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    तार-तार शिक्षा का अधिकार

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    Updated: Wed, 07 Dec 2011 01:00 AM (IST)

    रांची : राज्य में निश्शुल्क एवं शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 का जमकर उल्लंघन हो रहा है। निजी स्कूलों द्वारा इसके अनुपालन कराने में न तो सरकार की इच्छाशक्ति दिख रही है और न ही निजी स्कूलों के प्रबंधकों के बीच इसे लेकर कोई भय है। यहां शिक्षा का अधिकार (आरटीई) तार-तार हो रहा है।

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    अधिकांश निजी स्कूलों में प्रथम कक्षा (प्रेप, नर्सरी, एलकेजी आदि) में नामांकन का मौसम चल रहा है। लेकिन शिक्षा के अधिकार कानून के तहत नामांकन में बच्चों या अभिभावकों को दी गई छूट की व्यवस्था इन स्कूलों में नहीं हैं। अधिनियम का उल्लंघन करते हुए अधिकांश निजी स्कूलों ने नामांकन के लिए नगर निगम द्वारा निर्गत जन्म प्रमाणपत्र अनिवार्य कर दिया है। नामांकन तो दूर, स्कूलों में बिना इसके फार्म तक नहीं दिए जा रहे। अधिनियम की धारा 14 की उपधारा 2 में स्पष्ट कहा गया है कि उम्र प्रमाणपत्र नहीं होने के कारण बच्चों को नामांकन से वंचित नहीं किया जा सकता। निश्शुल्क शिक्षा अधिकार को लेकर झारखंड में बनी नियमावली के खंड दस में भी कहा गया है कि जहां कहीं जन्म, मृत्यु और विवाह प्रमाणीकरण अधिनियम, 1986 के अधीन जन्म प्रमाणपत्र उपलब्ध नहीं है, वहां अस्पताल या एएनएम और दाई रजिस्टर अभिलेख, आंगनवाड़ी अभिलेख या माता-पिता या अभिभावक द्वारा बालक की आयु की घोषणा बालक की आयु का सबूत समझा जाएगा। लेकिन फिलहाल यह व्यवस्था कागजों पर ही सीमित है।

    अधिनियम की धारा 13 की उपधारा 2 (बी) में बच्चों या अभिभावकों के स्क्रीनिंग टेस्ट पर रोक लगाई गई है। लेकिन निजी स्कूल इसका भी उल्लंघन कर रहे हैं। बच्चों या अभिभावकों के स्क्रीनिंग पर अधिकतम 25 हजार रुपए का दंड हो सकता है। एक से अधिक बार ऐसे गलती होने पर दंड की यह राशि पचास हजार रुपए भी हो सकती है।

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    25 फीसदी सीटों पर बीपीएल का नामांकन नहीं

    शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत सभी स्कूलों को प्रथम कक्षा में 25 प्रतिशत सीटों पर दाखिला आसपास के बीपीएल परिवार के बच्चों को लेना है। पिछले साल स्कूलों का कहना था कि बीपीएल छात्र ही नामांकन लेने नहीं आए तो स्कूल क्या करे। लेकिन इस बार भी न तो सरकार की ओर से इसे लेकर बीपीएल परिवारों को कोई जानकारी दी गई और न ही स्कूलों की ओर से। नामांकन के बाद फिर स्कूल कहेंगे कि बीपीएल बच्चे नहीं आए तो क्या करें। यहां यह उल्लेखनीय है कि आरटीई एक्ट के इस प्रावधान को झारखंड नियमावली में स्थान नहीं दिया गया है। अलबत्ता सरकार स्कूलों को जो मान्यता पत्र देगी, उसके फारमेट में उल्लेख है कि विद्यालय अपनी प्रथम कक्षा में उस कक्षा में बालकों की संख्या के 25 प्रतिशत तक आस-पड़ोस के कमजोर एवं वंचित वर्ग के बच्चों का नामांकन लेगा और उन्हें निश्शुल्क और अनिवार्य शिक्षा उसकी प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण हो जाने तक उपलब्ध कराएगा। इस तरह नामांकित बच्चों को अधिनियम की धारा 12 की उपधारा 2 के उपबंधों के तहत प्रतिपूर्ति राशि सरकार देगी।

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    'यदि ऐसा हो रहा है तो गलत है। जिला शिक्षा अधीक्षक नोडल पदाधिकारी होते हैं। लोग उनसे शिकायत करें तो स्कूलों पर कार्रवाई हो। जहां तक 25 प्रतिशत सीटों पर बीपीएल बच्चों के दाखिला की बात है तो इसके लिए बीपीएल को भी आगे आना होगा। स्कूल कहते हैं कि बीपीएल बच्चे नामांकन के लिए नहीं आते। निजी स्कूलों में शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित हो, इसके लिए आवश्यक कार्रवाई अपने स्तर से भी करेंगे।'

    - डा. डीके सक्सेना, निदेशक, प्राथमिक शिक्षा

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