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    झारखंड की रीगल बिल्डिंग में अब भी मौजूद है हावड़ा ब्रिज के बचे स्टील की मजबूती Jamshedpur News

    By Rakesh RanjanEdited By:
    Updated: Sat, 11 Jan 2020 01:12 PM (IST)

    यह जमशेदपुर शहर की पहली इमारत है जो स्टील के शहतीर व पिलर पर खड़ी है। यही नहीं इसमें जिस स्टील का इस्तेमाल किया गया है वह हावड़ा ब्रिज के लिए बनाया गया था।

    झारखंड की रीगल बिल्डिंग में अब भी मौजूद है हावड़ा ब्रिज के बचे स्टील की मजबूती Jamshedpur News

    ये भी जानें

    • 11 मंजिला भवन के निर्माण के लिए टाटा कंपनी प्रबंधन ने नहीं प्रदान की थी स्वीकृति
    • 1933 में मुंबई के ब्रिटिश आर्टिटेक्ट ने बनाया था नक्शा, खुर्शीद मानिकशा भरुचा ने बनवाई बिल्डिंग

    जमशेदपुर, वीरेंद्र ओझा। झारखंड के जमशेदपुर शहर की हृदयस्थली में स्थापित रीगल बिल्डिंग ना केवल सबसे पुरानी इमारतों में से एक है, बल्कि यह लौहनगरी की पहचान (लैंडमार्क) भी है। इससे भी बड़ी बात है कि यह शहर की पहली इमारत है, जो स्टील के शहतीर व पिलर पर खड़ी है। यही नहीं इसमें जिस स्टील का इस्तेमाल किया गया है, वह हावड़ा ब्रिज के लिए बनाया गया था।

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    बिल्डिंग के मालिक आदिल गजदर (74) बताते हैं कि इसे उनके दादा खुर्शीद मानिकशा भरुचा ने बनाया था। वे टाटा स्टील के इकलौते चीफ कैशियर थे, क्योंकि एकाउंट्स विभाग के बाकी अधिकारी ब्रिटिश थे। हावड़ा ब्रिज पूरी तरह स्टील से बनाया गया था, जिसका निर्माण टाटा स्टील में ही किया था। पुल बनाने के बाद जो स्टील बच गया, उसे कंपनी बेचना चाहती थी। उनके दादा ने कंपनी प्रबंधन से कहा कि वे इस बचे हुए स्टील से एक बिल्डिंग बनाना चाहते हैं। प्रबंधन ने स्वीकृति दे दी, तो दादाजी ने 11 मंजिला भवन का नक्शा पारित करने का प्रस्ताव कंपनी को भेजा। प्रबंधन ने कहा कि उन्हें भवन पर आपत्ति नहीं है, लेकिन इतनी ऊंची इमारत शहर के बीच में नहीं बन सकती।

    ब्रिटिश आर्टिटेक्ट ने बनाया था नक्शा

    आप चाहें तो शहर के बाहर आपको जमीन दी जा सकती है, लेकिन दादाजी ने छोटी ही सही बिष्टुपुर में जमीन मांगी। लिहाजा दादा जी ने दो मंजिला भवन ही बनवाया। इसका नक्शा मुंबई के पारसी व ब्रिटिश आर्किटेक्ट ने बनाया था, जबकि निर्माण कार्य दादाजी ने अपनी देखरेख में ही कराया। भवन 1933 में शुरू हुआ, जिसे बनने में दो साल लगे। इसके सारे पिलर व शहतीर, मेहराब में उसी हावड़ा ब्रिज से बचे स्टील लगे। अब इस भवन का 80 फीसद ढांचे का पुनर्निमाण किया जा रहा है, लेकिन शेष 20 फीसद हिस्से में अब भी हावड़ा ब्रिज वाला स्टील मौजूद है। 

    चारों ओर बालकनी, बीच में बड़ा आंगन

    रीगल बिल्डिंग में लगे लोहे के एंगल में लिखा है टाटा आयरन एंड स्टील। 

    रीगल बिल्डिंग का नक्शा भी ठीक उसी तरह है, जैसे पुराने जमाने के मकान होते थे। पहले घरों में आंगन अनिवार्य होता था। इसके नक्शे में चारों ओर से हरियाली युक्त बालकनी और बीच में बड़ा सा आंगन (एटियम) था। बाद में इसी आंगन के हिस्से का उपयोग करते हुए 1950 में थियेटर बनाया गया, जो 1984 में बंद कर दिया गया। आदिल बताते हैं कि सरकार ने सिनेमाहॉल पर इतना टैक्स लगा दिया था कि चलाना मुश्किल हो गया।

    गुजरात के भरुच से आए थे केएम खुर्शीद

    आदिल गजदर बताते हैं कि उनके दादा खुर्शीद मानिकशा भरुचा गुजरात के भरुच से आए थे, इसलिए उन्होंने अपना टाइटल भी गजदर की जगह भरुचा रख लिया। रीगल बिल्डिंग का नाम भी भरुचा मेंशन रखा। वे पारसी परिवार से ताल्लुक रखते हैं।

    • यह बिल्डिंग आज भी शहर में अलग पहचान रखती है। इस बिल्डिंग के बनने के बाद लंबा समय गुजर गया, लेकिन इसकी मजबूती आज भी पहले जैसी ही है। इसका ढांचा बेहद मजबूत है और इसों हावड़ा ब्रिज के बचे स्टील की मजबूती अब भी बरकरार है। ब्रिटिश आर्किटेक्ट की देखरेख में बनी यह बिल्डिंग दो साल की मेहनत के बाद तैयार हुई थी।

    -आदिल गजदर, बिल्डिंग के मालिक