सेंदरा पर्वः परंपरा निभाते रहे, बेजुबान जान गंवाते रहे
सेंदरा पर्व पर जुटे सैकड़ों सेंदरा बीर, दिन भर जंगल में किया शिकार। शिकारियों ने तीन हिरण, दो सूअर व एक मोर का शिकार किया।

जमशेदपुर, [भादो माझी] । दलमा के जंगल में एक बार फिर सेंदरा हुआ। सेंदरा यानी शिकार। शिकार दलमा के जंगली जानवरों का। सैकड़ों आदिवासी शिकारी सोमवार को तड़के शिकार की परंपरा निभाने दलमा जंगल में घुसे और दिन भर तीर-धनुष व बरछे-भाले से दौड़ा-दौड़ाकर जंगली जानवरों का शिकार किया।
यह दौर शाम पांच बजे तक चलता रहा। इस दौरान शिकारियों ने तीन हिरण, दो सूअर व एक मोर का शिकार किया। शिकार किए गए जानवरों को शिकारी दलमा के बीहड़ इलाकों से ही कंधे पर ढोकर अपने गांवों की ओर चलते बने। इस बीच वन विभाग के पदाधिकारी दिन भर यही रट्टा लगाते रहे कि 'सेंदरा पर्व' शांतिपूर्ण रहा और एक भी जानवर का शिकार नहीं हुआ। जबकि शिकारी अपना काम कर चलते बने।
दरअसल, सोमवार को पूर्व घोषित कार्यक्रम के तहत दलमा जंगल में आदिवासी समुदाय द्वारा हर साल की तरह इस वर्ष भी सेंदरा पर्व मनाया गया। सेंदरा पर्व को झारखंड समेत ओडिशा व बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले आदिवासी पूरी शिद्दत से मनाते हैं। हर वर्ष इस पर्व पर इन तीनों राज्यों के आदिवासियों की जुटान दलमा की तलहटी पर होती है। इस बार भी हुई। सैकड़ों शिकारी रविवार की शाम को ही दलमा की तलहटी पर बने पारंपरिक 'गिपितिज टांडी' (ठहराव स्थल) पर पहुंचेथे।
रविवार की रात को 'दलमा बाबा' व 'दलमा आयो' यानी वन देवताओं की पूजा अर्चना कर सेंदरा (शिकार) करने की अनुमति मांगी गई। दलमा राजा (पारंपरिक राजा) राकेश हेम्ब्रम के द्वारा की गई पारंपरिक पूजा अर्चना समाप्त होने के बाद तड़के (करीब चार बजे सुबह) सेंदरा वीर (आदिवासी शिकारी) तीर-धनुष व बरछे-भाले लेकर जंगल में शिकार करने चले गए। सुबह चार बजे से शाम तक हुए शिकार के दौरान पटमदा की ओर से आए शिकारियों ने महातुरिया के समीप एक हिरण को अपना शिकार बना लिया। शिकारियों ने पहले हिरण को तीन तरफ से घेर लिया, इसके बाद उसपर तीर छोड़े। हिरण आसान शिकार साबित हुआ। शिकारियों के इस दल ने हिरण को मारने के बाद आनन-फानन में उसे लकड़ी में बांध कर कंधे में ढो लिया और जंगल से बीहड़ों के रास्ते उतर कर वन विभाग के वन रक्षकों से बचते हुए शिकार साथ लेकर चले गए।
इसी ओर दूसरे दल ने भी हिरण को ही अपना शिकार बनाया। शिकारी कुल तीन हिरणों को मारने में सफल रहे। इन तीनों हिरणों को पटमदा की ओर जाने वाली बीहड़ों से ही गांवों की ओर ले जाया गया। शिकारियों ने राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच)-33 की ओर उतरना सुरक्षित नहीं समझा। हिरणों के अलावा दो सूअर भी शिकारियों ने बरछे से मार गिराया। इसी बीच एक मोर को भी शिकारियों ने घायल कर पकड़ लिया। जंगल से ले जाये जाने तक मोर जिंदा ही था।
हालांकि परंपरा के मुताबिक सेंदरा का आयोजन करने वाले संगठन दोलमा बुरु सेंदरा समिति को शिकार का हिस्सा दिया जाता है, लेकिन चूंकि यह परंपरा पिछले तीन-चार साल से टूट सी गई है, इसलिए इस बार भी समिति को शिकार का हिस्सा नहीं दिया गया। इस वजह से दोलमा राजा राकेश हेम्ब्रम ने अपने औपचारिक बयान में कहा है कि उनकी जानकारी में सेंदरा के दौरान जानवर नहीं मारे गए, क्योंकि जानवरों का शिकार होने की स्थिति में उन्हें शिकार का हिस्सा मिलने की परंपरा है। बहरहाल वन विभाग भी शिकार के तथ्य से पल्ला झाड़ने में लगा है।

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