..मासूम लावारिस बेजुबां न होते तो हो जाती 162 को जेल
बीते तीन साल में झारखंड के अलग-अलग जिलों में 162 नवजात लावारिस मिले, जिनकी मौत हो गई।
रांची, फहीम अख्तर। समाज के किसी व्यक्ति की हत्या हो जाए या लाश मिले तो सनसनी फैल जाती है। उनके परिचित आगे आकर हत्या का मामला दर्ज कराते हैं, मुजरिमों को पकड़वाने के लिए संघर्षरत होते हैं। पकड़े जाने पर पुलिस सजा भी दिलाती है।
लेकिन मासूम नवजात बच्चों की हत्या और शव फेंके जाने पर शव के साथ सबकुछ दफन कर दिया जाता है। मामले तक दर्ज नहीं होते। कसूर इनके लावारिस और बेजुबां होने का है। चूंकि इनकी मौत पर कोई लड़ने वाला नहीं होता। ये खुद उन अपराधों की जानकारी नहीं दे सकते, जिन्होंने इन्हें लावारिस हाल में फेंक दिया हो।
वर्ष 2015 से 2018 तक के आंकड़ों की बात करें तो पूरे राज्य में 162 नवजात फेंके गए। इनमें 88 मृत व 74 जीवित मिले। ये आंकड़े न तो पुलिस के पास है, न किसी बाल कल्याण समिति के पास। आंकड़े नवजात बच्चों के परित्याग पर काम कर रही संस्था पा लो न ने जुटाई है।
प्रत्यक्ष तौर पर सामने आए मामलों पर कार्रवाई होती तो कितनों को जेल की सजा हो जाती। बता दें कि अधिकांश बच्चों को अविवाहित मां-पिता द्वारा फेंके जाते हैं। दूसरी स्थिति आर्थिक तंगी होती है।
आईपीसी की धारा 315 और 317 के तहत होगी कार्रवाई : एक्सपर्ट के मुताबिक बच्चों को लावारिश फेंकने पर आइपीसी की धारा 315 व 317 के तहत कार्रवाई होती है। नवजातों को मारकर फेंकने की स्थिति में धारा 315 के तहत कार्रवाई होगी। इसमें दस वर्ष तक की सजा हो सकती है।
दुर्भावना सामने आने पर धारा 302 की सजा भी संभावित है। बच्चों को जीवित छोड़ देने पर धारा 317 के तहत कार्रवाई होती है। इसमें सात वर्ष की सजा के साथ दुर्भावना सामने आने पर धारा 307 पर भी सजा हो सकती है। नवजात की लाश मिलने पर धारा 318 के तहत मामला दर्ज कर कार्रवाई होगी, जांच व पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर धाराएं तब्दील हो सकती है।
अधिकांश मामलों में नहीं दर्ज होते केस : झारखंड राज्य के अधिकांश ऐसे मामलों पर केस दर्ज नहीं होते। पुलिस प्रशासन को इसमें संवेदनशील और आम लोगों को के बीच जागरुकता फैलाने की जरूरत है।'
मोनिका आर्य, संयोजक पालोन सह आश्रयणी फाउंडेशन।
पुलिस को करनी चाहिए कार्रवाई : नवजातों को फेंके जाने का मामला संवेदनशील है। ऐसे मामलों पर पुलिस को कार्रवाई करना चाहिए। आयोग भी ऐसे मामलों पर कार्रवाई कर रही है।
आरती कुजूर, अध्यक्ष झारखंड राज्य बाल संरक्षण आयोग।