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    चिमनी से अब धुआं नहीं, सिर्फ निकलेगी भाप; जमशेदपुर को जहरीले धुएं से मिलेगी आजादी

    Updated: Sat, 27 Dec 2025 09:05 PM (IST)

    एनआईटी जमशेदपुर के शोधकर्ता वसीम अकरम ने एक ग्रीन पावर प्लांट मॉडल विकसित किया है। यह तकनीक पावर प्लांट की चिमनियों से कार्बन डाईऑक्साइड के बजाय केवल ...और पढ़ें

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     जमशेदपुर और आदित्यपुर इंडस्ट्रियल एरिया के लिए होगा वरदान साबित। (जागरण)

    जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। जमशेदपुर और आदित्यपुर जैसे औद्योगिक शहरों की आबोहवा अब बदलने वाली है। एनआईटी जमशेदपुर ने एक ऐसी तकनीक पर मुहर लगाई है, जिससे पावर प्लांट की चिमनियों से अब जहरीली कार्बन डाईआक्साइड नहीं, बल्कि सिर्फ भाप निकलेगी।

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    संस्थान के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के शोधकर्ता और जुगसलाई निवासी वसीम अकरम ने ग्रीन पावर प्लांट का ऐसा मॉडल तैयार किया है, जो न केवल वायु प्रदूषण को खत्म करेगा, बल्कि जमा किए गए कार्बन से उद्योगों को कमाई भी कराएगा। शनिवार को इस शोध के आधार पर वसीम को पीएचडी की अनुशंसा की गई।

    क्या है यह नई तकनीक?

    आमतौर पर पावर प्लांट में कोयला या ईंधन जलने के बाद चिमनी से धुआं निकलता है, जिसमें भारी मात्रा में कार्बन डाईआक्साइड होती है। यह हवा को जहरीला बनाती है। वसीम ने प्री-कंबस्शन कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (सीसीएस) तकनीक का उपयोग किया है।

    इसे ऐसे समझें, ईंधन के जलने से पहले ही उससे कार्बन को अलग कर लिया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद चिमनी से जो बाहर आएगा, वह धुएं का गुबार नहीं, बल्कि स्वच्छ भाप (स्टीम) होगी। इसका सीधा असर एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) पर पड़ेगा, जिससे लोगों को सांस लेने के लिए शुद्ध हवा मिलेगी।

    जमशेदपुर व आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र के लिए वरदान

    यह शोध जमशेदपुर और विशेषकर आदित्यपुर इंडस्ट्रियल एरिया के लिए वरदान साबित हो सकता है। यहां सैकड़ों फैक्ट्रियां और पावर प्लांट दिन-रात धुआं उगलते हैं। इस तकनीक के लागू होने से न केवल प्रदूषण का स्तर नीचे आएगा, बल्कि पर्यावरण नियमों का पालन करना उद्योगों के लिए आसान हो जाएगा।

    मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के एचओडी डा. परमानंद कुमार ने बताया कि यह शोध सर्कुलर इकोनामी (चक्रीय अर्थव्यवस्था) का बेहतरीन उदाहरण है। इस तकनीक में जो कार्बन डाइआक्साइड कैप्चर (पकड़ी) जाएगी, उसे हवा में छोड़ने के बजाय जमा कर लिया जाएगा।

    बाद में इसे प्रोसेस कर इंडस्ट्रियल प्रोडक्ट (औद्योगिक उत्पाद) में बदला जाएगा, जिसे बाजार में बेचा जा सकेगा। यानी आम के आम और गुठलियों के दाम, प्रदूषण भी खत्म और अतिरिक्त कमाई भी।

    जुगसलाई के लाल का कमाल

    वसीम अकरम ने यह शोध प्रो. संजय और डॉ. एमए हसन के निर्देशन में पूरा किया है। उनके इस कार्य को मैनिट भोपाल के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. एसपीएस राजपूत ने रिव्यू किया और इसे उत्कृष्ट बताते हुए पीएचडी की अनुशंसा की।

    वसीम के इस विषय पर तीन शोध पत्र अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स में प्रकाशित हो चुके हैं, जो इसकी गुणवत्ता का प्रमाण हैं। एनआइटी जमशेदपुर के निदेशक प्रो. गौतम सूत्रधार ने वसीम और उनके गाइड को बधाई दी। उन्होंने कहा कि भारत के विकसित भारत-2047 के लक्ष्य को पाने के लिए ऐसी ही ग्रीन टेक्नोलॉजी की जरूरत है।

    यह शोध भारत को हरित ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में अहम भूमिका निभाएगा। वहीं, डीन एकेडमिक प्रो. एमके सिन्हा ने इसे भविष्य की ऊर्जा जरूरतों के लिए महत्वपूर्ण बताया।