान बिरसा मुंडा के पोत) सबसे आगे थे। नजर पड़ते ही राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने उनसे मुंडारी में पूछा - आम चिलका... (कैसे हैं आप)। मुंडा ने भी जवाब देते हुए कुशलक्षेम पूछा। वंशजों ने कांसे की थाली में उनके पांव पखारे। भीतर पारंपरिक रीति-रिवाज से जेठा पाहन पूजापाठ के लिए तैयार थे। जनेऊ धारण किए हुए सुखराम मुंडा के पुत्र जंगल सिंह मुंडा सबको चंदन का तिलक लगा रहे थे। पूजापाठ के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु जब बाहर आईं तो बिरसा के सारे वंशज मौजूद थे।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    पहली बार राष्ट्रपति खुद चलकर आई बिरसा के गांव

    सुखराम मुंडा ने इस मौके पर महामहिम को अपनी समस्याओं की ओर ध्यान दिलाया। कहा कि परेशानी बहुत है। मकान नहीं है। पढ़ाई-लिखाई की व्यवस्था ठीक नहीं है। बच्चों के लिए सहायता की गुहार लगाई। गांव में हाई स्कूल चल रहा है, उसे प्लस टू करने का आग्रह किया। छत मिल जाता तो अच्छा होता। सुखराम कहते हैं - ऐसा पहली बार हुआ है कि राष्ट्रपति खुद चलकर आईं हैं उलिहातू। इससे बड़ा सम्मान और क्या हो सकता है। इससे बढ़कर भी खुशी की बात है कि एक आदिवासी आज देश के राष्ट्रपति पद पर विराजमान हैं।

    लाल पाड़ का गमछा भेंट कर द्रौपदी मुर्मु का स्वागत

    सुखराम मुंडा की पत्नी लखीमनी, पुत्र बुधराम, जंगल सिंह मुंडा और उनकी पत्नी गांगे मुंडा, कानू मुंडा और सुभद्रा मुंडा ने बारी-बारी से राष्ट्रपति का अभिवादन किया। वंशजों ने उन्हें लाल पाड़ का गमछा उपहार स्वरूप सौंपा। राष्ट्रपति ने उन्हें धोती, साड़ी और कुर्ता देकर सम्मानित किया। भरोसा दिलाया कि सभी समस्याओं का भी समाधान होगा। राष्ट्रपति करीब 20 मिनट वंशजों के साथ रहीं। राष्ट्रपति से मुलाकात के पूर्व सबका कोरोना टेस्ट कराया गया था। इस दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री अन्नपूर्णा देवी भी मौजूद थीं।

    राष्ट्रपति भवन भेजा गया खूंटी जिले का ड्रैगन फ्रूट

    मुरहू प्रखंड के हेठागोवा गांव में जूड़न सिंह मुंडा ड्रैगन फ्रूट की पैदावार करते हैं। मूलत: चीन और थाईलैंड के इस फल की मांग और पैदावार का प्रचलन इन दिनों तेजी से चल रहा है। राष्ट्रपति को उपहार में देने के लिए उन्होंने 10 किलो ड्रैगन फ्रूट जिला प्रशासन के माध्यम से भिजवाया था। उन्होंने बताया कि जिला प्रशासन को फल सौंपे गए, जिसे राष्ट्रपति को उपहार स्वरूप प्रदान किया गया। ड्रैगन फ्रूट की खेती कर चर्चा में आए जूड़न इसके अलावा गेंदा फूल की भी खेती बड़े पैमाने पर करते हैं।

