पेड़-पौधे से ही बचाया जा सकता पर्यावरण का अस्तित्व
जामताड़ा मानव समाज अपनी जरूरत पूर्ण करने के लिए पेड़ों को काटना आरंभ कर दिया है और
जामताड़ा : मानव समाज अपनी जरूरत पूर्ण करने के लिए पेड़ों को काटना आरंभ कर दिया है और इन पेड़ों की लकड़ियों को घरों में उपयोग किया जा रहा है। ऐसे में यदि आनेवाले समय में भी जंगलों को लगातार इसी रफ्तार से काटा गया, तो देखने तक के लिए कोई पत्ता भी शेष नहीं रह जाएगा। इसका प्रभाव मिट्टी की प्रजनन क्षमता पर भी पड़ता है। जंगलो के काटने से मिट्टी की प्रजनन क्षमता भी लगातार कम होते जा रही है। यह सभी समस्याएं आनेवाले समय में मानव समाज के समक्ष एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आनेवाली है। जंगलों और पेड़ों का जीवन में महत्व को पहचानने की आवश्यकता है, जिस प्रकार मानव को जीवित रहने के लिए जल की आवश्यकता है उसी प्रकार हमारे पर्यावरण को जीवित रखने के लिए पेड़ पौधों की आवश्यकता है और पर्यावरण है तो मनुष्य है। पेड़ों को काटने के साथ ही मनुष्य अपने जीवन को खत्म करने का एक मार्ग निश्चित करते जा रहा है। इस तरह मानव समाज को बचाने के लिए वनों का सृजन, प्रबंधन, उपयोग एवं संरक्षण को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है, जिसे समग्र रूप में वानिकी कहते हैं। वानिकी को बढ़ावा देने के लिए सभी स्तर पर प्रयास होना चाहिए लेकिन जिस रफ्तार से इसमें वृद्धि होनी चाहिए वह अपेक्षाकृत सुस्त है। जबकि सरकार ने भी वानिकी को बढ़ावा देने के लिए नीति तैयार की और विभिन्न मंच से इसे बढ़ावा देने के लिए अपील भी की जा रही है।
---क्या है सरकार की वानिकी नीति : झारखंड की आर्थिक स्थिति में वनों का अहम योगदान है। यहां 23 प्रतिशत भू-भाग वनों से आच्छादित है। लेकिन एक सर्वे के मुताबिक झारखंड में बीस प्रतिशत से भी कम वनक्षेत्रवाले सात जिले में जामताड़ा भी शामिल है। जहां केवल 5.56 प्रतिशत ही वन क्षेत्र है। सरकार ने भी ऐसे क्षेत्रों में वनों की आवश्यकता को महसूस किया और विभिन्न योजनाओं के माध्यम से वनक्षेत्र विस्तार करने का प्रयास किया। वह चाहे वन महोत्सव हो या आम बागवानी मिशन योजना, सभी कार्यक्रमों व योजनाओं का लक्ष्य एक ही है वनक्षेत्र का विस्तार करना है। इसी के तहत जामताड़ा जिले में बराकर नदी के किनारे तीस हजार पौधे भी लगाए गए जबकि आम बागवानी मिशन के तहत हजारों एकड़ भूमि में आम बागवानी करने की योजना क्रियान्वित है।
--- सिचाई की असुविधा : जिले में वानिकी की दिशा में अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही है। इस कार्य में जो सबसे बड़ी अड़चन सामने आई है वह है सिचाई की असुविधा। सरकार व आमजन जिस उत्साह से पौधरोपण करते हैं उस रफ्तार में उसका संरक्षण व संवर्द्धन नहीं हो पता है। नतीजतन एक समय सीमा के बाद लोग हतोत्साहित होकर इससे विमुख होने लगते हैं। नए पौधे को जिदा रखने के लिए नियमित सिचाई की आवश्यकता है। जो जिले में ही नहीं बल्कि संपूर्ण झारखंड में एक बड़ी समस्या है। यहां जलसंचयन का श्रोत कारगर नहीं रहने से वनरोपण कार्य अधिक कारगर साबित नहीं हो रहा है।
--- क्या कहते हैं वनस्पति शास्त्री : पौधरोपण के लिए अच्छा समय चल रहा है। ऐसे में किसानों को पौधरोपण से पहले अपने खेत की मृदा का परीक्षण अवश्य करा लेना चाहिए। रोपित करने से पहले पौधों की अच्छी प्रजाति का भी चयन किया जाना मायने रखता है। जामताड़ा महिला संध्या महाविद्यालय के वनस्पतिशास्त्र विभाग के प्राध्यापक हेमकांत झा ने उक्त जानकारी देते हुए कहा कि स्वास्थ्य, शिक्षा और पर्यावरण सोशल सेक्टर से जुड़े हुए हैं, इनके लिए केवल सरकारी तंत्र, विभाग के बूते से ही कार्य संभव नहीं हो सकता। इसके लिए समाज के लोगों को जागरूक होना होगा। पौधरोपण से ही पर्यावरण संरक्षण संभव नहीं है, इसके लिए जरूरी है कि रोपित किए गए पौधों की देखभाल की जाए और वृक्ष बनने दिया जाए। आसपास के क्षेत्रों में होनेवाले वृक्ष की कटाई को रोकने के लिए भी जन सहयोग जरूरी है। पेड़-पौधों का पर्यावरण संरक्षण के साथ ही प्रकृति, घरों के आसपास सुंदर वातावरण और फल-फूल की उपलब्धता में बड़ा योगदान रहता है।
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