मांस खाने वाली इस मछली पर लगा है बैन फिर भी धड़ल्ले से हो रही बिक्री, इसके सेवन से कैंसर तक होने का रहता खतरा
सड़क किनारे दुकान लगाकर बंगाल से आए हुए आधा दर्जन व्यापारी लोहरदगा में मछली बेच रहे हैं। जबकि केंद्र सरकार और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने थाई मांगुर प्र ...और पढ़ें

विक्रम चौहान, लोहरदगा। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और भारत सरकार ने वर्ष 2000 में विदेशी थाई मछली पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बावजूद खुलेआम थाई मछली बेची और खरीदी जा रही है। सिर्फ लोहरदगा जिले के शहरी क्षेत्र के चेकनाका से लेकर ब्लॉक मोड़ तक आधा दर्जन स्थानों पर सड़क के किनारे इस मछली की बिक्री हो रही है।
सेहत के लिए बेहद खतरनाक थाई मांगुर
जिला प्रशासन के नाक के नीचे खुलेआम इस तरीके से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और केंद्र सरकार के आदेश की धज्जियां उड़ाई जा रही है, महत्वपूर्ण बात यह है कि थाई मांगुर प्रजाति की मछली स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है।
फिर भी बंगाल के रास्ते लोहरदगा तक और राज्य के अलग-अलग जिलों में भी अवैध तरीके से इसका कारोबार हो रहा है। विदेशी मांगुर मछली को देसी मांगुर बताकर बाजारों में बेचा जाता है। लोग बड़े शौक से इस मछली को खाते हैं।
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मांस खाती है थाई मांगुर मछली
मांगुर मछली पर प्रतिबंध लगाने के पीछे इससे होने वाला पर्यावरण और स्वास्थ्य को नुकसान है। मांगुर मछली के खाने से कैंसर और कई गंभीर रोग हो सकते हैं। यह मछली मांस खाती है, जिसकी वजह से इसका शरीर बहुत तेजी से बढ़ता है।
मांगुर मछली में आयरन और लेड बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है, जिसके कारण यह इंसान और पर्यावरण दोनों के लिए खतरनाक है। कहा जाता है कि मांगुर मछली जिस तालाब या जलाशय में रहती है, वहां दूसरी प्रजाति की एक भी मछली या कीड़े-मकोड़े तक नहीं बचते। यह मछली दूसरी मछलियों को भी अपना शिकार बनती है।
बंगाल से व्यापारी झारखंड में कर रहे बिक्री
एनजीटी और केंद्र सरकार के प्रतिबंध के बावजूद लोहरदगा में भी बड़े आराम से इस मछली की बिक्री हो रही है। बंगाल के मालदा, पुरूलिया आदि स्थानों से व्यापारी आकर यहां पर थाई मांगुर मछली की बिक्री कर रहे हैं।
लोहरदगा में रोहू, कतला, ग्रास कार्प, मीनार कार्प, सिल्वर आदि प्रजाति की मछलियों को बेचने वाले पश्चिम बंगाल के खसकोल इंग्लिश बाजार निवासी वासुदेव चौधरी का कहना है कि मांगुर मछली अंगुलिका (मछली का बच्चा) की बिक्री पांच रुपये से लेकर दस रुपये प्रति पीस तक की जाती है।
लगभग एक उंगली साइज की यह मछली तीन महीने में ही आधा किलो तक वजन की विकसित हो जाती है। जबकि सामान्य मछली को इतना विकसित होने में छह से आठ महीने का समय लगता है। काफी कम समय में इस मछली के तेजी से बढ़ने की वजह से इसकी खूब डिमांड है।
लोहरदगा तक इस मछली को पश्चिम बंगाल के पुरूलिया के कई सप्लायर आपूर्ति करते हैं। थाई मांगुर मछली की बिक्री पर पूरी तरह से प्रतिबंध है। एनजीटी और केंद्र सरकार द्वारा इस पर रोक लगाया गया है। यदि लोहरदगा में इस तरह की बिक्री हो रही है, तो इसकी जांच कर आगे की कार्रवाई की जाएगी। नीलम सरोज एक्का, डीएफओ, लोहरदगा फूड सेफ्टी आफिसर के माध्यम से इसकी जांच कराई जाएगी। थाई मांगुर मछली का सेवन स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है। इससे कैंसर सहित कई रोग होते हैं- डाक्टर राजमोहन खलखो, सिविल सर्जन, लोहरदगा।

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