    माथे पर चंदन और तन पर जनेऊ, यही पहचान

    वैष्णव परंपरा के वाहक बिरसाइत पांव में चप्पल नहीं पहनते। मांसाहार का सेवन नहीं करते। माथे पर चंदन लगाते हैं और वैष्णव परंपरा के वाहक हैं। ये बिरसा धर्म को मानते हैं। तन पर जनेऊ धारण करते हैं। आचार, विचार और व्यवहार में संत सरीखे। बिरसा धर्म को मानने वालों की कई टोलियां बंदगांव, सोनुवां, गुदड़ी, रनिया इलाके से पैदल चलकर उलिहातू पहुंची थी। हर वर्ष 15 नवंबर और नौ जून (भगवान बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि) को ये उलिहातू अवश्य आते हैं। सामूहिक प्रार्थना करते हैं और फिर वापस लौट जाते हैं। न कोई तामझाम, न कोई दिखावा। दो दिन आने में लगता है उलिहातू। साथ में सूखा भोजन रखते हैं। जहां भूख लगी, टोली पूजापाठ कर भोजन ग्रहण कर लेती है। फिर आगे का रास्ता तय होता है।

    मांसाहार से मनाही, यही बिरसा का संदेश था

    मलगू मुंडरी अपने पुत्र गुरुवा मुंडरी और पत्नी सलमी मुंडरी के साथ आए हैं। वे कहते हैं, यही हमारी वेशभूषा और रहन-सहन का तरीका है। बिल्कुल सनातन परंपरा के अनुरूप। यह पूछे जाने पर कि कुछ तत्व जनजातीय समुदाय को सनातन से अलग प्रचारित करते हैं, उन्होंने कहा - ऐसे लोग भ्रम में हैं। भगवान बिरसा मुंडा जब पहली बार अंग्रेजों की कैद से छूट तो उन्होंने जगन्नाथ पुरी समेत कई तीर्थ स्थलों का भ्रमण किया। उन्होंने वही वेशभूषा निर्धारित किया है, जो सनातन वैष्णव परंपरा में भी है। पूजा के दौरान चंदन का टीका लगाते हैं और बाल्यावस्था से ही जनेऊ धारण करते हैं। मांसाहार की मनाही है। यही भगवान बिरसा मुंडा का संदेश था।

    राष्ट्रपति ने लुगनी मुंडा के पुत्र के शिक्षा का उठाया बीड़ा

    राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु दिव्यांग लुगनी मुंडा के पुत्र दिलीप मुंडा के शिक्षा का पूरा खर्च उठाएगी। मंगलवार को खूंटी के उलिहातू में उनकी मां दिव्यांग लुगनी मुंडा से मुलाकात कर उन्होंने यह घोषणा की। उन्होंने झारखंड स्थापना दिवस की बधाई दी। ट्वीट किया- जोहार झारखंड! उलिहातू से राज्य स्थापना दिवस पर मैं झारखंड के सभी निवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं देती हूं। मैं चाहती हूं कि झारखंड के लोग अपनी संस्कृति, परंपराओं और रीति-रिवाजों को संजोते हुए पर्यावरण अनुकूल विकास के नए आयाम स्थापित करें।

    जोहार झारखंड! उलिहातू आकर धन्य महसूस कर रही हूं

    जनजातीय समुदायों ने स्वाधीनता संग्राम में महान योगदान दिया। भगवान बिरसा मुंडा के गांव उलिहातू में जाकर उनकी प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करने का मुझे सौभाग्य मिला। भगवान बिरसा की जयंती के दिन, उनकी प्रतिमा का दर्शन कर मैं स्वयं को धन्य महसूस कर रही हूं। उनके जन्म और कर्म से जुड़े स्थानों पर जाना मेरे लिए तीर्थयात्रा के समान है। मैं सभी ज्ञात-अज्ञात जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों, वीरों-वीरांगनाओं को नमन करती हूं। आजादी के बाद से देश की विकास यात्रा में जनजातीय लोगों का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनके विकास और समृद्धि के लिए मेरी शुभकामनाएं! जनजातीय गौरव दिवस पर सभी देशवासियों, विशेषकर जनजातीय समाज के भाइयों और बहनों को मैं बधाई देती हूं। जनजातीय समुदायों ने अपनी कला, शिल्प और कठिन परिश्रम से राष्ट्र के जीवन को समृद्ध किया है। उनकी जीवनशैली, विश्व समुदाय को प्रकृति के संवर्धन की शिक्षा प्रदान करती है।