August Kranti: पलामू में चार दिन पहले ही बज गया 'करो या मरो' का बिगुल, जानिए- यदु बाबू से कितना डरते थे अंग्रेज
Jharkhand August Revolution भारत छोड़ो आंदोलन में पलामू का योगदान महत्वपूर्ण रहा है। नरम और गरम दल के नेताओं का यह केंद्र रहा है। देश में 9 अगस्त से गिरफ्तारी शुरू हुई थी पलामू में चार दिन पहले ही अंग्रेजों ने गिरफ्तार करना शुरू कर दिया था।

पलामू, {मृत्युंजय पाठक}। August Revolution India देश की आजादी की लड़ाई में पलामू के योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। यह भी कह सकते हैं कि पलामू किसी से नहीं था। कई मौकों पर तो सबसे आगे थे। अगस्त का महीना चल रहा है। इसी महीने में 1942 में करो या मरो नारे के साथ अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ था। यह ऐतिहासिक तथ्य है कि देशभर में आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी 9 अगस्त को हुई। इससे चार दिन पहले पलामू में आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी शुरू हो गई थी। और गिरफ्तार होने वालों में प्रमुख नाम था-यदुवंश सहाय यानी यदु बाबू।
1942 के आंदोलन में पलामू के पांच भाई गए थे जेल
देश की आजादी की लड़ाई में 8 अगस्त 1947 को मुंबई अधिवेशन में भारत छोड़ो आंदोलन का प्रास्ताव पारित हुआ। 9 अगस्त को पूरे देश में करो या मरो ने नारे के साथ आंदोलन शुरू हुआ। यह आंदोलन अगस्त क्रांति के रूप में जाना जाता है। 9 अगस्त 1942 को दिन निकलने से पहले ही कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्य गिरफ्तार हो चुके थे और कांग्रेस को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया गया। देशभर में 8 अगस्त की रात्रि से गिरफ्तारी शुरू हुई और 9 की सुबह तक ज्यादातर आंदोलनकारियों को अंग्रेजी हुकूमत ने गिरफ्तार कर लिया। पलामू के कई स्वतंत्रता सेनानी 6 अगस्त को ही गिरफ्तार कर लिए गए। पलामू के पांच भाई 1942 के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में जेल गए थे।
आजादी की लड़ाई में नरम और गरम दल का केंद्र था
जंग-ए-आजादी की दोनों धाराओं (नरम और गरम) का केंद्र पलामू रहा था। एक धारा का नेतृत्व यदुवंश सहाय यदु बाबू कर रहे थे तो दूसरी धारा की कमान गणेश प्रसाद वर्मा के हाथों में थी। यदु बाबू के भाई उमेश्वरी चरण लल्लू बाबू और बेटे कृष्ण नंदन सहाय भी जेल गए थे तो गणेश बाबू के साथ उनके भाई नंदकिशोर प्रसाद वर्मा और साले गोकुल प्रसाद वर्मा ने भी अपनी काफी समय अंग्रेजों की कालकोठरी में बिताया था। इनके अलावा नीलकंठ सहाय, ऋषि कुमार सहाय, तीरथ प्रकाश भसीन, वेद प्रकाश भसीन और हजारीलाल साह- नारायण लाल साह की जोड़ी भी जेल में बंद थी। इनमें से साह बंधुओं को छोड़कर सभी के नाम डालटनगंज के शिलालेख (वर्तमान में नीलांबर-पीतांबर विश्वविद्यालय के समीप) पर अंकित है। साह बंधु चैनपुर थाना के शाहपुर के रहने वाल थे, इसलिए डालटनगंज के शिलालेख पर नाम अंकित नहीं है।
यदु बाबू से इतना खाैफ कि पहले ही गिरफ्तार कर लिया
वरिष्ठ प्रत्रकार प्रभात मिश्र बताते हैं कि मेदिनीनगर (डालटनगंज) और पलामू के सभी आंदोलनकारियों की चर्चा तो संभव नहीं है, लेकिन यदि यदु बाबू और गणेश बाबू के बारे में कहा जाय तो ही तस्वीर उभर कर सामने आ जाती है। अंग्रेजों के मन में इनके प्रति कितना खौफ वह 1942 की गिरफ्तारी से ही पता चलता है। करो या मरो आंदोलन 9 अगस्त से शुरू होने वाला था। यदु बाबू के बारे में अंग्रेजों को काफी गुप्त सूचनाएं पहुंच रही थीं। इसका परिणाम यह हुआ कि 6 अगस्त को ही गिरफ्तार कर लिए गए। जब गिरफ्तार किया गया तो वह किसानों की सभा में भाग लेने जा रहे थे।
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